गांधी के हत्यारे गोडसे का मंदिर और मूर्ति बनाने की भी हुईं थी कोशिशें

 
नई दिल्ली  
           
आज 30 जनवरी को पूरा देश जब बापू की शहादत पर मातम मना रहा होता है तो एक तबका ऐसा भी है जो बापू को भुलाकर उस शख्स के महिमामंडन में लगा होता है जिसने बापू के सीने में गोलियां उतारी थीं. उस शख्स का नाम था नाथूराम गोडसे.

अंग्रेजी हुकूमत की रवानगी के बाद देश की कामचलाऊ सरकार ने गोडसे को बापू की हत्या का दोषी माना और उसे फांसी की सजा सुनाई. 15 नवंबर, 1949 को गोडसे को फांसी पर चढ़ा दिया गया. देश के कई संगठनों को उस फांसी की टीस आज भी कुरेदती है और वे कैलेंडर में 15 नवंबर की तारीख को शहीदी दिवस के रूप में मनाते हैं. इनकी संख्या भले मुट्ठी भर हो लोगों ने ही कई जगहों पर गोडसे के मंदिर और मूर्तियां बनाने के प्रयास किए.  

गोडसे का जन्म पुणे में हुआ था. उसके मन में गांधी की हत्या का ख्याल इसलिए आया क्योंकि उसे लगता था कि बापू ने मोहम्मद अली जिन्ना और पाकिस्तान को तरजीह देते हुए भारत का बंटवारा होने दिया. गोडसे की नाराजगी इस कदर बढ़ी कि उसने 30 जनवरी, 1948 को नई दिल्ली में महात्मा गांधी को गोली मार दी. यह ऐसा वक्त था जब देश ब्रिटिश हुकूमत से चंद महीनों पहले फारिग हुआ था. हालांकि ब्रिटिश राज के किंतु-परंतु लोगों के दिलो-दिमाग में छाए थे मगर देश का बंटवारा अंग्रेजों के उन सारे दमनचक्र को फाख्ता कर गया. उसके कई नतीजे सामने आए जिनमें एक बापू की शहादत भी है.

समाज कोई भी हो उसका एक अपना विज्ञान जरूर होता है. भारत के साथ भी ऐसा है. यहां धड़े कई हैं पर दिखते वहीं हैं जो एक- दूसरे का रास्ता पूरी कट्टरता के साथ काटते हैं. गोडसे से जुड़ा धड़ा इसका जीवंत उदाहरण है. यह धड़ा मानता है कि राष्ट्र के साथ अन्याय हुआ जिसका खामियाजा बापू की हत्या के रूप में भुगतना पड़ा. जबकि इसका ठीक विरोधी तबका यह मानता है कि गोडसे हो या उससे जुड़ी हिंदू महासभा, उसे 'अहिंसा के पुजारी' के साथ हिंसक रवैया अपनाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं. यह द्वंद्व आज भी कायम है. तभी 30 जनवरी को पूरा देश बापू का शहीदी दिवस मनाता है तो हिंदू महासभा जैसे संगठन 15 नवंबर को गोडसे की शहादत को पूजते हैं.   

सवाल है कि क्या पूजा मंदिरों में सिर्फ देवी-देवताओं की होती है? प्रचलन के लिहाज से तो ऐसा ही होता है लेकिन हिंदू महासभा ने एक नई रवायत शुरू की और देश के कुछ हिस्सों में गोडसे के मंदिर बनवाए. यूपी के सीतापुर में एक मंदिर बना और मेरठ में स्टैच्यू खड़ा किया गया जिसे पुलिस ने सील कर दिया. घटना भले 3-4 साल पहले की है मगर इसकी प्रासंगिकता आज भी कायम है क्योंकि लोग खुद से पूछते हैं कि भारत को इसीलिए विविधताओं से भरा देश मानते हैं क्योंकि यहां एक 'हत्यारे' की भी पूजा होती है?

मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और उत्तर प्रदेश चार राज्य ऐसे हैं जहां गोडसे को महिमामंडित करने और मंदिर-स्टैच्यू बनाकर पूजा करने की बड़ी तैयारी थी. हालांकि ऐसा न हो सका क्योंकि पुलिस ने बड़ी कार्रवाई कर ऐसे लोगों पर सख्ती बरती और कई जगहों पर सील मारी. बावजूद इसके कई आशंकाएं बनी रहती हैं क्योंकि गोडसे के 'पुजारियों' का मानना है कि यह एक 'अंडरकवर मिशन' है जिसे मीडिया से दूर रखते हुए पूरा करना है और गोडसे की 'राष्ट्रवादी छवि' जन-जन तक पहुंचानी है.  

इसी कड़ी में 2 साल पहले की ग्वालियर की वह घटना लोग अभी भूले भी नहीं होंगे जिसमें हिंदू महासभा ने दौलतगंज इलाके में पूरे फैनफेयर के साथ गोडसे की प्रतिमा लगाने के लिए शिलान्यास किया था. महासभा ने मंदिर बनाने के लिए जमीन खरीदने की इजाजत भी मांगी थी लेकिन जिला प्रशासन ने इससे इनकार कर दिया था. काफी विरोधों के बावजूद प्रतिमा का शिलान्यास हुआ और इसे राष्ट्रीय फलक पर कवरेज भी दमदार मिला.

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