गर्भवती महिलाओं और शिशु को फ्लू के लक्षणों से कैसे बचाएं, जानें डॉक्टर की राय

 नई दिल्ली
गर्भावस्था किसी भी परिवार या होने वाले माता-पिता के लिए एक बड़ी खुशी या यूं कहें नई जिंदगी की शुरुआत होती है, लेकिन इस समय जब दुनिया भर में कोरोनावायरस का खतरा मंडरा रहा है, आपका यह जानना बहुत जरूरी है कि बच्चे को कैसे सुरक्षित रखा जाए। इस समय डॉक्टर की अपॉइंटमेंट लेने से लेकर मेडिकल टेस्ट तक का निर्णय लेना मुश्किल है। जो महिलाऐं मां बनने वाली हैं, उन्हें बच्चे के स्वास्थ्य की देखभाल बहुत ध्यान से करनी होगी। इसमें अच्छा खाने से लेकर दवाइयां, पैरेंटल वर्कआउट, रीडिंग आदि सभी शामिल हैं। इसी के साथ गर्भावस्था से पहले के टीके, इसके बाद लगने वाले टीके, बच्चे के लिए वेक्सिनेशन, मां के लिए वेक्सिनेशन, इन सभी बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। इस पोस्ट में मां बनने वाली महिलाओं के लिए कुछ ऐसी जरूरी जानकारी दी जा रही है, जिनका ध्यान रखना बहुत जरूरी है। इनमें से एक में भी सावधानी न बरती जाए तो हानिकारक हो सकता है।

टीकाकरण की दर कमगर्भावस्था के दौरान टीकाकरण की बात करें तो भारत में इसे लेकर कई ट्रेंड्स देखे गए हैं। इस श्रेणी में सबसे पहली परेशानी यह है कि यह टीके कम जगह उपलब्ध होते हैं। इसी के साथ गर्भवती महिलाओं में सुरक्षा और वेक्सीनेशन्स को लेकर काफी कम जागरुकता देखी गई है। गर्भवती महिलाएं, खासतौर से भारत में, सबसे प्रमुख टीकों में से एक – इन्फ्लुएंजा वेक्सीन की अकसर अनदेखी करती हैं। इस वेक्सीन को यूएस में रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र अमेरिकी प्रसूति और स्त्री रोग विशषज्ञों द्वारा अनिवार्य बताया गया है।

गर्भवती महिलाओं में फ्लू
 यह बात तो सभी को पता है कि गर्भवती महिलाओं को दूसरी महिलाओं की तुलना में मौसमी बीमारी, फ्लू, जुखाम-बुखार आदि जल्दी लगने का खतरा होता है। इसी के साथ गर्भावस्था के दौरान स्त्री में आने वाले मनोवैज्ञानिक बदलावों के कारण भी रिस्क बढ़ता है। गर्भवती महिला का इम्यून सिस्टम सिर्फ उसके अपने लिए नहीं बल्कि बच्चे के स्वास्थ्य के लिए भी जिम्मेदार होता है। यह तब तक रहता है जब तक बच्चा 6 महीने का नहीं हो जाता। जन्म के बाद भी बच्चे को अपनी मां के दूध से ही पोषण मिलता है। इससे बच्चे की इम्युनिटी बूस्ट होती है।

इन्फ्लुएंजा का जोखिम
फ्लू लगने पर गर्भावस्था में कॉम्प्लीकेशन्स का जोखिम और बढ़ जाता है। कई स्टडीज में यह पाया गया है कि इन्फ्लुएंजा के बाद भूर्ण के परिणाम प्रतिकूल नहीं रहे हैं। इसमें समय से पहले जन्म, जन्म के समय कम वजन और सिजेरियन डिलीवरी शामिल हैं। यहां तक कि 2009-10 में H1N1 इन्फ्लुएंजा पेंडेमिक के दौरान अधिकतर गर्भवती महिलाएं या तो हॉस्पिटल में भर्ती थीं या ICU में एडमिट की गई थीं। इन महिलाओं में मौत का रिस्क अन्य वयस्कों से कई ज्यादा था। 6 महीने से कम उम्र के बच्चों में इन्फ्लुएंजा से सम्बंधित हॉस्पिटल में एडमिट होने का स्तर हाई था।
 

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