गरीब सवर्णों को आरक्षण का मामला संविधान पीठ के पास भेजा जाए या नहीं? सुप्रीम कोर्ट आज करेगा फैसला

 नई दिल्ली
 
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि वह निर्णय करेगा कि क्या आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिये 10 फीसदी आरक्षण देने के केन्द्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को निर्णय के लिये संविधान पीठ को सौंपा जाये। न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने टिप्पणी की कि समता की अवधारणा में आरक्षण एक अपवाद है और इसका उद्देश्य अवसर में समानता हासिल करना है।

पीठ आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को आरक्षण देने संबंधी संविधान (103वां) संशोधन कानून, 2019 की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इन याचिकाओं में दलील दी गयी है कि आरक्षण के लिये आर्थिक श्रेणी एकमात्र आधार नहीं हो सकती। इन याचिकाओं पर सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी। केन्द्र ने नागरिकों के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को भी आरक्षण का लाभ प्रदान करने के लिये संविधान में संशोधन कराया है।

याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने पीठ से कहा कि इस समय दो मुद्दे हैं-क्या इस मामले को संविधान पीठ को सौंपा जाना चाहिए और क्या इस बीच कोई अंतरिम राहत दी जा सकती है। केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ से कहा कि इस मामले में वह अंतिम बहस के लिये तैयार हैं। उन्होंने कहा कि वह इस सवाल पर भी बहस के लिये तैयार हैं कि क्या इसे संविधान पीठ को सौंपा जाना चाहिए।

पीठ ने कहा कि सिद्धांतत: , हम इस मामले में आगे नहीं बढ़ना चाहते और ऐसी स्थिति में इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि इसे संविधान पीठ को सौंपा जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि वह निर्णय करेगी कि क्या इस मामले को संविधान पीठ को सौंपा जाना चाहिए। धवन ने पीठ से कहा कि यदि इस मुद्दे को संविधान पीठ को भेजा जाना होगा तो फिर अंतरिम आदेश की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा कि एक मुद्दा यह भी है जिस पर शीर्ष अदालत को विचार करना होगा कि क्या संविधान (103वां संशोधन) कानून बुनियादी ढांचे का हनन करता है।

एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मयम ने कहा कि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा लांघी नहीं जा सकती है। उन्होंने दलील दी कि संविधान (103वां संशोधन) कानून के अनुसार आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिये 10 फीसदी का आरक्षण मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त है जिसका मतलब यह हुआ कि यह 50 फीसदी की सीमा पार करेगा। शीर्ष अदालत इससे पहले 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी केन्द्र के निर्णय पर रोक लगाने से इंकार कर चुका है। इस संविधान संशोधन विधेयक को संसद ने जनवरी में मंजूरी दी थी और इसे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपनी संस्तुति प्रदान की थी।

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