क्या अपने वोट बैंक टेस्ट को पास कर पाएंगी मायावती? इन आठ सीटों की चाबी है उनके पास

लखनऊ 
18 अप्रैल को जिन सीटों पर चुनाव होना है, उनमें करीब 8 सीटें ऐसी हैं जो एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन और खास तौर पर मायावती के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। मायावती का बड़ी साख इन सीटों पर दांव पर लगी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इन सीटों पर पार्टियों के लिए दलित वोटरों को लुभाने की होगी, जिन्हें परंपरागत तौर पर मायावती का वोटर माना जाता है। इन आठ सीटों में से 4 सीटें शेड्यूल कास्ट के लिए आरक्षित हैं, जिनमें नगीना, अलीगढ़, हाथरस और आगरा शामिल हैं।  

इस बार मायावती गठबंधन के साथ मैदान में उतर रही हैं। इन आठ सीटों में नगीना, बुलंदशहर और आगरा समेत 6 सीटों पर बीएसपी के कैंडिडेट मैदान में होंगे। जानकारों का मानना है कि इन सीटों पर बीजेपी और बीएसपी उम्मीदवारों के बीच कड़ी टक्कर है। इन आठ में से एसपी ने सिर्फ एक उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। वह उम्मीदवार हाथरस से रामजीलाल सुमन हैं। इस सीट पर दलित वोट बैंक के ट्रांसफर होने की भी उम्मीद है। 

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी दलित, जाट और गुर्जर वोटों में सेंध लगाई थी, ऐसा खास तौर पर 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद संभव हुआ था। इस बार इलाके में सांप्रदायिक भावनाएं उतनी प्रबल नहीं हैं। इस बार गठबंधन की कोशिश है कि दलित और मुस्लिम वोटरों को बंटने दिया जाए और बीजेपी को रोकने के लिए उन्हें एकसाथ रखा जाए। इस बार यह लड़ाई और कड़ी हो सकती है क्योंकि बीजेपी ने दो आरक्षित सीटों पर वर्तमान सांसदों के टिकट काट दिए हैं। 

चुनाव के दूसरे चरण में यह भी देखना होगा कि गैर दलित वोटर कैसे एसपी और बीएसपी को ट्रांसफर हो सकता है। गोविंद वल्लभ पंत इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल सांइस के बद्रीनारायण का कहना है, 'आरक्षित सीटों पर गैर-दलित वोटरों का ट्रांसफार होना ही निर्णायक साबित होगा।' 

कई अनारक्षित सीटों पर भी बीजेपी और बीएसपी के बेहद कड़ा मुकाबला होगा। खास तौर पर अलीगढ़ और अमरोहा जैसी सीटों पर जहां मुस्लिम जनसंख्या ज्यादा है। 

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