कोरोना वायरस के खतरे से निपटने के लिए कितना तैयार है ग्रामीण भारत?

 
नई दिल्ली 

कोरोना वायरस के डर ने स्वास्थ्य मंत्रालय को हिला कर रख दिया है. भारत में शुक्रवार तक COVID 19 के 31 मामले सामने आए हैं. हालांकि, सौभाग्य से अभी तक किसी की मौत नहीं हुई है.

एक तरफ जहां सरकार कोरोना वायरस को देश में प्रवेश से रोकने के लिए पर्याप्त उपाय सुनिश्चित कर रही है, वहीं इस महामारी को खत्म करने से लेकर इसके इलाज के लिए सुझाव देने वाले अप्रमाणिक दावों की बाढ़ आ गई है. ऐसा ही एक दावा समाजवादी पार्टी के नेता राम गोपाल यादव ने किया. उन्होंने कहा कि ‘गांव कोरोना वायरस से सुरक्षित हैं और यह महामारी ज्यादातर शहरों में फैल रही है.’

हालांकि, यह सच है कि अभी तक भारत के किसी गांव से कोरोना वायरस का कोई मामला सामने नहीं आया है, लेकिन अगर यह महामारी व्यापक रूप से फैलती है तो क्या ग्रामीण इलाकों की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं इसे संभाल सकती हैं?

इंडिया टुडे की डाटा इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) ने नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 में प्रकाशित स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के आंकड़ों का अध्ययन किया और पाया कि अगर ग्रामीण भारत की मात्र 0.03 फीसदी आबादी को जरूरत पड़े तो सरकारी अस्पतालों में बिस्तर उपलब्ध नहीं होंगे.

DIU ने सरकारी अस्पतालों की संख्या, अस्पतालों में उपलब्ध बिस्तर और ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले एलोपैथिक डॉक्टरों की संख्या की छानबीन की. इसके आंकड़े काफी चिंताजनक हैं.

अस्पताल

2011 की जनगणना के अनुसार, देश की लगभग 69 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है. नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 के आंकड़े कहते हैं कि भारत के कुल 26,000 अस्पतालों में से 21,000 ग्रामीण क्षेत्रों में और 5,000 शहरी क्षेत्रों में हैं. इसका मतलब है कि देश के 73 प्रतिशत सरकारी अस्पताल ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं.

यह आंकड़ा एक सकारात्मक तस्वीर पेश कर सकता है कि शहरी और ग्रामीण इलाकों में सरकारी अस्पतालों की उपलब्धता लगभग समान है, लेकिन वास्तविकता पूरी तरह से अलग है.

इस वास्तविकता को समझने के लिए हमें ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध डॉक्टरों और बिस्तरों की संख्या को देखने की जरूरत है.

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