कांग्रेस नेताओं को रास नही आ रहा लाखों वोटों से हार का आंकड़ा, अंदरखाने में हलचल तेज

भोपाल
2014  की तुलना में इस बार कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में करारी हार मिली है। पिछले चुनाव में एमपी में  3 सीटे हासिल कर हाल ही में हुए विधानसभा में सत्ता हासिल करने वाली कांग्रेस इस बार एक सीट पर सिमट कर रह गई। मोदी की लहर में सारे के सारे दिग्गज नेता हार गए यहां तक की राजा-महाराजाओं के किले भी ढह गए, सालों से कांग्रेस का गढ रही गुना-शिवपुरी सीट सिंधिया भी नही बचा पाए और हार गए। हैरानी की बात तो ये है कि अधिकतर सीटों पर कांग्रेस को लाखों वोटों से हार मिली है, जबकी हाल ही में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन कर ११४ सीटों पर कब्जा जमाया था, पूरे प्रदेश में कांग्रेस की लहर चल रही थी, वक्त है बदलाव की बात कही जा रही , ऐसे में आखिरी मौके पर क्या हुआ जो नेताओं को ऐसा करारी हार का सामना करना पड़ा, ये बात पार्टी, नेता और कार्यकर्ताओं को रास नही आ रही है।

दरअसल, लोकसभा चुनाव में एमपी के जो नतीजे आए है, बीजेपी २८ तो कांग्रेस केवल एक सीट छिंदवाड़ा पर जीत हासिल कर पाई है। हैरानी की बात तो ये है कि  प्रदेश की 29 में से 15 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों की हार का आंकड़ा तीन लाख से ज्यादा रहा। पांच लाख से ज्यादा हारने वालों की संख्या तीन है, जबकि एक लाख से अंदर हारने वाले महज दो ही उम्मीदवार निकले। इसके विपरीत लाज बचाने के लिए कांग्रेस जिस एक सीट पर जीत पायी वहां आंकड़ा 37 हजार से थोड़ा ही ज्यादा था।  इस बार भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले 87 लाख मत ज्यादा मत मिले।   ऐसे में मोदी लहर का असर पता लगाना कोई मुश्किल काम नही।

सबसे चौंकाने वाली बात तो ये है कि एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़े दिग्गज नेता के हारने का आंकड़ा एक लाख से पार रहा, जिसमें गुना-शिवपुरी सीट से सांसद सिंधिया , भोपाल से दिग्विजय सिंह , जबलपुर से विवेक तन्खा, खंडवा से अरुण यादव, रतलाम से कांतिलाल भूरिया, मुरैना से रामनिवास रावत सीधी से अजय सिंह और मंदसौर से मीनाक्षी नटराजन।ये सभी दिग्गज नेता एक लाख से अधिक वोटों से हारे है।खास बात तो ये है कि ये सभी नेता कांग्रेस के उन दिग्गजों में शुमार रखते है जिनके दम पर पार्टी चल रही है और जो पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के खास है।दिग्विजय जैसे कद्दावर नेता जो कई बार सांसद और मुख्यमंत्री जैसे बड़े चुनाव जीत चुके है,राजनीति की नौसिखिया कही जाने वाली साध्वी प्रज्ञा ने साढ़े तीन लाख से ज्यादा मतो से हार गए।वही सिंधिया जो चार बार गुना से सांसद रहे है और परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाते आए है, को कभी उनके अनुयायी रहे केपी यादव ने सवा लाख के बड़े अंतर से हराया। 

इनकी हार ने पार्टी को ही सकते में लाकर खड़ा कर दिया है, स्थानीय नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं के दांतों तले उंगुलियां आ गई है, कौन समझ ही नही पा रहा है कि ये नेता कैसे हार गए वो भी लाखों के अंतर से।जबकी छह महिने पहले ही कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन कर जीत हासिल की है, ऐसा क्या हो गया छह महिने में की नेता सीधे ऊपर ने नीचे जा गिरे, पार्टी का अस्तित्व ही खतरे में आ गया। ऐसे में भाजपा के उम्मीदवारों की जीत का आंकड़ा इतना बड़ा था कि हारने वाले को हजम ही नहीं हो रहा।हालांकि पार्टी नेता हार पर मंथन कर रहे है लेकिन भोपाल से दिल्ली तक हड़ंकप मचा हुआ है, वही पार्टी के अंदरखानों मे भी हालत ठीक नही है, नेता हार के लिए एक दूसरे पर आरोप लगा रहे है, कमियां गिना रहे है। 

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