कांग्रेस के इमरान मसूद ने अखिलेश-मायावती को देवबंद रैली के लिए किया मजबूर?
देवबंद
इस्लामिक शिक्षा के बड़े केंद्र देवबंद पर रविवार को सभी की निगाहें टिकी होंगी, जहां दुश्मन से दोस्त बने मायावती और अखिलेश यादव पहली बार ज्वाइंट रैली करने जा रहे हैं. देवबंद में लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 11 को वोटिंग होनी है, उससे ठीक चार दिन पहले बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव की यह महारैली रखी गई है.
देवबंद की यह रैली जामिया तिब्बिया मेडिकल कॉलेज के पास आयोजित की गई है. इस महारैली में महागठबंधन के एक अन्य साझेदार राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह और उपाध्यक्ष जयंत चौधरी में शामिल होंगे. एसपी-बीएसपी और आरएलडी यह चाहते हैं कि इस बार जाट-मुस्लिम साथ-साथ आएं.
पश्चिम यूपी के सहारनपुर संसदीय सीट के अंतर्गत देवबंद के अलावा बेहट, सहारनपुर, सहारनपुर देहात और रामपुर मनिहारन विधानसभा सीटें आती हैं, जहां मुस्लिमों की आबादी अच्छी खासी है. सपा-बसपा गठबंधन ने यहां से हाजी फजलुर रहमान को उम्मीदवार बनाया है, तो वहीं कांग्रेस ने इमरान मसूद को टिकट दिया है.
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में इमरान मसूद ने करीब 4.07 लाख वोट हासिल किए थे. हालांकि बीजेपी के राघव लखनपाल से करीब 66 हजार वोटों से हार गए थे. ऐसे में इस बार यहां त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है, जहां मुस्लिम बंटने की संभावना बेहद अधिक दिख रही है.
सहारनपुर संसदीय क्षेत्र में करीब 40% मुस्लिम वोटर्स हैं, जो बीजेपी से नाराज़ बताए जाते हैं, हालांकि मुस्लिम वोटर्स भी आपस बंटे हुए हैं. जैसे मुस्लिमों की कई पिछड़ी जातियां इस बार बीएसपी उम्मीदवार रहमान के पक्ष में दिख रही हैं. इसके अलावा यहां जाटवों की आबादी अधिक है, जो प्रारंपरिक रूप से बीएसपी के वोटर्स रहे हैं.
इन्हीं फैक्टर्स को ध्यान में रखते हुए सपा-बसपा-आरएलडी महागठबंधन ने पहली ज्वाइंट रैली के लिए देवबंद को चुना है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या विपक्ष की यह रणनीति फलदायी होगी? इस सवाल का जवाब इस बात से तय होगा कि ये पार्टियां किस हद तक अल्पसंख्यक वोटर्स को रिझाने के साथ-साथ जाट और गुर्जरों को अपने पक्ष में रखने में कामयाब होती हैं.