कांग्रेस-एनसीपी में कलह, बीजेपी-शिवसेना भारी

मुंबई 
महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटों के लिए मुख्य लड़ाई शिवसेना-बीजेपी गठबंधन बनाम कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के बीच होनी है। ताजा स्थिति यह है कि पिछले पूरे कार्यकाल में एक-दूसरे से लड़ने-झगड़ने वाली शिवसेना-बीजेपी एकसाथ आने के बाद दूध में शक्कर की तरह घुल मिलकर विश्वास का माहौल तैयार कर रही हैं। वहीं, पिछले 5 सालों से एक साथ मिलकर बीजेपी-शिवसेना का मुकाबला करने वाली कांग्रेस-एनसीपी चुनाव के मुहाने पर आपसी संघर्ष और अविश्वास के धरातल पर दम ठोंक रही हैं। 

उत्तर महाराष्ट्र, जो सहकारिता आंदोलन का गढ़ और महाराष्ट्र की राजनीति में कांग्रेस का किला रहा है, वहां बीजेपी ने सेंध लगा दी है। महाराष्ट्र विधानसभा में नेता विपक्ष राधाकृष्ण विखेपाटील के बेटे डॉ. सुजय पाटील को बीजेपी में शामिल कर कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है। कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में अहमदनगर सीट एनसीपी के खाते में थी। कांग्रेस सुजय विखेपाटील के लिए सीट शरद पवार से मांग रही थी, लेकिन पवार ने कांग्रेस को सीट देने से इनकार कर दिया। परिणामस्वरूप सुजय बीजेपी में चले गए और कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन अपने गढ़ से हाथ धो बैठा। 

एनसीपी के इस रवैए से उसके प्रति कांग्रेस में एक अविश्वास का मौहाल बना है। महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष राधाकृष्ण विखेपाटील ने अहमदनगर में एनसीपी उम्मीदवार का प्रचार करने से इनकार कर दिया है। इसका फायदा बीजेपी को ही होगा। जो शरद पवार विपक्षी एकता की गांठ बांधने का दायित्व लिए देश भर में घूम रहे थे, वही अपने गृह प्रदेश में विफल हो गए हैं। वहीं, कांग्रेस-एनसीपी के साथ न समाजवादी पार्टी है और न बसपा। शरद पवार ने राज ठाकरे की एमएनएस को साथ में लेने का भी प्रयास किया, लेकिन कांग्रेस ने वीटो कर दिया। 

आरपीआई नेता रामदास आठवले के एनडीए में जाने के बाद विपक्ष में दलित नेता के रूप में प्रकाश आंबेडकर प्रभावशाली नेता के रूप में उभरे। महाराष्ट्र में भीमा-कोरेगांव की घटना के बाद उनकी लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ा। वह कांग्रेस के साथ जाना चाहते थे, लेकिन शरद पवार से उनका मेल नहीं खाता। फिर भी कांग्रेस-एनसीपी ने उन्हें अपने गठबंधन में शामिल करने की कोशिश की, लेकिन सारी कोशिशें बेकार गईं। 

कांग्रेस-एनसीपी ने एक फिर आंबेडकर को साथ में लेने की कोशिश की, लेकिन आंबेडकर ने अपनी पार्टी वंचित बहुजन आघाडी के 37 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दरवाजे बंद कर दिए। आंबेडकर ने जिस तरह महाराष्ट्र की पिछड़ी वंचित जातियों को सीटें दी हैं, उससे कांग्रेस-एनसीपी का चिंतित होना लाजिमी है। वंचित बहुजन आघाडी के प्रत्याशी चुनाव भले ही न जीत पाएं, लेकिन वह कांग्रेस-एनसीपी उम्मीदवारों के वोट काटकर बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के लिए रास्ता आसान जरूर कर सकते हैं। 

उधर, शरद पवार पारिवारिक कलह में उलझ गए हैं। अब तक समझा जाता था कि पवार में अपनी राजनीतिक विरासत को बहुत सोचे-समझे तरीके से अपनी बेटी सुप्रिया सुले और भतीजे अजित पवार में बांट दिया है। माना जा रहा था कि सुप्रिया सुले, पवार की केंद्रीय राजनीति की वारिस हैं और अजित पवार महाराष्ट्र की राजनीति के वारिस लेकिन 2019 के चुनाव के मुहाने पर पवार परिवार की एकता का मिथक भी दरकता नजर आ रहा है। कहा जा रहा है कि पवार के न चाहते हुए भी भतीजे अजित पवार ने अपने बेटे पार्थ पवार के लिए पुणे जिले की मावल सीट से उम्मीदवार बनाने का ऐसा दबाव बनाया कि शरद पवार सबके सामने असहाय नजर आए।

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