कश्मीर में ISI ने आतंकियों को बचाने के लिए बुना ‘नाम’ जाल
श्रीनगर
जम्मू-कश्मीर के पुलवामा हमले में शामिल स्थानीय आत्मघाती हमलावर आदिल अमहद डार को लेकर चौंकाने वाली एक जानकारी सामने आई है। इस जानकारी के मुताबिक डार खुफिया एजेंसियों के रेडार में था ही नहीं। बताया जा रहा है कि यह इसलिए भी हो पाया कि पिछले पांच वर्षों में पाकिस्तान की तरफ से घाटी में मुखबिरों पर लगातार हमले किए गए हैं। इन मुखबिरों के जरिए आतंकियों की गतिविधि को लेकर भारत को कई बड़ी और सटीक जानकारियां मिलती रही हैं। इसके अलावा आईएसआई सभी आतंकियों को कई उपनाम देकर भी खुफिया एजेंसियों को कन्फ्यूज करने की कोशिश में है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक आदिल अहमद डार को खुफिया एजेंसियां 'सी ग्रेड' आतंकी मानकर चल रही थीं। मतलब यह कि उसे बहुत खतरनाक नहीं माना जा रहा था। सी ग्रेड में उन आतंकियों के नाम शामिल हैं, जिन्हें सेना घाटी में सबसे कम खतरनाक आतंकियों में गिनती है। घाटी में मौजूद आतंकियों को लेकर दिसंबर 2018 में अपडेट किए गए आंकड़ों में तो जैश के टॉप दो आतंकी कामरान और फरहाद के बारे में भी कोई जानकारी नहीं थी, जिन्हें बीते सोमवार को पुलवामा में सुरक्षाबलों ने मार गिराया। ये दोनों आतंकी जैश के कमांडर थे।
उपनाम से कर रहे कन्फ्यूज
खुफिया जानकारी नहीं होने के कारण ही सुरक्षाबलों को कामरान और फरहाद की पहचान को लेकर शुरू में असमंजस की स्थिति रही। एक अधिकारी ने बताया, आईएसआई हमें गुमराह करने के लिए एक-एक आतंकी को कई उपनाम (असली नाम के अलावा एक अन्य नाम) दे दी है। वे अक्सर उपनाम का प्रयोग करते हैं। बातचीत के दौरान भी वे ऐसा ही करते हैं ताकि हमारी खुफिया एजेंसियां कन्फ्यूज रहें। यही वजह है कि हम वास्तव में नहीं जानते कि कोई अब्दुल राशिद गाजी नाम का आतंकी है या नहीं, जिसे बताया जा रहा है कि उसने पुलवामा हमले के हमलावर डार को आईईडी ब्लास्ट की ट्रेनिंग दी थी।
बुरहान वानी की मौत के बाद आक्रामक रुख
सभी सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारी यह मानते हैं कि पहले जिस तरह से स्थानीय स्तर पर उनके मुखबिर सक्रिय थे और आतंकी गतिविधियों की जानकारियां आसानी से मिल जाती थीं, अब वह स्थिति नहीं रही। अधिकारी मानते हैं कि वर्ष 2016 में खूंखार आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद पाक आर्मी और आईएसआई जिस तरह से स्थानीय लोगों के खिलाफ आक्रामक हुई है, उसने मुखबिरों को काफी हद तक प्रभावित किया है।
बड़ी संख्या में मुखबिरों को पाक ने मारा
एक आंकड़े के मुताबिक पिछले तीन वर्षों में पाकिस्तानपरस्त आतंकियों ने 180 से अधिक स्थानीय लोगों को मौत के घाट उतारा है। सूत्रों के मुताबिक इनमें बड़ी संख्या में मुखबिर शामिल रहे हैं। हालांकि अधिकारी इस बारे में साफ बोलने से बचे कि मारे गए मुखबिरों की वास्तविक संख्या क्या रही है। हालांकि उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो इससे खुफिया जानकारियों को झटका जरूर लगा है।
अभी भी घाटी में 300 से अधिक आतंकी
खुफिया एजेंसियां भी अब यह मान रही हैं कि घाटी में आतंकी संगठनों में युवाओं की भर्ती और सीमा के भीतर घुसपैठ को लेकर जो उनका आकलन था, वह सही नहीं रहा है। इसका बड़ा उदाहरण यह है कि वर्ष 2018 में आकलन था कि करीब 140 आतंकियों ने घाटी में घुसपैठ की है। साथ ही खुफिया एजेंसियां मानकर चल रही थीं कि इतने ही युवा इस वर्ष आतंकी संगठनों में शामिल हुए हैं। पर, पिछले वर्ष 240 से अधिक आतंकी मारे गए और अभी भी करीब 300 आतंकी घाटी में मौजूद हैं।
सुरक्षा एजेंसियों की बढ़ गई है चिंता
खुफिया डेटाबेस में आतंकी भर्ती और घुसपैठ के मामलों में इस बड़े गैप ने सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है। अधिकारी मान रहे हैं कि इसे लेकर अब नए सिरे से सोचने की जरूरत है। ऐसा इसलिए भी कि सुरक्षा एजेंसिया उस ट्रेंड को पकड़ने में नाकाम रही हैं, जिसके जरिए आतंकी घाटी को अशांत कर रहे हैं। एक अधिकारी कहते हैं, हममें से (खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां) कोई भी यह आंकलन करने में सफल नहीं रहा कि 2008 से 2010 के बीच आखिर घाटी में पथराव और सेना के साथ स्थानीय स्तर पर संघर्ष की स्थिति सबसे अधिक क्यों बनी रही। हमें लगता है कि वर्ष 2011 से 2013 जब कुछ शांति बनी रही उस समय आतंकी संगठन खुद को घाटी में मजबूत बनाने में जुटे थे और अपने संगठन में युवाओं की भर्तियां कर रहे थे।