कश्मीर में नए दल के गठन से पैदा होगा PDP के लिए संकट

नई दिल्ली                                                      
करीब बीस साल पूर्व मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कांग्रेस से अलग होकर जम्मू-कश्मीर में पीडीपी का गठन किया था। इतिहास खुद को दोहरा रहा है और पीडीपी के कई अहम नेता अलग होकर एक नए राजनीतिक दल का गठन करने जा रहे हैं। नए दल में हालांकि कांग्रेस के भी कुछ नेताओं के टूटकर जाने की संभावना है लेकिन सबसे बड़ा नुकसान पीडीपी को हो सकता है। ऐसी अटकलें हैं।

संभावना है कि इसी महीने नए राजनीतिक दल का गठन हो सकता है। पीडीपी के वरिष्ठ नेता और राज्य में मंत्री रहे अल्ताफ बुखारी इस नए दल का नेतृत्व कर सकते हैं। पीडीपी के एक अन्य बड़े नेता मुजफ्फर बेग और गुलाम हसन मीर भी इससे जुड़ रहे हैं। कांग्रेस के उस्मान माजिद भी इसमें जा रहे हैं। अटकलें हैं कि पीडीपी में काफी संख्या में नेता-कार्यकर्ता टूटकर नए दल में शामिल हो सकते हैं। कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के असंतुष्टों समेत कई छोटे दलों के नेताओं के भी इससे जुड़ने की चर्चाएं हैं।

नेशनल कांफ्रेस के नेता हसनैन मसूदी दावा करता है कि नए दल के गठन से उनकी पार्टी प्रभावित नहीं होगी। मोटे तौर पर वे इसे पीडीपी में टूट के रुप में देख रहे हैं। करीब दो दशक पहले जब कांग्रेस से टूटकर पीडीपी बनी थी तो उस समय कांग्रेस को भारी राजनीतिक नुकसान हुआ था और बाद में पीडीपी एक प्रमुख क्षेत्रीय दल के रूप में उभरकर सामने आई। उन्हें लगता है कि फिर अब ऐसा ही होने जा रहा है।

कई और भी कारण

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कश्मीर में पीडीपी को कई और कारणों से भी नुकसान हो रहा है। भाजपा के साथ सरकार बनाने और बाद में केंद्र द्वारा अनुच्छेद 370 हटाने के लिए काफी हद तक स्थानीय लोग पीडीपी की राजनीतिक चूक को भी जिम्मेदार मानने लगे हैं। फिर मुफ्ती के इंतकाल के बाद महबूबा दल को उनके जैसे नेतृत्व प्रदान करने में विफल रही हैं। इसलिए यदि कोई नया दल बनता है तो कोई आश्चर्य नहीं कि वह पीडीपी की जगह ले ले।

पीछे से भाजपा का समर्थन!

सूत्रों का कहना है कि राज्य में बन रहे नए दल को खड़ा करने में भाजपा की अहम भूमिका है। पिछले दो-तीन महीनों से राम माधव वहां सक्रिय रहे हैं। उन्होंने अल्ताफ बुखारी के साथ बैठकें भी कीं। माना जा रहा है कि नये दल की पृष्ठभूमि तैयार करने में उनकी अहम भूमिका है। इसलिए यह माना जा रहा है कि नया क्षेत्रीय दल नेशनल कांफ्रेस की तरह स्वायत्तता या पीडीपी की तरह स्वशासन की बात नहीं करेगा बल्कि यह भारतीयता और राष्ट्रीयता की भावना के साथ क्षेत्रीय राजनीति करेगा। देर-सवेर कश्मीर में चुनाव होंगे और यदि नया दल सफल रहता है तो यह भाजपा का नया सहयोगी होगा।

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