ओम बिरला के स्पीकर बनने के हफ्ते भर में बदला-बदला सा नजर आ रहा सदन

 नई दिल्ली
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में लोकसभा स्पीकर ओम बिरला लगातार अपने व्यवहार को लेकर सुर्खियों में हैं। लोकसभा के नए स्पीकर ओम बिरला की नियुक्ति के पहले सात दिनों के कामकाज की बात करें तो वे जैसा चल रहा है वैसे चलने दे वाले कामकाज की प्रवृत्ति में यकीन नहीं रखते। बिरला ने पहले ही सदन के कामकाज में बड़े बदलाव किए हैं, जबकि पिछले कई वर्षों में कार्यवाही बार-बार रुकावट और स्थगन के साथ चल रही थी।

अपने पूर्ववर्ती लोकसभा अध्यक्षों के विपरीत ओम बिरला ने कार्यवाही में ज्यादा देर तक बैठना शुरू कर दिया है। साथ ही पहली बार के सांसदों द्वारा ज्यादा से ज्यादा मुद्दे उठाए जाए और उनकी बातें सुनी जाए, इसके लिए वह अक्सर लंच भी देरी से करते हैं। उन्होंने अब तक के अड़चनों को भी काफी अच्छे तरीके से संभाला है और कार्यवाही में व्यावधान नहीं आने दिया है। 

ओम बिरला ने एक तरह से सदन के अंदर अपनी सभी बातचीत में शुद्ध हिंदी का उपयोग करने वाले पहले अध्यक्ष बनने का व्यक्तिगत रिकॉर्ड भी बनाया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक बड़ा परिवर्तन है। एक जमाने तक लोकसभा अध्यक्षों ने अंग्रेजी में संवाद करना पसंद किया है। बिरला ने बिल या संसदीय प्रस्ताव पर ध्वनि मत से भाग लेने वाले सदस्यों को संबोधित करते हुए "ऐ" और "नहीं" शब्द भी नहीं बोला है। उन्होंने हमेशा कहा है 'हां के पक्ष में' और 'ना के पक्ष में'। नए अध्यक्ष बिरला को 19 जून को चुना गया था और गुरुवार को सदन में उन्होंने अपने सात दिन पूरे किए। हालांकि इन सात दिनों में उन्होंने यह रोड मैप दिखा दिया कि सदन को अगले पांच साल कैसे चलाया जा सकता है। 

बुधवार को बिरला ने पहली बार के सांसदों को शून्य काल (मुद्दों को उठाने के लिए सांसदों को दिए गए 60 मिनट की अवधि) को बढ़ाकर महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने की अनुमति दी और दोपहर के भोजन के समय को 2.30 बजे बढ़ा दिया। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बुधवार को मिसाल पेश करते हुए सदन की कार्रवाई जारी रखने के लिए लंच ब्रेक आगे बढ़ाया। इसके पीछे मकसद यह था कि सभी सदस्य शून्यकाल के दौरान लोक महत्व के मुद्दे उठा सकें। इस तरह सभी सांसदों को निर्धारित समय से करीब 3 घंटे देरी से भोजनावकाश मिला। कार्यवाही के दौरान पूरे समय वे स्वयं बैठे रहे। यहां तक कि विपक्षी सांसद भी उनके रवैये की प्रशंसा करते हैं। तृणमूल कांग्रेस के नेता सौगत रे ने कहा कि आप नए सांसदों को बोलने का मौका देने के लिए अपनी भूख की पीड़ा को भूल गए हैं। आप इस बात पर एक उदाहरण हैं कि कामकाज कैसे किया जाना चाहिए।

सर्वसम्मति से चुने जाने के एक दिन बाद ही विभिन्न दलों के वरिष्ठ नेताओं के साथ अपनी पहली बैठक में बिरला  ने स्पष्ट कर दिया था कि वह प्रश्नकाल के दौरान मुद्दों को उठाने के लिए अधिक से अधिक लोगों को मौका देना चाहते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि प्रश्नों को छोटा और क्रिस्प रखा जाना चाहिए और उत्तर भी टू-द-प्वाइंट।

मौजूदा लोकसभा सत्र में हर दिन करीब आठ सवालों पर चर्चा हो रहा है, जो पिछले पांच वर्षों में 4.5 के पिछले औसत से अधिक है। बुधवार को 84 सांसदों ने शून्यकाल में मुद्दों को उठाया जो अब तक का सबसे अधिक है।

अपने सात दिनों के कामकाज में बिरला ने सदन में एक शब्द अंग्रेजी का इस्तेमाल नहीं किया। जबकि वह अंग्रेजी बोलने में भी पारंगत हैं। हालांकि, खुद हिंदी बोलने के बावजूद भी उन्होंने किसी भी सदस्यों से हिंदी बोलने के लिए नहीं कहा। नाम न बताने की शर्त पर लोकसभा के सीनियर अधिकारी ने कहा कि बिरला अपने संबोधन में 'होम्बल एमपी' के बदले 'माननीय सदस्यगण', 'एडजॉर्नमेंट मोशन' के बदले 'स्थगन प्रस्ताव' और 'जीरो आवर' के बदले 'शून्य काल' का इस्तेमाल करते हैं।

बिरला ने कुछ सांसदों को मना किया कि वे धन्यवाद न दें। बुधवार को जब खगेन मुर्मू जब बोलने की अनुमति देने के लिए स्पीकर को धन्यवाद देना चाहते थे, तो बिरलना ने उऩ्हें हिन्दी में कहा कि किसी भी सदस्य को धन्यवाद देने की जरूरत नहीं है। आपका चांस लौटरी के माध्यम से आया है, इसलिए आप सीधे तौर पर अपनी बात रखें। 

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