एसपी के लिए गले की फांस न बन जाए ‘सरप्राइस’ फैक्टर

लखनऊ
लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन के अंतिम दिन वाराणसी से मोदी के खिलाफ प्रत्याशी बदलकर एसपी ने लोगों को बड़ा सरप्राइज दिया। मगर अंतिम समय में वाराणसी समेत चार सीटों पर एसपी ने जिस तरह से प्रत्याशी बदले या फिर अंतिम दिन नए प्रत्याशी घोषित किए, समाजवादी पार्टी का यह सरप्राइज फैक्टर गले की फांस बन सकता है। 

7वें चरण में जिन 13 लोकसभा सीटों पर चुनाव होना है, उनमें 8 लोकसभा सीटों पर एसपी और 5 लोकसभा सीटों पर बीएसपी चुनाव लड़ रही है। एसपी के हिस्से की जो 8 सीटें हैं, उनमें से दो सीटें ऐसी हैं, जिस पर समाजवादी पार्टी ने अंतिम दौर में अपना उम्मीदवार बदल दिया और दो सीटें ऐसी हैं, जिस पर एसपी अंतिम दिन के एक दिन पहले तक प्रत्याशी घोषित नहीं कर पाई। वहीं, दूसरी ओर अंतिम चरण की 13 सीटों में से जिन पांच सीटों पर बीएसपी चुनाव लड़ रही है, वहां पहले ही प्रत्याशी घोषित किया जा चुका है। 

वाराणसी में अंतिम दिन बदला प्रत्याशी
वाराणसी में पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ एसपी ने पहले शालिनी यादव को उतारा। जिस दिन शालिनी यादव को टिकट दिया गया, उसी दिन शालिनी से कांग्रेस छोड़कर एसपी का दामन थामा था। मगर 29 अप्रैल को नामांकन के अंतिम दिन समाजवादी पार्टी ने बीएसएफ के बर्खास्त तेज बहादुर यादव को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। बुधवार को तेज बहादुर यादव का पर्चा खारिज हो गया। अब फिर से शालिनी यादव महागठबंधन की उम्मीदवार हैं। मगर इस दो दिनों के घटनाक्रम ने पार्टी में स्थानीय स्तर पर चल रहे गतिरोध को भी उजागर कर दिया है। 

मिर्जापुर में भी बदला प्रत्याशी 
सिर्फ वाराणसी ही नहीं, मिर्जापुर में भी एसपी ने पहले राजेन्द्र एस बिंद को प्रत्याशी घोषित किया, लेकिन नामांकन के कुछ दिनों पहले ही बीजेपी छोड़कर एसपी में शामिल हुए रामचरित्र निषाद को पार्टी ने मिर्जापुर से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। इस तरह चंदौली लोकसभा सीट पर भी एसपी ने स्थानीय नेताओं पर भरोसा जताने की बजाय जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) के प्रमुख डॉ. संजय चौहान को प्रत्याशी बनाया है। पहले इस सीट पर समाजवादी पार्टी के एक बड़े नेता को टिकट दिए जाने की चर्चा थी। 

महराजगंज और बलिया में अंतिम दिन घोषित किए प्रत्याशी 
महराजगंज और बलिया लोकसभा सीट पर 7वें चरण में मतदान होना है। दोनों सीटों पर नामांकन की आखिरी तारीख 29 अप्रैल थी। दोनों सीटों के लिए समाजवादी पार्टी ने 28 अप्रैल की रात प्रत्याशी घोषित किया। दोनों सीटों को लेकर स्थानीय कार्यकर्ताओं और लोगों के बीच असमंजस की स्थिति रही। 

अंतिम समय में प्रत्याशी घोषित करने के नुकसान
जानकारों के मुताबिक अंतिम समय में प्रत्याशी घोषित करने से किसी भी दल को फायदा कम, नुकसान ज्यादा होता है। दरअसल, अंतिम समय में प्रत्याशी घोषित करने की वजह से प्रत्याशी को अपना प्रचार करने के लिए कम समय मिलता है। ऐसी स्थिति में प्रत्याशी को नुकसान भी हो सकता है, जब विपक्षी पार्टी ने कई दिनों पहले अपना प्रत्याशी घोषित किया हो। 

2012 के चुनाव में कई महीने पहले एसपी ने घोषित कर दिए थे प्रत्याशी
2012 के विधानसभा चुनावों में जब समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला था, तब पार्टी ने कई विधानसभा सीटों पर कई महीने पहले प्रत्याशी घोषित कर दिए थे। इसका फायदा पार्टी को मिला। 2012 में एसपी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार पहली बार बनी थी। मगर 2017 में एसपी ने अंतिम समय में प्रत्याशी घोषित किया था। इसका नुकसान पार्टी को विधानसभा चुनावों में उठाना पड़ा था। 
 

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