एशिया के बाकी देशों के बीच फूट डालो और राज करो की नीति अपना रहा चीन

लंदन
वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर यथास्थिति बनाए रखने की भारत की अरसे से चली आ रही कोशिशों का चीन कोई सम्मान नहीं करता है। भारत-चीन सीमा पर मौजूदा हालातों से यही बात साबित होती है। दक्षिण एशिया के मामलों पर नजर रखने वाली एक अमेरिकी थिंक टैंक ने यह बात कही है।

कार्नेगी एंडाउमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के सीनियर फेलो एश्ले टेलिस ने कहा कि अपनी इस बेशर्म कार्रवाई से चीन ने भारत को एशिया के बाकी देशों के साथ मिलकर ड्रैगन की फूट डालो और राज करो की रणनीति में आए नए बदलाव से निपटने के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया। हालांकि, नई दिल्ली इस मामले में अपने कदम फूंक-फूंक कर रख रहा है।

टेलिस के शोध के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के संबंध में भारत की आंतरिक कदमों को उकसावे की कार्रवाई मानते हुए चीन ने हिमालय की सीमा के नए हिस्सों पर अपना नियंत्रण बढ़ाने में लग गया है। जिसके चलते भारत से टकराव की स्थिति बनी। ऐसे में अगर मौजूदा बातचीत के कोई खास नतीजे नहीं निकलते हैं तो भारत के सामने दो मुश्किल विकल्प होंगे। भारत या तो अपने नुकसान को कम से कम करने की कोशिश करे या फिर अपनी ताकत का इस्तेमाल करेगा।

टेलिस ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चीन भारत के दावे वाले क्षेत्रों में तब तक कब्जा जमाए रह सकता है, जब तक कि चीनी सैनिकों को वहां से जबरन निकाल नहीं दिया जाता। भारत यह भी कर सकता है कि वह चीन की तर्ज पर ही रणनीति रूप से फायदे वाले अन्य विवादित क्षेत्रों में अपना कब्जा जमा ले। हालांकि, इससे बड़े टकराव की आशंका हो सकती है।

टेलिस के मुताबिक, 1990 के दशक के आखिर में चीन ने सीमाओं पर पेट्रालिंग की रणनीति अपनाई। दरअसल, चीन पूरे अक्साई चिन पर अपना कब्जा जमाना चाहता है। इसी अक्साई चिन का एक हिस्सा लद्दाख भी है। चीन ने सीमाओं पर विवाद की शुरुआत 1950 के दशक से की, मगर शीत युद्ध के बाद इसमें तेजी आ गई। उसने जानबूझकर सीमा से लगते क्षेत्रों पर अपना दावा करना शुरू कर दिया। इन क्षेत्रों का स्पष्ट नक्शा न होने से भी चीन को अपने नापाक इरादों को पूरा करने में मदद मिली।

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