उपचुनाव की तैयारियों में जुटा आयोग, बीजेपी-कांग्रेस की धड़कनें तेज, सीट बचाने बड़ी चुनौती

भोपाल
झाबुआ उपचुनाव को लेकर चुनाव आयोग ने तैयारियां शुरु कर दी है।झाबुआ विधानसभा के निर्वाचित विधायक गुमान सिंह डामोर ने रतलाम लोकसभा से चुने जाने के बाद विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था। चार जून से यह सीट रिक्त है। छह माह के भीतर चुनाव कराना जरूरी है, इसलिए माना जा रहा है कि सितंबर अंत तक चुनाव की घोषणा हो सकती है।इसके लिए मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने झाबुआ पहुंचकर मतदाता सूची, मतदान केंद्र, मतदान और मतगणना में लगने वाले कर्मचारी, ईवीएम और वीवीपैट की उपलब्धता सहित अन्य मुद्दों पर समीक्षा कर ली है।

आयोग द्वारा जो लोग यहां से चले गए हैं या अब नहीं रहे। उनके नाम काटने और नए नाम जोड़ने पर तेजी से काम चल रहा है।  घर-घर सर्वे कर पात्र व्यक्तियों के नाम मतदाता सूची में शामिल करने और अपात्रों के हटाने की प्रक्रिया चल रही है। साथ ही सूची की त्रुटियों में सुधार के लिए आवेदन भी लिए जा रहे हैं। कयास लगाए जा रहे है कि नवंबर दिसंबर में उपचुनाव कराए जा सकते है।

वही  चुनाव आयोग की तैयारियों को देखते हुए राजनैतिक पार्टियों में हलचल मच गई है। बीजेपी-कांग्रेस ने भी चुनाव को लेकर कमर कस ली है।हाल ही में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने झाबुआ के आदिवासियो को साधने बड़े ऐलान किए, मंत्री लगातार आदिवासियों के बीच पहुंचकर नब्ज टटोल रहे है। वही बीजेपी भी अपनी पैठ जमाने में जुट गई है।भाजपा ने भी इस सीट को अपने खाते में बरकरार रखने के लिए चुनावी तैयारियों को तेज कर दिया है। लगातार बैठकों का सिलसिला भी चल रहा है। इस बार ये सीट निकालना दोनों के लिए बडी चुनौती है।एक ओर जहां बीजेपी पर अपनी सीट बचाने का दबाव है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस यह सीट जीतकर विधानसभा में 50 प्रतिशत के आंकड़े तक पहुंचना चाहती है। परंपरागत तौर पर कांग्रेस की सीट माने जाने वाले झाबुआ से साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी।

विधानसभा में कांग्रेस विधायकों की संख्या 114, भाजपा 108, बसपा दो, सपा एक और निर्दलीय चार है।एक निर्दलीय विधायक प्रदीप जायसवाल कमलनाथ सरकार में मंत्री हैं तो बसपा, सपा और बाकी के तीन निर्दलीय विधायक सरकार का समर्थन कर रहे हैं। कांग्रेस इस सीट को जीतकर विधानसभा में अपनी ताकत और बढ़ना चाहती है। इसके मद्देनजर कांग्रेस ने उपचुनाव की तैयारी सीट रिक्त होने के साथ ही शुरू कर दी थी। मुख्यमंत्री कमलनाथ तीन-चार बार क्षेत्रीय नेताओं के साथ बैठक कर चुके हैं।

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