इस बैंक का नाम ‘बैड’ है तो इसे बैंकों के लिए गुड क्यों बताया जा रहा है?

नई दिल्ली 
इंडियन बैंक्स एसोसिशन ने सरकार को एक ‘बैड बैंक’ बनाने का प्रस्ताव दिया है. अगर यह प्रस्ताव माना गया तो यह बैड बैंक भारत के बैकों के लिए राहत बन सकता है यानी यह हमारी अर्थव्यवस्था और बैंकिंग तंत्र के लिए बहुत अच्छा कदम हो सकता है. अब यह बात चौंकाने वाली लगती है कि जिसे बैड बैंक कहा जा रहा है, वह बैंकिंग तंत्र के लिए अच्छा क्यों है. आइए इसकी पड़ताल करते हैं.

बैंकों की संस्था इंडियन बैंक एसोसिएशन (IBA) ने गत 12 मई को वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक को यह प्रस्ताव दिया कि देश में एक 'बैड बैंक' की स्थापना की जाए. मीडिया में सूत्रों से आई खबर में बताया गया है कि आईबीए ने सरकार से इसके लिए 10,000 करोड़ रुपये की शुरुआती पूंजी की भी मांग की है.
 
यह बैड बैंक असल में एक थर्ड पार्टी होगा जो बैंकों के बैड लोन यानी फंसे कर्ज खरीद लेगा और उसकी वसूली खुद करेगा. इस तरह बैंक अपने बहीखाते को साफ-सुथरा करेंगे और बैड बैंक फायदा कमाएगा. देश के वित्तीय तंत्र में बढ़ते नॉन परफॉर्मिंग एसेट (NPAs) के लिए इसे संकटमोचक या रामबाण इलाज की तरह देखा जा रहा है. लेकिन कुछ जानकार कहते हैं कि यह असल में एनपीए के लिए किसी टीके या वेंटिलेटर से ज्यादा क्वारनटीन सेंटर की भूमिका ही निभा सकता है.

क्या होता है एनपीए और बैड लोन

सबसे पहले यह जानते हैं कि एनपीए क्या होता है. जब कोई व्यक्ति या संस्था बैंक से लोन लेती है तो कई बार वह लोन वापस नहीं कर पाते. कभी ऐसा मजबूरियों के चलते तो कई बार लोगों का उद्देश्य ही फ्रॉड करना होता है. जब वह व्यक्ति या संस्था पूरा लोन या बचे हुए लोन की किस्तें देना बंद कर देती है तो उसे डिफॉल्टर कहा जाता है. हो सकता है कि यह डिफॉल्टर कुछ दिनों बाद पैसे देने शुरू दें, या एक दो किस्तों के बाद शायद. या फिर कुछ फॉलोअप के बाद.

विलफुल डिफॉल्टर उन कर्जदारों को कहते हैं जो सक्षम होने के बावजूद जानबूझकर कर्ज नहीं चुका रहे. लेकिन जब इनसे कर्ज वापसी की उम्मीद नहीं रहती तो बैंक इनके कर्ज को राइट ऑफ कर देते हैं यानी बट्टे खाते में डाल देते हैं. यह कर्जमाफी नहीं है, बल्कि ऐसे कर्ज को लगभग डूबा मान​ लिया जाता है और यह रिजर्व बैंक के नियम के तहत होता है.

रिजर्व बैंक के नियम के अनुसार, पहले ऐसे लोन को नॉन परफॉर्मिंग एसेट यानी एनपीए माना जाता है. फिर इसके बाद भी जब उनकी वसूली नहीं हो पाती और संभावना बहुत कम रहती है तो इस एनपीए को राइट ऑफ कर दिया जाता है यानी बट्टे खाते में डाल दिया जाता है. एनपीए को बैड लोन या फंसा हुआ कर्ज कहते हैं. पिछले 3 साल में बैंकों के एनपीए में 1.44 लाख करोड़ रुपये की बढ़त हुई है और यह 7.92 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 9.36 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया.
 
सबसे पहले कब आया आइडिया

बैड बैंक असल में ऐसे थर्ड पार्टी की तरह होगा जो बैंकों के बैड लोन यानी फंसे कर्जों का प्रबंधन करेगा. भारत में एक बैड बैंक बनाने का आइडिया सबसे पहले साल 2016-17 के इकोनॉमिक सर्वे में आया था. तब यह कहा गया था कि सार्वजनिक बैंकों के एनपीए की समस्या से निपटने के लिए एक पब्लिक सेक्टर रीहैबिलेशन एजेंसी (PARA) बनानी चाहिए. इस विचार के साथ ही बैड बैंक ने बीजरूप लिया. इसे बैड बैंक 1.0 कह सकते हैं.

इसके बाद आया बैड बैंक 2.0. साल 2019 में सरकार द्वारा गठित तीन बैंकर्स की समिति ने एक सुझाव दिया जिसके तहत प्रोजेक्ट सशक्त की सिफारिश की. इसने सुझाव दिया 500 करोड़ रुपये के उपर के कर्ज को एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) और एक अल्टर्नेटिव इनवेस्टमेंट फंड (AIF)का सुझाव दिया जैसा कि प्रस्तावित बैड बैंक में भी कहा गया था. समिति ने सुझाया कि 500 करोड़ रुपये से कम के कर्ज को एक इंटर क्रेडिटर एग्रीमेंट के द्वारा या 50 करोड़ तक के कर्ज को खुद बैंक ही हल कर लें.

अब जो प्रस्ताव आया है इसे बैड बैंक 3.0 कह सकते हैं. इसमें एक नेशनल एसेट रीकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (NARCL) की स्थापना की बात कही गई, जिसके लिए फंडिंग सपोर्ट सरकार करे. इसे जालसाजी वाले एकाउंट के ट्रांसफर के लिए रिजर्व बैंक से कुछ नियामक छूट देने की बात करें.

इसके पीछे सोच यह है कि बैंक अपने कर्ज ग्रोथ और अन्य तरक्की के बारे में अपना ध्यान लगाएं और एनपीए प्रबंधन का उनका झंझट बैड बैंक संभाल ले. देश में आर्थिक बदहाली के दौर में यह और भी जरूरी हो गया है कि बैंकों के खराब एकाउंट को क्वारनटीन में रखा जाए और वे हेल्दी क्रेडिट से ऐसे खराब एकाउंट दूर रहें ताकि आर्थिक तरक्की को सहयोग मिले.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *