इसलिए केवल राखी के दिन खुलता है भगवान विष्णु का यह प्राचीन मंदिर

हिंदू धर्म में कई तरह के त्योहार मनाए जाते हैं। राखी का त्योहार इसमें से एक है। साल भर बहन-भाई की कलाई पर राखी बांधने की प्रतीक्षा करती हैं। हालांकि यह आवश्यक नहीं है कि सिर्फ भाई की कलाई पर ही राखी बांधी जाए क्योंकि इस त्योहार का संबंध पारस्परिक प्रेम और रक्षा से भी होता है। पौराणिक मान्यताओं के आधार पर यह पर्व रक्षा का होता है बहन से राखी बंधवाने के साथ भाई बहन की रक्षा का संकल्प लेता है। इस आधार पर ईश्वर पूरी सृष्टि की रक्षा करते हैं। इसलिए इस दिन भगवान को भी राखी बांधने की परंपरा है। मंदिरों में भगवान की विशेष पूजा अर्चना भी की जाती है, लेकिन क्या आपको पता है कि एक ऐसा मंदिर है जो सिर्फ रक्षाबंधन के दिन ही खुलता है।

राखी के दिन खुलते हैं पट

बदरीनाथ क्षेत्र के उर्गम घाटी में स्थित श्री वंशी नारायण मंदिर साल के 364 दिन बंद रहता है और राखी के त्योहार पर ही इस मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते हैं। इस मंदिर के कपाट रक्षाबंधन के दिन सुबह से ही दर्शन के लिए खुल जाएंगे। इस मंदिर में भगवान की पूजा-अर्चना शाम को सूरज ढलने से पहले तक ही जाती है।

वंशीनारायण भगवान की होती है पूजा

इसके साथ ही इस मंदिर की एक खास बात यह भी है कि इस मंदिर में पूजा अर्चना भी सिर्फ रक्षाबंधन के दिन ही की जाती है। इस साल राखी का त्योहार 15 अगस्त को पड़ रहा है और तभी मंदिर के पट भी खोले जाएंगे। तो चलिए आज हम आपको भारत के इस मंदिर के बारे में विस्तार से बताते हैं।

उर्गम घाटी की बेटियां बांधती है राखियां

वंशीनारायण मंदिर उर्गम घाटी में 13 हजार फीट की ऊंचाई पर मध्य हिमालय के बुग्याल क्षेत्र में स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए उर्गम घाटी के गांव के निवासी करीब सात किमी तक पैदल चलकर मंदिर पहुंचते हैं। मंदिर तक का रास्ता बहुत ही ज्यादा उबड़ खाबड़ भी है। जिस पर चलना अत्यंत ही कठिन है यही वजह है कि वंशीनारायण मंदिर में प्रतिदिन पूजा नहीं की जाती है। चूंकि वंशी नारायण मंदिर के कपाट वर्षभर में सिर्फ एक ही दिन के लिए खुलते हैं, रक्षाबंधन के दिन उर्गम घाटी की बेटियां भगवान विष्णु को राखी बांधती हैं।

यह है पौराणिक मान्यता

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडव काल में हुआ था। मंदिर से जुड़ी एक धार्मिक मान्यता है कि इस मंदिर में देवऋषि नारद साल के 364 दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करते हैं और यहां पर मनुष्यों को पूजा करने का अधिकार सिर्फ एक दिन के लिए ही है।

मनुष्य करते हैं एक ही दिन पूजा

मनुष्यों को इस मंदिर में एक दिन पूजा करने का अधिकार देने के पीछे भी पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार एक बार राजा बलि ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वह उनके द्वारपाल बने। भगवान विष्णु ने राजा बलि के इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और वह राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए।

विष्णु भगवान बन गए थे द्वारपाल

भगवान विष्णु के कई दिनों तक दर्शन न होने कारण माता लक्ष्मी अत्यंत चिंतित हो गईं और नारद मुनि के पास गईं। नारद मुनि से माता लक्ष्मी से पूछा कि भगवान विष्णु कहां पर है? जिसके बाद नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को बताया कि वह पाताल लोक में हैं और राजा बलि के द्वारपाल बने हुए हैं।

माता लक्ष्मी ने बांधी राजा बलि को राखी

नारद मुनि ने माता लक्ष्मी से कहा कि विष्णु भगवान को राजा बलि से वापस पाने के लिए आप आप श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक में जाएं और राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांध दें। रक्षासूत्र बांधने के बाद राजा बलि से वापस नारायण को वापस मांग लें।

ऐसे शुरु हुई यह परंपरा

माता लक्ष्मी को पाताल लोक का रास्ता नहीं पता था, इसलिए नारदमुनि लक्ष्मी के आग्रह पर उनके साथ पाताल लोक चले गए। जिसके बाद नारद मुनि की अनुपस्थिति में कलगोठ गांव के पुजारी ने वंशी नारायण भगवान की पूजा की तब से ही यह परंपरा चली आ रही है।

राखी पर होता है विशेष आयोजन

वंशी नारायण मंदिर कत्यूरी शैली में निर्मित है और यहां भगवान विष्णु चतुर्भुज स्वरूप में विराजमान हैं। साथ ही भगवान गणेश और वन देवियों की मूर्तियां भी मंदिर प्रांगण में हैं। वंशी नारायण मंदिर में डुमक और कलगोठ गांव के ग्रामीण पूजा करते हैं। इस दिन भंडारे का भी आयोजन होता है। उर्गम, डुमक और कलगोठ गांव की बहू-बेटियां भगवान विष्णु को राखी बांधती हैं।

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