इमरान के तख्तापलट की तैयारी में PAK सेना?, वर्दी छोड़ बिजनेस मीटिंग करने लगे कमर बाजवा

 
नई दिल्ली 

जम्मू-कश्मीर के मसले पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के हाथों कूटनीतिक हार, देश में चल रही अर्थव्यवस्था की बुरी हालत ने पाकिस्तान को इन दिनों मुश्किलों में डाल दिया है. हर किसी के निशाने पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान हैं, इस सभी के बीच पड़ोसी मुल्क में तख्तापलट की अटकलों ने जोर दिया है. पाकिस्तानी सेना के प्रमुख कमर बाजवा ने गुरुवार को देश के बड़े व्यापारियों के साथ बैठक की, जिसके बाद से पाकिस्तान में तख्तापलट पर चर्चा शुरू हो गई है.

पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता आसिफ गफूर ने गुरुवार को इस बैठक की जानकारी दी और एक प्रेस नोट जारी किया. इसके अनुसार, ‘पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा उसके बिजनेस से जुड़ी है, इसी वजह से आज सेना प्रमुख ने देश के बड़े व्यापारियों के साथ बैठक की.’

पाकिस्तानी मीडिया में इस बात की अटकलें तेज हैं कि पाकिस्तान के बड़े बिजनेसमैन इमरान खान की नीतियों से परेशान चल रहे हैं, इसी वजह से अब कमर बाजवा ने उनकी परेशानी जानने की कोशिश की. कमर बाजवा अक्सर सेना की वर्दी में ही नज़र आते हैं लेकिन यहां वह वर्दी नहीं बल्कि सूट-बूट में बैठक करते नज़र आए.
 
लेकिन इस बैठक के बाद पाकिस्तान में तख्तापलट की बातें हो रही हैं, मीडिया चैनल में एक्सपर्ट भी इस बात को रख रहे हैं कि पाकिस्तान में अब लोग नए विकल्प को ढूंढ रहे हैं लेकिन सेना से बड़ा विकल्प कोई नहीं है. ऐसे में अब तख्तापलट ही सबसे बड़ा रास्ता है.

इससे पहले भी पाकिस्तान में सेना तख्तापलट कर चुकी है. फिर चाहे वो 1958, 1969, 1977 और 1999 ही क्यों ना हो. पाकिस्तान की जनता में भी सरकार के खिलाफ नाराजगी है. इमरान खान देश को आर्थिक संकट से उबारने में फेल होते नजर आ रहे हैं. जम्मू-कश्मीर के मसले को भी इमरान नहीं संभाल पाए, जिसकी बातें विपक्ष भी कर रहा है.

आसिफ गफूर ने जब इस ट्वीट को किया तो उन्हें ट्रोल का सामना भी करना पड़ा. क्योंकि नोट के आखिर में जब वह जम्मू-कश्मीर का जिक्र कर रहे हैं तो उन्होंने Vein की जगह Vain लिख दिया. प्रेस नोट में आसिफ गफूर ने लिखा कि जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान के गले के लिए ‘व्यर्थ’ है. हालांकि, वह ‘Vein’ यानी नस लिखना चाह रहे थे. इसी बात पर आसिफ गफूर को ट्रोल कर दिया और अपने अंग्रेजी ठीक करने की नसीहत दे डाली.

गौरतलब है कि पाकिस्तान में आम चुनाव से पहले आतंकियों और सेना ने खुले तौर पर इमरान खान का समर्थन किया था, लेकिन इमरान खान कामकाज संभाल नहीं पाए. ना ही अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर पाकिस्तान में कुछ हो पाया और ना ही जम्मू-कश्मीर के मसले पर कुछ हो पाया.

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