इंदिरा लहर में जीती थी कांग्रेस ने यह सीट, अब तीन दशक से बीजेपी का कब्जा

भोपाल
मध्य प्रदेश की कई सीटों ऐसी हैं जो बीजेपी के अभेद किले में तब्दील हो चुकी है। इन सीटों पर कांग्रेस का हर पैतरा नकाम साबित हुआ है। एक बार फिर कांग्रेस बीजेपी का गढ़ कही जाने वाली विदिशा लोकसभा पर किस्मात आजमा रही है। यह सीट 1989 से बीजेपी के कब्जे में हैं। यहां से वर्तमान सांसद सुषमा स्वराज हैं। फिलहाल वह चुनाव नहीं लड़ रही हैं। उनकी जगह बीजेपी ने यहां से रमाकांत भार्गव को उम्मीदवार बनाया है। 

इतिहास पर नजर डालें तो देश के चौथे आम लोकसभा चुनाव 1967 में विदिशा लोकसभा सीट पहली बार अस्तित्व में आई थी। सन 1967 से 2014 तक कुल 15 लोकसभा चुनावों में से 13 बार भाजपा, जनसंघ का कब्जा रहा है। वहीं, 1980 से 1989 तक दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर विजय पाई थी। अब 2019 के लिए चुनावी रण सज चुका है। दोनों ही दलों ने प्रत्याशी भी मैदान में ऊतार दिए हैं। इस बार दोनों ही दलों ने नए चेहरों पर दांव लगाया है। कांग्रेस ने जहां एक सप्ताह पहले प्रत्याशी की घोषणा कर दी थी, वहीं भाजपा ने काफी मंथन के बाद 17 अप्रैल को पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी पंडित रमाकांत भार्गव को मैदान में उतारा है। 

ऐसे में दोनों ही दलों के प्रत्याशियों के राजनैतिक अनुभव की बात करें तो कांग्रेस प्रत्याशी शैलेंद्र पटेल के पास दो बार विधानसभा चुनाव लडने का अनुभव है तो वहीं भाजपा प्रत्याशी पंडित रमाकांत भार्गव के पास सहकारिता व मार्कफेड का लंबा अनुभव होने के साथ ही उन्हें दो बर्ष का अपैक्स बैंक के अध्यक्ष का भी अनुभव हैं । 12 अप्रैल को कांग्रेस ने जब प्रत्याशी की घोषणा की थी तो पूरे संसदीय क्षेत्र के कांग्रेसजनों में प्रत्याशी को लेकर मायूसी छा गई थी कि विधानसभा में हारा हुआ प्रत्याशी, उस समय चल रहे संभावित भाजपा के नाम यथा शिवराज सिंह या साधाना सिंह चौहान से कैसे मुकाबला करेंगे । लेकिन शिव, साधना की जगह भाजपा ने पंडित रमाकांत भार्गव पर दांव लगाया तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होते हुए काग्रेंसी मन ही मन जीत के सपने देखने लगे हैं ।

विदिशा सीट एक बार इंदिरा लहर और एक बार अपातकाल के बाद हुए चुनाव में विजय हो पाई हैं । वरना इस सीट पर भारतीय संघ, जनता पार्टी या अब भाजपा का ही सदैव बोलबोला रहा हैं। इस सीट पर शिवराज की साख दांव पर लगी है, वहीं प्रदेश में कांग्रेस सरकार है ऐसे में अगर बीजेपी के नए प्रत्याशी को कांग्रेस हराने में नाकाम होती है तो इसकी ठीकरा कमलनाथ सरकार को जाएगा। 

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