इंटरनेट स्पीड का वर्ल्ड रेकॉर्ड , 1 मिनट में 42 हजार जीबी डेटा डाउनलोड

नई दिल्ली
केवल एक सेकेंड में 1000 से ज्यादा एचडी फिल्में डाउनलोड, ये किसी मजाक जैसा लगता है लेकिन झूठ नहीं है। आने वाला वक्त आपके लिए भी इस सपने को हकीकत में बदल सकता है क्योंकि रिसर्चर्स ने ऐसा कर दिखाया है। दुनिया के सारे रेकॉर्ड तोड़ते हुए ऑस्ट्रेलिया में रिसर्चर्स को जो इंटरनेट स्पीड मिली है, वह है Tbps यानी कि टेराबाइट प्रति सेकेंड में। यह इंटरनेट स्पीड इतनी ज्यादा है कि महज 1 मिनट में 42 हजार जीबी से ज्यादा डेटा डाउनलोड किया जा सकता है। नया वर्ल्ड रेकॉर्ड 44.2 Tbps की स्पीड का बना है।

स्पीड कितनी ज्यादा थी, इसे समझने के लिए अपने फोन या कंप्यूटर पर मिलने वाली डेटा स्पीड पर नजर डालते हैं। 1 मेगाबाइट में 10 लाख यूनिट्स डिजिटल इन्फॉर्मेशन होती है और अच्छे ब्रॉडबैंड कनेक्शन से 100Mbps की टॉप स्पीड मिलती है। यानी कि एक सेकेंड में 100MB डेटा रिसीव होता है। मोबाइल डेटा या वायरलेस कनेक्शन में यह स्पीड 1Mbps से भी कम होती है। जो स्पीड रिसर्चर्स को Tbps में मिली है, उसके एक टेराबाइट में 1000 अरब यूनिट डिजिटल इन्फॉर्मेशन होती है।

1 सेकेंड में सैकड़ों फोन का स्टोरेज फुल
अगर टेराबाइट प्रति सेकेंड में इंटरनेट स्पीड मिल रही हो तो एक सेकेंड में 1000GB डेटा डाउनलोड किया जा सकता है। जो स्पीड रिसर्चर्स को मिली है, वह 44.2Tbps थी, इसका मतलब है कि रिसर्चर्स ने एक सेकेंड में 44,200GB डेटा डाउनलोड किया। आसानी से समझना हो तो इस स्पीड पर 512 जीबी स्टोरेज वाले 86 से ज्यादा और 256 जीबी स्टोरेज वाले 172 से ज्यादा स्मार्टफोन्स का स्टोरेज फुल किया जा सकता है। ऐसा करने में केवल एक सेकेंड का वक्त लगेगा।

छोटे सा चिप लेगा 80 हार्डवेयर की जगह
ब्रिटेन की एवरेज ब्रॉडबैंड स्पीड 64 मेगाबाइट प्रति सेकेंड है। रिसर्चर्स ने यह रिकॉर्ड माइक्रो-कॉम्ब नाम के एक सिंगल चिप की मदद से बनाया है, जो मौजूदा टेलिकॉम हार्डवेयर की 80 लेयरर्स को केवल एक छोटे से चिप से रिप्लेस कर देता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसकी मदद से होम-वर्किंग, स्ट्रीमिंग और सोशलाइजिंग की डिमांड को बढ़ाया जा सकेगा। इसके अलावा नई टेक्नॉलजी सेल्फ-ड्राइविंग कारों, मेडिसिन और एजुकेशन के सेक्टर में भी मददगार साबित होगी।

सेकेंड के 1000वें हिस्से में लोड होंगे पेज
माइक्रो-कॉम्ब को मेलबर्न के यूनिवर्सिटी कैंपसेज को जोड़ने वाले नेटवर्क में प्लान्ट किया गया था। एक सिक्के से भी छोटा माइक्रो-कॉम्ब इन्वेंट करने वाले स्विनबर्न यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेविड मॉस ने कहा, 'इनकी मदद से बैंडविद की डिमांड को पूरा किया जा सकता है।' मोनाश यूनिवर्सिटी के डॉक्टर बिल कॉरकोरन ने कहा, 'यह हमारी एक छोटी सी झलक है, जो बताती है कि अगले दो से तीन साल में इंटरनेट के लिए बना ढांचा कैसे काम करेगा।' इससे कई गुना तेज स्पीड मिलेगी और इंटरनेट से जुड़े काम पलक झपकते किए जा सकेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *