आयुर्वेद से पित्त दोष को करने संतुलित
पित्त का अर्थ होता है गर्मी एवं पित्तअग्नि और जल दोनों का तत्व है। पित्त गर्म, तैलीय, तरल और बहता हुआ होता है। पित्त हमारे पाचन को नियंत्रित करता है, शरीर के तापमान को बनाए रखता है, त्वचा की रंगत,बुद्धि और भावनाओं पर भी पित्त का प्रभाव होता है। पित्त में असंतुलन आने के कारण व्यक्ति शारीरिक और भावनात्मक रूप से अस्वस्थ होने लगता है।
पित्त के असंतुलन के लक्षण
इसके लक्षणों में ज्यादा भूख और प्यास लगना, संक्रमण, बाल झड़ना या बालों का सफेद होना, हार्मोनल असंतुलन, माइग्रेन, गर्मी लगना, कुछ ठंडा खाने या पीने की इच्छा करना, मुंह से बदबू आना, गले में खराश, खाना न खाने पर जी मितली, अनिद्रा, स्तनों या लिंग को छूने पर दर्द होना, माहवारी के दौरान दर्द होना या ज्यादा खून आना शामिल है। इसके अलावा धैर्य कम होना, चिड़चिड़ापन, नाराज़गी, ईर्ष्या द्वेष, अस्थिरता की भावना रहती है।
पित्त दोष असंतुलित होने के कारण
तीखा, खट्टा, नमकीन, बहुत मसालेदार, तला हुआ, प्रोसेस्ड, रेड मीट खाने, कैफीन, ब्लैक टी, निकोटीन, शराब, धूप में ज्यादा रहने, भावनात्मक तनाव लेने, ज्यादा काम करने या आराम करने की वजह से पित्त दोष में असंतुलन आ सकता है।
पित्त दोष की वजह से होने वाली समस्याएं
यदि किसी व्यक्ति के शरीर में पित्त दोष असंतुलित हो जाता है तो सीने में जलन, सनबर्न, एक्जिमा, मुहांसे, एसिड रिफलक्स, पेप्टिक अल्सर, बुखार, खून के थक्के जमना, स्ट्रोक, किडनी में संक्रमण, हाइपरथायराइडिज्म, पीलिया, आर्थराइटिस, दस्त, क्रोनिक फटीग सिंड्रोम, कम दिखाई देना, ऑटोइम्यून विकार और डिप्रेशन की समस्या हो सकती है।
पित्त दोष दूर करने के उपाय
कड़वी, कसैली और मीठी चीजें खाएं। पित्त को शांत करने में घी, मक्खन और दूध लाभकारी होते हैं। खट्टे फलों की बजाय मीठे फलों का सेवन करें। इसमें शहद एक अच्छा विकल्प है।
ज्यादा शारीरिक गतिविधियों या अधिक आराम करने से बचें। आपको न तो बहुत ज्यादा काम करना है और न ही बहुत ज्यादा आराम।
संतुलित आहार लें और दोस्तों से खूब बातें। प्रकृति के साथ कुछ समय बिताएं।
पित्त को संतुलित करने का सबसे अच्छा तरीका मेडिटेशन या ध्यान भी है। इसके अलावा जो भी काम आपको पसंद है वो करें और ज्यादा से ज्यादा खुश रहने की कोशिश करें।
योग की मदद से भी पित्त दोष को संतुलित किया जा सकता है। मार्जरीआसन, शिशु आसन, चंद्र नमस्कार, उत्कतासन, भुजंगासन, विपरीत शलभासन, पश्चिमोत्तासन, अर्ध नौकासन, अर्ध सर्वांगासन, सेतु बंधासन और शवासन करें।
व्यक्ति के शरीर की प्रकृति को निर्धारित करने के लिए त्रिदोष होते हैं वात, पित्त और कफ। यदि इन तीनों में या इनमें से किसी एक दोष में असंतुल आ जाए तो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में व्यक्ति की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए ही इलाज किया जाता है। इलाज से पहले ये जाना जाता है कि व्यक्ति पित्त प्रकृति का है, वात या फिर कफ प्रकृति का।
त्रिदोष में हमारे खानपान, जीवनशैली, नींद, व्यायाम और दैनिक गतिविधयों के कारण बदलाव आता रहता है। विचारों का भी त्रिदोष पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए शरीर में त्रिदोष को संतुलित रखना बहुत जरूरी है।