आक्रामकता की शालीन सुषमा, दिल्‍ली की पहली महिला मुख्‍यमंत्री

भोपाल
एक ऐसे समय में जब लोगों ने लड़ने के एक से एक धारदार हथियार निकाल लिए हैं, तब सुषमा स्‍वराज (Sushma Swaraj) आक्रामकता की शालीनता के लिए याद की जाएंगी. अपने पूरे राजनैतिक सफर में सुषमा स्‍वराज ने एक से बढ़कर एक लड़ाईयां लड़ीं, लेकिन हर बार इस तरह कि उनका विरोधी भी उनकी शालीनता और गरिमा का कायल हुए बिना नहीं रह सका. उन्‍होंने अपना राजनैतिक सफर उस हरियाणा राज्‍य से शुरू किया जो आज भी महिलाओं के लिए वाकई कुरुक्षेत्र ही माना जाता है. समाजवाद से शुरू होकर धीरे-धीरे वे दक्षिणपंथ की ओर मुड़ीं और उनकी विचारधारा राष्‍ट्रवादी कहलाने लगी. वे पूरे भारत की नजर में तब आईं, जब वे दिल्‍ली की पहली महिला मुख्‍यमंत्री बनीं.

लेकिन, राज्‍यों की राजनीति सुषमा स्‍वराज (Sushma Swaraj)​ को बहुत समय तक बांध नहीं सकी. पहले हरियाणा और फिर दिल्‍ली के छोटे सफर के बाद उनका मन राष्‍ट्रीय राजनीति में ही लगा. अपने लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र चुनने में उन्‍होंने कभी संकोच नहीं किया. पार्टी ने जहां से और जब कहा सुषमा लड़ने को तैयार हो गईं. उन्‍होंने अपना अंतिम लोकसभा चुनाव अगर मध्‍य प्रदेश की विदिशा संसदीय सीट से लड़ा और जीता, तो 1998 में वे कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ कर्नाटक के बेल्‍लारी से चुनाव लड़ने से भी नहीं झिझकीं.

जिन्‍हें उस समय का घटनाक्रम याद होगा वे ही बता सकते हैं कि सुषमा स्‍वराज कैसे आखिर तक इंतजार करती रहीं कि जहां से सोनिया गांधी मैदान में उतरेंगी, वे वहीं जाकर उन्‍हें टक्कर देंगी. नामांकन का वक्‍त खत्‍म होने से पहले बेल्‍लारी से पर्चा भरके सुषमा ने कांग्रेस को सकते में डाल दिया था. हालांकि वे सोनिया गांधी से चुनाव हार गईं, लेकिन उनकी चुनावी अदा ने चुनाव प्रचार को नया रंग दे दिया था.

अगर वह चुनावों में चपल थीं, तो संसद में आक्रामक और विनम्र. फर्राटेदार अंग्रेजी और हिंदी में बात करने वाली सुषमा मंत्रिपद की शपथ अक्‍सर संस्‍कृत भाषा में ही लिया करती थीं. चाहे संसद हो या चुनाव प्रचार उनकी शैली हमेशा आक्रामक और भाषा हमेशा मधुर और संयमित होती थी. जिस जमाने में बीजेपी के पास अटल बिहारी वाजपेयी जैसे कुशल शब्‍दशिल्‍पी वक्‍ता हुआ करते थे, तब भी सुषमा स्‍वराज (Sushma Swaraj)​ ने अपनी भाषण कला से करोड़ों लोगों के हृदय पर असर किया था. उनके आक्रामक भाषणों में पिरोया जाने वाला विनोद, गंभीर माहौल को अचानक सहज और ज्‍यादा संप्रेषणीय बना देता था.

अपने राजनैतिक जीवन में उन्‍होंने एक ऐसी मानवीय गरिमा हासिल कर ली थी कि बड़े से बड़े आरोप उन पर चिपक नहीं पाते थे. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में जब उनके ऊपर ललित मोदी की मदद करने का आरोप लगा, तो दूसरे नेताओं की तरह उन्‍होंने पल्‍ला नहीं झाड़ा. उन्‍होंने कहा कि हां, उन्‍होंने मदद की थी, लेकिन मानवीय आधार पर. किसी बीमार व्‍यक्ति की मदद करना मनुष्‍यता है. अगर कोई और नेता ऐसी बात कहता तो जनता माफ नहीं करती, लेकिन सुषमा की साफगोई को लोगों ने दिल से स्‍वीकार किया.

उनकी साफगोई तब भी देखने को मिली, जब 2019 लोकसभा चुनाव से पहले मध्‍य प्रदेश विधानसभा चुनाव के प्रचार में उन्‍होंने कह दिया था कि वे इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगी. तब किसी को पता नहीं था कि 2019 में बीजेपी ऐसी बड़ी जीत हासिल करेगी. इसलिए तब उनके बयान को उनकी कमजोरी के तौर पर देखा गया. लेकिन अब पता चलता है कि वे राजनीति से नहीं, शरीर से थक रहीं थीं. लाल साड़ी में सजीं और सिंदूर से मोटी मांग भरे करवाचौथ की शाम टीवी पर दिखने वाला उनका भारतीय नायिका वाला स्‍वरूप बीमारी से टूट रहा था.

इसीलिए वह मोदी सरकार 2.O में मंत्री भी नहीं बनीं. उस समय भी लोगों को लगा कि शायद उन्‍हें किनारे किया गया है. ऐसा लगना स्‍वाभाविक था, क्‍योंकि पिछली सरकार में अगर प्रधानमंत्री के बाद किसी के कामों को वाहवाही मिली थी तो वह सुषमा ही थीं. पता नहीं उनके अलावा और कौन ऐसा मंत्री रहा होगा, जिसने इतने ज्‍यादा लोगों की मदद ट्विटर पर ही कर दी हो.

उत्‍तर प्रदेश में पासपोर्ट मिलने में हो रही देरी को लेकर एक मुस्लिम दंपति की मदद करके, तो उन्‍होंने अपने प्रशंसकों तक की निंदा को स्‍वीकार किया था. ट्रॉल्‍स ने उस समय यहां तक कह दिया था कि सुषमा स्‍वराज की फेल किडनी बदलती ही नहीं, तो अच्‍छा होता. उनके मरने तक की दुआएं की गई थीं. लेकिन सुषमा को इससे फर्क नहीं पड़ा. वे अपने काम में जुटी रहीं. लेकिन अपने जीवन के अंतिम दिन 6 अगस्‍त को उन्‍हें अंदेशा था कि उनके जाने का समय आ गया है.

आर्टिकल 370 की समाप्ति पर प्रधानमंत्री को ट्वीट में उन्‍होंने लिखा भी था, 'मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी.' इस ट्वीट के तीन घंटे बाद यम की सवारी उनके द्वार पर थी. वह चिरनिद्रा में सो गईं. इसके साथ ही आने वाली पीढ़ी की महिला नेताओं को संदेश दे गईं कि राजनीति में महिलाएं किसी गॉडफादर के सहारे ही आगे नहीं बढ़ सकतीं, वे किसी खानदान के दम पर, या धर्म या जाति के नाम पर आगे नहीं बढ़ सकतीं, वे अपने दम पर न सिर्फ बढ़ सकती हैं, बल्कि लड़कर जीत भी सकती हैं. लेकिन लड़ाई की भी एक मर्यादा है. आक्रामकता की भी एक शालीनता है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *