अवॉर्ड वापसी रिटर्न्स: फिल्मी हस्ती ने लौटाया पद्मश्री सम्मान

इंफाल 
पुरस्कार वापसी का दौर एक बार फिर से शुरू हो गया है। हालांकि, इस बार यह असहिष्णुता के मुद्दे पर नहीं बल्कि नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ शुरू हुआ है। मशहूर फिल्म निर्माता अरिबाम श्याम शर्मा ने नागरिकता संशोधन विधेयक-2016 के विरोध में रविवार को अपना पद्मश्री अवॉर्ड वापस लौटाने का ऐलान किया है। मणिपुरी फिल्म निर्माता अरिबाम को वर्ष 2006 में यह पुरस्कार मिला था। बता दें कि 83 वर्षीय फिल्म निर्माता और म्यूजिक कंपोजर अरिबाम की फिल्मों ने कई नैशनल फिल्म अवॉर्ड्स अपने नाम किए हैं। 

अरिबाम श्याम शर्मा ने इशानौ, संगाई- द डांसर डियर, इमगी निंग्थम जैसी कई फिल्में बनाईं। उनके द्वारा पुरस्कार वापसी के ऐलान के बाद लोगों के जेहन में 'सहिष्णुता-असहिष्णुता' को लेकर चली वह लंबी बहस फिर से कौंधने लगी है। पुरस्कार वापसी का यह दौर पहली बार नहीं शुरू हुआ है। 30 अगस्त 2015 को कर्नाटक में कन्नड़ लेखक एम. एम. कलबुर्गी की हत्या के मामले के बाद दादरी समेत कुछ और हिंसा की खबरें सामने आई थीं। इन घटनाओं के विरोध में तकरीबन 40 कलाकारों और लेखकों ने अपने पुरस्कार वापस कर दिए थे। हालांकि, इस बार मामला नागरिकता संशोधन विधेयक से जुड़ा है। 

जानिए क्या है नागरिकता संशोधन बिल 
गौरतलब है कि पूर्वोत्तर राज्यों में कई सामाजिक संगठन नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा नागरिकता विधेयक में किए गए संशोधनों का लगातार विरोध कर रहे हैं। यह बिल नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है। इस बिल के कानून बनने के बाद अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को 12 साल के बजाय 6 साल भारत में गुजारने पर भारतीय नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा। पूर्वोत्तर राज्यों में इस बिल के खिलाफ लोगों का बड़ा तबका प्रदर्शन कर रहा है। कांग्रेस, टीएमसी, सीपीएम सहित कुछ अन्य पार्टियां लगातार इस बिल का विरोध कर रही हैं। हालांकि, सरकार की ओर से कहा गया है कि यह बिल केवल असम तक सीमित नहीं है। इस बिल के जरिए पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश सहित दूसरे राज्यों में आए प्रवासियों को भी राहत मिलेगी। 

बिल के विरोध में असम की अस्मिता का हवाला 
असम में नागरिकता बिल के विरोध के पीछे असमियों का तर्क है कि अगर यह बिल पास हो जाता है तो इससे असमी भाषा और संस्कृति को लेकर खतरा उठ खड़ा होगा। असमी लोगों की दलील है कि इससे असम में बंगाली हिंदुओं की तादाद बढ़ने लगेगी, जो असम की आबादी में ऐसा असंतुलन पैदा करेगी कि वहां असमिया लोगों के अल्पसंख्यक होने का खतरा बढ़ जाएगा। भले ही इस बिल के जरिए सबसे बड़ा फायदा बंगाली हिंदुओं को मिलना माना जा रहा है, मगर बीजेपी को भी कम राजनीतिक फायदा नहीं हो रहा। बंगाली हिंदुओं का मुद्दा उसे असम, नॉर्थ-ईस्ट के त्रिपुरा सहित कई राज्यों और पश्चिम बंगाल में अच्छा-खासा माइलेज दिला सकता है। 

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