अयोध्या विवाद: सुप्रीम कोर्ट में 5 सदस्यीय संविधान पीठ आज करेगी सुनवाई

नई दिल्ली
संवेदनशील अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मसले की सुनवाई उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ आज करेगी। इस बेंच का नेतृत्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई करेंगे। उनके अलावा अन्य 4 जज जस्टिस एस.ए. बोब्डे, जस्टिस एन.वी. रमन्ना, जस्टिस यू.यू. ललित और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ शामिल होंगे। बता दें कि 6 जनवरी को अदालत ने इस मसले पर सुनवाई करते हुए इसके लिए बेंच गठित करने की बात कही थी।

यह पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करेगी। शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने गत वर्ष 27 सितंबर को 2-1 के बहुमत से मामले को शीर्ष अदालत के 1994 के एक फैसले में की गई उस टिप्पणी को पुनर्विचार के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने से मना कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है।

पिछली सुनवाई में यह हुआ था
यह मामला अयोध्या भूमि विवाद मामले पर सुनवाई के दौरान उठा था। जब मामला 4 जनवरी को सुनवाई के लिए आया था तो इस बात का कोई संकेत नहीं था कि भूमि विवाद मामले को संविधान पीठ को भेजा जाएगा, क्योंकि शीर्ष अदालत ने बस इतना कहा था कि इस मामले में गठित होने वाली उचित पीठ 10 जनवरी को अगला आदेश देगी। नवगठित पांच सदस्यीय पीठ में न केवल मौजूदा प्रधान न्यायाधीश होंगे, बल्कि इसमें चार अन्य न्यायाधीश भी होंगे, जो भविष्य में सीजेआई बन सकते हैं। न्यायमूर्ति गोगोई के उत्तराधिकारी न्यायमूर्ति बोबडे होंगे। उनके बाद न्यायमूर्ति रमण, न्यायमूर्ति ललित और न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की बारी आएगी।

अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद से संबंधित 2.77 एकड़ भूमि के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 30 सितंबर, 2010 के 2-1 के बहुमत के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 अपीलें दायर की गई हैं।

क्या है पूरा मामला
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दिवानी मुकदमा भी चला। टाइटल विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई हाई कोर्ट ने दिए फैसले में कहा था कि तीन गुंबदों में बीच का हिस्सा हिंदुओं का होगा, जहां फिलहाल रामलला की मूर्ति है।

निर्मोही अखाड़े को दूसरा हिस्सा दिया गया, इसी में सीता रसोई और राम चबूतरा शामिल हैं, बाकी एक तिहाई हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दिया गया। इस फैसले को तमाम पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए यथास्थिति बहाल कर दिया था। इसके बाद पिछले साल मामले की सुनवाई शुरू हुई थी।

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