अयोध्या मामला: किशोर कुणाल की जिस किताब पर सुप्रीम कोर्ट में हुआ विवाद, उसमें क्या है

 नई दिल्ली 
अयोध्या में विवादित स्थल से जुड़े मामले की बुधवार को अंतिम दिन सुनवाई के दौरान हिन्दू महासभा की ओर से पेश किताब अयोध्या रिविजिटेड को लेकर विवाद हो गया। किताब के साथ इसमें एक नक्शा पेश किया गया है, जिसमें दावा किया गया है कि विवादित स्थल पर ही मंदिर था।

पूर्व आईपीएस किशोर कुणाल की इस किताब में दावा किया गया है कि छह दिसंबर 1992 को जिस विवादित ढांचे का विध्वंस किया गया था, वो बाबरी मस्जिद नहीं थी। कुणाल के मुताबिक इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हैं कि यहीं पर राम मंदिर विराजमान हैं। वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने इस नक्शे को 2016 में प्रकाशित कुणाल की इस किताब से निकालकर अदालत में पेश किया था। इसमें लिखा गया है कि अयोध्या स्थित राम मंदिर को बाबर के आदेश पर 1528 में उसके सेनापति मीर बाकी ने ध्वस्त नहीं किया था, बल्कि इसे 1660 में औरंगजेब के रिश्तेदार फिदाई खान ने तोड़ा था। खबरों के मुताबिक, इसको लेकर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन के साथ उनकी तीखी तकरार हुई। कोर्ट की कार्यवाही के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने इस नक्शे को फाड़ दिया और चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को हस्तक्षेप करना पड़ा। 

किताब में कहा गया है कि बाबरनामा में मंदिर को तोड़ने और मस्जिद को बनाने का कोई जिक्र नहीं है और ज्यादातर मंदिर औरंगजेब के शासन में तोड़े गए। कुणाल के अनुसार, इतालवी यात्री मनूची ने अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा है कि औरंगजेब ने भारत के कई मंदिरों को तुड़वाया था। उन्होंने दावा किया कि किताब में तीन नक्शे हैं जहां पर जन्मस्थान की सही जगह अंकित हैं। 

चंद्रशेखर ने कुणाल को विशेष दूत बनाया था
किशोर कुणाल मंदिर-मस्जिद विवाद पर लंबे समय से जुड़े हैं। वर्ष 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने अयोध्या मसला के समाधान की कोशिश में उन्हें विशेष दूत नियुक्त किया था। कुणाल महंत रामचंद्रदास परमहंस एवं बजरंगबली की शीर्ष पीठ हनुमानगढ़ी के शीर्ष महंत ज्ञानदास के करीबी रहे हैं। वे सुप्रीमकोर्ट में विचाराधीन मंदिर-मस्जिद विवाद के पक्षकार भी हैं। 
 

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