अयोध्या केस में क्यों खारिज हुआ मुस्लिम पक्ष का दावा, ये 5 बातें बनी आधार

 
नई दिल्ली 

सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार शनिवार को अयोध्या मामले का पटाक्षेप कर दिया. पिछले दो महीनों में 40 दिन की नियमित सुनवाई के बाद देश की सर्वोच्च अदालत ने कानूनी सबूतों के आधार पर सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए अयोध्या में राम मंदिर का रास्ता साफ कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर वाली पांच जजों की पीठ ने अयोध्या की विवादित जमीन पर 1045 पेज के अपने फैसले में कई अहम बातें कही हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन पर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के साथ ही निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज कर दिया. हालांकि साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रामलला विराजमान और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के साथ निर्मोही अखाड़े को भी बराबर जमीन देने का फैसला सुनाया था. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि निर्मोही अखाड़े को सरकार ट्रस्ट में शामिल कर सकती है. यह फैसला सर्वसम्मति से आया है, जिसमें आस्था या विश्वास की जगह सबूतों को आधार बनाया है.

अब सवाल यह उठ रहा है कि यहां पर मुस्लिम पक्ष का दावा क्यों खारिज हुआ? इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष और सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा ने अयोध्या की विवादित जमीन से मुस्लिम पक्ष के दावे के खारिज होने की निम्न वजहें बताईं….

1. मस्जिद के ढांचे के नीचे से नहीं मिला इस्लामिक ढांचा
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा के मुताबिक इस मामले में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने अपनी दलील में कहा कि बाबर के शासनकाल में मंदिर को ढहाकर बाबरी मस्जिद नहीं बनाई गई थी, बल्कि ईदगाह की जगह पर बनाई गई थी. हालांकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की 2003 की रिपोर्ट में साफ किया गया कि मस्जिद के नीचे से कोई इस्लामिक ढांचा नहीं मिला, जिससे साबित होता है कि मस्जिद ईदगाह पर नहीं बनाई गई.

शर्मा के अनुसार एएसआई ने यह भी कहा कि खुदाई में मस्जिद के नीचे से हिंदू धर्म से जुड़े सबूत मिले. सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट विनय कुमार गर्ग का भी यही कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत एएसआई की रिपोर्ट को सबूत के रूप में स्वीकार किया और मुस्लिम पक्ष का दावा खारिज हो गया.

2. विवादित जमीन पर प्रतिकूल कब्जे का दावा खारिज
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष ने एडवर्स पजेशन का दावा किया. इसका मतलब यह है कि मुस्लिम पक्ष के पास विवादित जमीन का असली मालिकाना हक नहीं था, लेकिन उसने कब्जे के आधार पर मालिकाना हक का दावा किया था.

मुस्लिम पक्ष की दलील थी कि अगर हिंदू पक्ष की बात मान भी ली जाए कि मंदिर को ढहाकर मस्जिद बनाई गई, तो उस पर एडवर्स पजेशन का अधिकार बनता है. वहां पर साल 1528 में बाबर के शासनकाल में बाबरी मस्जिद बनाई गई और मुस्लिमों का कब्जा रहा. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के दावे को सिरे से खारिज कर दिया. इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी मुस्लिम पक्ष के एडवर्स पजेशन की दलील को खारिज कर दिया था.

3. मुस्लिमों ने विवादित पूरी जमीन का नहीं किया इस्तेमाल
सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा ने कहा कि अयोध्या की पूरी विवादित जमीन का मुस्लिमों ने इस्तेमाल नहीं किया. मंदिर के भीतरी अहाते में मस्जिद थी, जबकि बाहरी अहाते में हिंदू लगातार पूजा करते रहे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिमों का 2.77 एकड़ विवादित जमीन के पूरे हिस्से में कब्जा नहीं था. मुस्लिम पूरी विवादित जमीन पर नमाज नहीं पढ़ते थे. इसके अलावा कई बार नमाज पढ़ना भी बंद रखा गया.

वहीं, हिंदू पक्षकार जमीन एक हिस्से में लगातार पूजा करते थे. कोर्ट ने माना कि मंदिर के बाहरी अहाते में भगवान राम की पूजा होती रही. लिहाजा पूरे विवादित जमीन पर मुस्लिम पक्ष का दावा नहीं है. कोर्ट ने कहा कि हिंदू पक्ष की तरह मुस्लिम पक्ष का भी दावा है. लिहाजा यह जमीन रामलला विराजमान को दी जाती है. सीनियर एडवोकेट विनय कुमार गर्ग का कहना है कि अगर कोई किसी जमीन पर अपने कब्जे का दावा करता है और उसके एक हिस्से को इस्तेमाल करना छोड़ देता है, तो उसका अधिकार खत्म माना जाता है.

4. मस्जिद में 325 साल तक नमाज पढ़ने के सबूत नहीं
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट उपेंद्र मिश्र ने बताया कि अदालत में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दावा किया कि अयोध्या की विवादित जमीन पर मुगल सम्राट बाबर द्वारा या उसके आदेश पर 1528 में बाबरी मस्जिद बनाई गई थी. हालांकि मस्जिद बनाने की तारीख से 1856-57 यानी 325 साल से ज्यादा समय तक विवादित जमीन पर नमाज पढ़ने की बात साबित नहीं हुई. इस दरम्यान विवादित जमीन पर कब्जे को लेकर मुस्लिम पक्षकार कोई ठोस सबूत भी नहीं पेश कर पाए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां तक मंदिर के बाहरी अहाते की बात है, तो वहां पर मुस्लिमों के कब्जे की बात को स्वीकार करना संभव नहीं है. मंदिर के बाहरी अहाते पर हिंदू पूजा करते थे और उनका कब्जा था, यह बात साफ हो रही है.
5. ब्रिटिश काल में भी मुस्लिम पक्ष के दावे को नहीं मिली मंजूरी
 एडवोकेट उपेंद्र मिश्र के मुताबिक कोर्ट ने पाया कि साल 1856-57 में सांप्रदायिक दंगे के बाद ब्रिटिश काल में ईंट की दीवार बनाई गई थी, ताकि हिंदू-मुस्लिम के बीच विवाद को रोका जा सके और शांति स्थापित की जा सके. इसके बाद मंदिर के बाहरी अहाते में हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दे दी गई थी. चबूतरा पर भगवान राम की पूजा करना इस बात का साफ संकेत है कि वहां पर हिंदू लगातार पूजा करते रहे हैं. जब अयोध्या में विवादित जमीन पर ईंट की दीवार बनाई गई, उस समय हिंदू और मुस्लिम में से किसी के मालिकाना हक की बात नहीं की गई. इस दीवार को सिर्फ हिंदू और मुस्लिमों के बीच शांति बहाली के लिए बनाया गया था.

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