अमेठी में बीजेपी ने बढ़ाई राहुल की असुरक्षा, बसपा ने किया आश्वस्त

 
नई दिल्ली  
       
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी परंपरागत संसदीय सीट अमेठी के साथ केरल की वायनाड सीट से भी लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है. राहुल के इस फैसले को विरोधी दल उनकी कमजोरी बता रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी के नेता और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने चुटकी लेते हुए कहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष अमेठी में असहज, असुरक्षित और असहाय महसूस कर रहे हैं. लेकिन क्या वाकई राहुल गांधी के लिए अमेठी में अपने परिवार की विरासत को मजबूती से आगे बढ़ाना मुश्किल गया है, या फिर उन्होंने दक्षिण की राजनीति में पार्टी को गति देने के मकसद से एक और सीट चुनने का निर्णय लिया है.

अमेठी संसदीय सीट को कांग्रेस का अभेद्य किला माना जाता है. इस लोकसभा सीट पर अब तक 16 आम चुनाव और 2 उपचुनाव हुए हैं. इनमें से कांग्रेस ने 16 बार जीत दर्ज की है. बीजेपी ने अमेठी में 1998 में जीत दर्ज की थी, जबकि उससे पहले एक बार 1977 में यहां से जनता पार्टी ने बाजी मारी थी. इन दो चुनावों के अलावा अमेठी से हुए किसी भी चुनाव में कांग्रेस के अलावा कोई दूसरी पार्टी जीत नहीं सकी है. हालांकि, 2014 में जब नरेंद्र मोदी के नाम पर बीजेपी ने पूरे देश में जबरदस्त जीत हासिल की और यूपी की 80 में 71 सीटों पर अपना परचम लहराया तो अमेठी सीट पर भी बीजेपी उम्मीदवार ने राहुल गांधी के दांत लगभग खट्टे कर दिए.

2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर राहुल गांधी ने चुनाव लड़ा और उनका मुकाबला बीजेपी प्रत्याशी स्मृति ईरानी से हुआ. राहुल गांधी को इस चुनाव में कुल 4,08,651 वोट मिले, जबकि दूसरे नंबर पर स्मृति ईरानी रहीं और उन्होंने 3,00,748 वोट हासिल किए. यानी राहुल की जीत का अंतर महज 1 लाख 7 हजार 903 वोट रहा. यूं तो एक लाख से ज्यादा मतों की जीत भी कम नहीं मानी जाती, लेकिन राहुल गांधी के पूरे करियर में उनकी जीत का यह मार्जिन सबसे कम था. एक और दिलचस्प आंकड़ा ये कि राज्य की कुल 80 लोकसभा सीटों में से 24 सीट ही ऐसी थीं, जिन पर जीत का अंतर एक लाख के पास या उससे कम रहा था. यानी मोदी लहर में बीजेपी के सभी छोटे-बड़े प्रत्याशियों ने दो लाख से लेकर तीन-चार लाख मतों के अंतर से चुनाव जीता था.
 
2004 में राहुल को मिले 66.2% वोट
2004 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने वाले राहुल गांधी ने अमेठी सीट से ही लड़ते हुए 3,90,179 वोट (66.2%) हासिल किए थे. जबकि 99,326 (16.8%) मतों के साथ बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी चंद्र प्रकाश मिश्रा दूसरे नंबर पर रहे थे. तीसरे नंबर पर बीजेपी के रामविलास वेदांती रहे थे और उन्हें कुल 55,438 (9.4%) वोट मिले थे. यानी राहुल गांधी ने अपना पहला चुनाव ही 2 लाख 90 हजार से ज्यादा मतों से जीता था. इसके बाद दूसरे चुनाव में राहुल गांधी का ग्राफ और ऊंचा चला गया.

2009 में राहुल को मिले 71.8% वोट
राहुल गांधी ने जब पहला चुनाव लड़ा तो केंद्र में उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी, लेकिन 2009 में जब कांग्रेस सत्ता में थी और राहुल अमेठी से अपना दूसरा चुनाव लड़े तो विरोधी प्रत्याशी उनके सामने धराशाई हो गए. राहुल ने 4,64,195 वोट हासिल करते हुए कुल मतों का 71.8% हिस्सा अपने नाम कर लिया. जबकि बहुजन समाज पार्टी के आशीष शुक्ला 93,997 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे और बीजेपी प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह को महज 37,570 वोट मिले.

2014 में राहुल को मिले 46.7% वोट
2014 में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में स्मृति ईरानी अमेठी के रण में उतरीं तो बीजेपी का वोट 5.8% से छलांग लगाता हुआ सीधे 34.4% पहुंच गया और राहुल गांधी का सेंसेक्स 71.8% से गिरकर 46.7% पर आ टिका. जबकि हमेशा कांग्रेस प्रत्याशी को टक्कर देने वाली बीएसपी तीसरे नंबर पर खिसक गई और उसके प्रत्याशी को महज 6.6 फीसद वोट मिल पाए. आम आदमी पार्टी के टिकट पर मशहूर कवि कुमार विश्वास ने भी चुनौती देने की भरपूर कोशिश की, लेकिन वो महज 25 हजार वोट ही हासिल कर पाए. शायद ये आंकड़े ही बीजेपी को यह दावा करने का आधार दे रहे हैं कि राहुल गांधी अमेठी में असहज महसूस कर रहे हैं. लेकिन अमेठी लोकसभा क्षेत्र के जातिगत समीकरण और बहुजन समाज पार्टी का इस सीट से चुनाव लड़ना राहुल गांधी के पक्ष में एक बड़ा फैक्टर भी माना जा सकता है.

दरअसल, अमेठी लोकसभा सीट पर दलित और मुस्लिम मतदाता किंगमेकर की भूमिका में हैं. यहां मुस्लिम मतदाता 4 लाख के करीब हैं और तकरीबन साढ़े तीन लाख वोटर दलित हैं. इनमें पासी समुदाय के वोटर काफी अच्छे हैं. इसके अलावा यादव, राजपूत और ब्राह्मण भी इस सीट पर अच्छे खासे हैं. सपा अमेठी से अपना प्रत्याशी नहीं उतारती है और इस बार गठबंधन में लड़ रही बसपा ने भी अमेठी से कोई प्रत्याशी न उतारने का निर्णय लिया है. ऐसे में कांग्रेस इस समीकरण को देखकर राहत की सांस ले सकती है कि अपने परंपरागत मतों के साथ इस बार राहुल गांधी दलित और यादव समाज का अच्छा वोट पाकर अपने विजयी रथ को जारी रखने में कामयाबी हासिल कर सकते हैं.  

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