अमझेरा जो भी CM जाता, छिन जाती है कुर्सी, कमलनाथ के जाने पर भी संशय बरकरार

धार

मध्य प्रदेश की राजनीति से कई मिथक जुड़े हैं लेकिन जब बात कुर्सी की होती है तब कोई भी नेता रिस्क लेना नहीं चाहता। प्रदेश की एक ऐसी ही जगह अमझेरा है जहां सीएम पद पर रहते हुए बीजेपी और कांग्रेस के नेता जाने से डरते हैं, जो इस जगह गया है उसे अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा। फिर चाहें यहां कोई बड़ा कार्यक्रम हो या फिर कोई बैठक मुख्यमंत्री रहते हुए यहां कोई नहीं जाना चाहता।

                इस डर से 14 साल से आजतक कोई भी मुख्यमंत्री यहां सभा लेने के लिए नहीं आया। क्योंकि पूर्व में दिग्विजसिंह, उमा भारती और बाबूलाल गौर यहां सभा लेने आए, लेकिन इसके बाद वे फिर कभी मुख्यमंत्री के पद को नहीं पा सके। यही कारण रहा कि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी अनेक मर्तबा धार जिले में आए, लेकिन वे अमझेरा नहीं आए, बल्कि यहां से पांच किमी दूर मांगोद में सभा लेकर रवाना हो गए। इस बार भी कुछ ऐसी ही स्थिति देखने को मिल रही है। वर्तमान मुख्यमंंत्री कमलनाथ के 11 मई को होने वाली कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सभा में आने पर संशय बना हुआ है। हालांकि क्षेत्रीय विधायक प्रताप ग्रेवाल ने कहा कि इस बार हम सीएम कमलनाथ को अमझेरा लाकर इस भ्रम को हमेशा के लिए खत्म कर देंगे।

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पिछले लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी ने धार जिले में सभा ली थी, जिसके बाद वे ही नहीं पार्टी को प्रचंड बहुमत से जीत मिली और वे प्रधानमंत्री बने। इस बार विधानसभा चुनाव से पहले हुई राहुल की सभा का असर देख लोकसभा चुनाव में भी उनकी सभा हो रही है। चर्चा है कि पहले लोकसभा चुनाव में मोदी आए और प्रधानमंत्री बने तो क्या इस बार के पीएम कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी होंगे।

इनके यहां आते ही गई सत्ता, दोबारा सीएम नही बने

दिग्विजयसिंह  जो 10 फरवरी 2003 को आए थे यहां

उमा भारती  जो 10 फरवरी 2004 में अमझेरा आईं

बाबूलाल गौर  17 नवंबर 2005 को अमझेरा आए

इछावर में भी कदम रखने से डरते है मुख्यमंत्री

सिर्फ अमझेरा ही नही बल्कि इछावर और अशोकनगर से भी यह खौफा जुड़ा है। अपनी 13 साल की सत्ता के दौरान सीएम शिवराज ने आज तक यहां कदम नहीं रखा है, जबकि इछावर राजधानी भोपाल से महज 57 किलोमीटर दूर है। वहां के लोगों के मुताबिक इछावर के चारों तरफ बावड़ी और शमशान घाट हैं, जिसके चलते यह किसी भी मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने का कारण बन जाती है और यही कारण है कि कोई भी मुख्यमंत्री यहां जनसभाएं नहीं करते. जो भी मुखिया यहां किसी कार्यक्रम या सम्मेलन में पहुंचता है वह कभी दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बन पाता।हालांकि इछावर के मिथक को तोड़ने का प्रयास कई मुख्यमंत्री कर चुके हैं लेकिन जितने भी मुख्यमंत्रियों ने यहां कदम रखा उन सभी को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी।2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इस मिथक को तोड़ने के लिए 15 नवंबर, 2003 को आयोजित सहकारी सम्मेलन में शामिल होने इछावर आए थे। इस दौरान दिग्विजय सिंह ने अपने भाषण में कहा था कि "मैं मुख्यमंत्री के रूप में इछावर के इस मिथक को तोड़ने आया हूं" और उनकी इस यात्रा के बाद मध्य प्रदेश में हुए चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का मुंह देखना पड़ा था

अशोकनगर को लेकर भी है अंधविश्वास

यह भी माना जाता है कि जब 1988 में कांग्रेस की सरकार थी और मोतीलाल वोरा मुख्यमंत्री थे. एक बार वे तत्कालीन रेल मंत्री माधवराव सिंधिया के साथ रेलवे स्टेशन के फुट ओवर ब्रिज का उद्घाटन करने अशोकनगर स्टेशन आए थे। यह ब्रिज दोनों पर ही भारी पड़ा। थोड़े दिनों बाद ही मोतीलाल वोरा को कुर्सी छोड़नी पड़ गई। इसके बाद मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी और मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा बने। इस मिथक को मानने वाले बताते हैं कि पटवा जैन समाज के पंच कल्याणक महोत्सव में शामिल होने अशोक नगर आए थे। यह वही दौर था जब अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाया जा रहा था। चारों तरफ दंगे भड़क गए और राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इस दौरान पटवा की भी कुर्सी जाती रही.

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