अब टीबी मरीजों में दोबारा संक्रमण का खतरा, लॉकडाउन में दवा लेने में बरती लापरवाही

 पटना 
लॉकडाउन के दौरान दवा लेने में बरती गई लापरवाही राज्य के टीबी मरीजों पर भारी पड़ने लगी है। उनमें टीबी का दोबारा अटैक यानी एमडीआर टीबी का खतरा बढ़ गया है। यह एम्स पटना के सर्वे में सामने आया है। एम्स के पल्मोनरी विभाग के डॉक्टरों की टीम ने राज्यभर के 250 से अधिक टीबी मरीजों के बीच यह सर्वे किया। फोन और अस्पताल आने वाले मरीजों के बीच सर्वे किया गया। 

विभाग के अध्यक्ष डॉ. दीपेंद्र कुमार राय ने बताया कि सर्वे के दौरान कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। सर्वे में  मरीजों ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों के कई अस्पतालों व नजदीक केंद्रों से मरीजों को निशुल्क मिलने वाली दवा नहीं मिली। कई जगह समय पर डॉक्टरों के नहीं मिलने के कारण मरीज अपने लिये दवा नहीं ले पाए। इस पूरे लॉकडाउन में 20 से 25 प्रतिशत टीबी मरीजों ने किसी ना किसी कारण से दवा छोड़ दी। 

उन्होंने बताया कि टीबी मरीजों को लॉकडाउन में लगातर दो से तीन महीने दवा नहीं मिलने से भविष्य में ऐसे मरीजों में  एमडीआर टीबी का खतरा काफी बढ़ गया है। देश में प्रतिदिन 1200 से 1500 टीबी मरीज मरते हैं। इनमें बिहार के मरीजों की संख्या भी अच्छी खासी है। मरने वाले अधिकतर लोग एमडीआर टीबी के ही शिकार होते हैं। 

क्या है एमडीआर टीबी
एम्स के सर्वे करने वाली टीम के प्रमुख डॉ. दीपेंद्र ने बताया कि सामान्य टीबी में मरीजों को जो दवा दी जाती है। अगर कोई मरीज छह माह तक चलने वाली इस दवा का नियमित सेवन करे तो उसकी टीबी की बीमारी ठीक हो जाती है। मगर  बीच में दवा छोड़ देने पर यह एमडीआर टीबी का रूप ले लेती है। 

दो साल तक इलाज
एमडीआर टीबी का एडवांस स्टेज है, जिसमें सामान्य दवाइयां काम नहीं करती हैं। इसमें दवा का डोज बढ़ जाता है और छह माह की बजाय दो साल तक दवा खानी पड़ती है। छह इंजेक्शन भी लेने पड़ते हैं। दो साल के डोज में एक-दो सप्ताह दवा छूट जाए जो यह जान पर भारी पड़ने लगती है। 

दमा मरीजों के लिए अच्छा रहा लॉकडाउन
टीबी मरीज के लिए लॉकडाउन ठीक नहीं रहा तो दूसरी ओर यह दमा (अस्थमा) मरीजों के लिए काफी अच्छा रहा। गाड़ी-मोटर और कारखाने आदि नहीं चलने से प्रदूषण कम हुआ। इससे दमा मरीजों को सांस लेने में कम परेशानी हुई। दूसरे वे गंभीर रूप से भी कम बीमार हुए। पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष दमा मरीज एम्स में भी कम आए। डॉ. दीपेंद्र ने बताया कि पल्मोनरी विभाग ने सर्वे में पाया कि पिछले वर्ष अप्रैल और मई में दमा के 21 मरीज गंभीर अवस्था में भर्ती होने एम्स आए थे, वहीं इस वर्ष ऐसे मरीजों की संख्या सिर्फ नौ रही।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *