अफसरों के पर कतरे, वित्त मंत्री के अधिकारों में इजाफा
भोपाल
राज्य सरकार ने वित्त विभाग में अफसरों के पावर पर कम करते हुए वित्त मंत्री के अधिकारों में इजाफा कर दिया है। इसके लिए राज्य सरकार ने दस साल पुराने आदेशों में बदलाव किया है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक वित्त विभाग में वित्तीय और प्रशासनिक स्वीकृति संबंधी अधिकारों का निर्धारण नए सिरे से किया गया है। इसके लिए 20 मार्च 2009 को जारी आदेशों में कई अहम बदलाव किए गए है। जो बदलाव किए गए है उसके तहत नवीन कार्यालय की स्थापना, नवीन पदों का निर्माण, पदों को समाप्त करने के अधिकार अभी तक वित्त विभाग के प्रमुख सचिव के पास रहते थे। अब ये सभी मामले वित्त मंत्री के पास जाएंगे। उनके अनुमोदन से ही इस संबंध में निर्णय हो सकेगा। नए वाहनों की खरीदी, वाहनों के स्थान पर दूसरे वाहन लिए जाने के अधिकार अब प्रमुख सचिव की जगह वित्त मंत्री की अनुशंसा पर ही होंगे। वाहन किराए पर लिए जाने के पावर भी अब वित्त मंत्री के पास रहेंगे। केवल वाहनों की मरम्मत के लिए वित्त विभाग के प्रमुख सचिव आदेश जारी कर सकेंगे।
अनुदान के मामले में अफसरों के भी पॉवर बढ़े
अनुदान देने के लिए पहले चार लाख से दस लाख रुपए तक के पावर प्रमुख सचिव के पास थे और दस लाख से अधिक के मामले वित्त मंत्री के पास जाते थे। अब पचास लाख रुपए तक के अनुदान संबंधी निर्णय प्रमुख सचिव और अपर मुख्य सचिव लेंगे केवल पचास लाख से अधिक के मामले वित्त मंत्री के पास जाएंगे।
राजस्व से छूट देने का अधिकार अब केवल मंत्री को
अभी तक राजस्व से छूट देने के मामलों में विभाग के अपर सचिव और सचिव स्तर के अधिकारी ले लेते थे। अब ये सारे मामले प्रमुख सचिव और अपर मुख्य सचिव की अनुशंसा पर केवल वित्त मंत्री के अनुमोदन से ही लिए जा सकेंगे।आकस्मिता व्यय, मजदूरी, किराया यात्रा खर्च जो अलग से मंजूर करने होते है उनमें अभी तक दो लाख तक के प्रस्ताव अपर सचिव और सचिव तथा दो लाख से अधिक के प्रस्ताव प्रमुख सचिव स्वीकृत करते थे अब दस लाख से उपर के सभी मामलों में वित्त मंत्री की अनुमति जरूरी होगी।
पचास लाख से अधिक राइट आॅफ करने का निर्णय अब मंत्री करेंगे
वित्त विभाग में विभिन्न मदों के लिए दी गई जो राशि अभी तक वसूल नहीं हो पाती थी इस राशि को राइट आॅफ करने के मामलों में अभी तक चार लाख से दस लाख तक के प्रकरणों पर निर्णय अपर सचिव और सचिव स्तर पर लिए जाते थे तथा उससे उपर के प्रस्तावों में प्रमुख सचिव निर्णय लेते थे। अब पचास लाख से अधिक के प्रकरणों में राशि राइट आॅफ करने के लिए वित्त मंत्री की अनुमति जरूरी होगी। यह निर्णय वित्तीय कसावट लाने के लिए लिया गया है। इससे बड़ी राशियों को गुपचुप तरीके से आधिकारिक स्तर पर राइट आॅफ करने के मामलों पर लगाम लगेगी। मंत्री के पास मामले पहुंचेंगे तो इसमें जिम्मेदारी भी तय की जाएगी।