अपनों से घिरी कांग्रेस जमीनी हालात को भांप नहीं पाई, 5 माह में पलट गई बाजी

भोपाल
 मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव के परिणाम ने सबको चौंका दिया है| पांच महीने पहले मिली जीत से उत्साह से भरी कांग्रेस की हवा अचानक निकल गई| चुनाव के जानकार भी इस परिणाम को भांप नहीं पाए और बिना किसी लहर के बावजूद बीजेपी ने अप्रत्याशित प्रदर्शन किया| वहीं सत्ता में आने के बाद अपने ही लोगों में घिरे रहे कांग्रेस के दिग्गजों से जमीनी हालात की नब्ज पकड़ने में चूक हुई और एक बड़ी पराजय कांग्रेस के खाते में जुड़ गई| यह हार इस लिए भी बड़ी मानी जा रही है क्यूंकि 15 साल बाद जिस पार्टी को प्रदेश से उखाड़ फेंकने के बाद कांग्रेस को सत्ता मिली, उसी पार्टी के आगे कांग्रेस अपना प्रदर्शन नहीं दोहरा पाई, बल्कि दिग्गज नेता भी बीजेपी को चुनौती नहीं दे पाए और लाखो वोट के अंतर से चुनाव हार गए| विधानसभा चुनाव में जिस मालवा निमाड़ और ग्वालियर चम्बल क्षेत्र में कांग्रेस ने मजबूत पकड़ बनाई थी, वहाँ एक बार फिर बीजेपी का कब्जा है|   

भाजपा ने मालवा-निमाड़ की आठों सीटों पर जीत दर्ज की। इंदौर में जहां लालवानी ने रिकार्ड जीत दर्ज की, वहीं विधानसभा चुनाव हार चुके उज्जैन से भाजपा प्रत्याशी अनिल फिरोजिया ने यहां से कांग्रेस प्रत्याशी बाबूलाल मालवीय को 365637 मतों से पराजित किया। इसके अलावा धार, खंडवा, खरगोन, देवास, मंदसौर और रतलाम सीट पर भी भाजपा ने बड़ी जीत दर्ज की। ये पूरा अंचल में हमेशा से भाजपा को मजबूत गढ़ रहा है, लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इस गढ़ में सेंध लगाने में कामयाब हुई थी, लेकिन महज 5 महीने में ही भाजपा ने एक बार फिर इस क्षेत्र में अपना दबदबा कायम किया है।
                                                                                                                            

ग्वालियर चम्बल में सूपड़ा साफ़, सिंधिया की हार ने चौंकाया

बात ग्वालियर चम्बल संभाग की करें तो यहां के परिणाम ने सबको हैरान कर दिया है| विधानसभा चुनाव में बीजेपी को यहां बड़ा विरोध झेलना पड़ा और कांग्रेस को बड़ी सफलता मिली| पांच माह पहले ग्वालियर चंबल संभाग में भाजपा का सूपड़ा साफ था। बड़े-बड़े दिग्गज धराशायी थे, लेकिन इस बार कांग्रेस के दिग्गज धराशायी हो गए| अंचल की चारों सीटों पर बढ़त बनाकर भाजपा ने इसलिए भी सबको चौंका दिया, क्योंकि चार में से एक सीट ग्वालियर राजघराने के ज्योतिरादित्य सिंधिया की भी है। जिस राजघराने ने आज तक हार का स्वाद नहीं चखा। सिंधिया अपनी परंपरागत सीट गुना से फिलहाल सवा लाख से ज्यादा मतों से भाजपा के एक ऐसे उम्मीदवार से पराजित हो गए जो कुछ समय पहले तक खुद उनका प्रतिनिधि था। पांच माह पहले सिंधिया ने बड़ी सफलता दिलाई थी और अंचल की 34 में से 26 सीटों पर जीत दर्ज कर कांग्रेस ने दमदार एंट्री ली थी। भाजपा को महज सात सीट मिली थी। अब कांग्रेस नेताओं को यह समझ नहीं आ रहा कि पांच माह में ऐसा क्या हो गया कि तीन-तीन कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद इस अंचल से पार्टी का सफाया हो गया। गुना के अलावा मुरैना, भिंड और ग्वालियर सीट पर इस बार कांग्रेस को बड़ी उम्मीद थी, लेकिन पूरे के साथ ही यहां भी कांग्रेस कोई कमाल नहीं कर पाई|

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