अपनों की बगावत ने बढ़ाईं मुश्किलें, पंजाब में इस बार AAP की अग्निपरीक्षा

 
नई दिल्ली 

साल 2014 के लोकसभा चुनाव आम आदमी पार्टी के लिए संसदीय चुनाव में दमदार आगाज था. मोदी लहर के बावजूद पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रही पार्टी के लिए चार सीटें जीतना कम बड़ी उपलब्धि नहीं थी, वो भी एक ही राज्य पंजाब से. लेकिन पांच साल बाद वही आम आदमी पार्टी पंजाब में मुश्किल विकेट पर है.

राज्य से जुड़े पार्टी के कई शीर्ष नेता किनारा कर चुके हैं. आम आदमी पार्टी का सारा दारोमदार पार्टी के केंद्रीय नेताओं, खास तौर पर अरविंद केजरीवाल पर टिका है. हालांकि केजरीवाल का ड्रग्स के मुद्दे पर माफी मांगना और खालिस्तानी तत्वों से समर्थन के आरोप ने पार्टी की इस चुनाव में संभावनाओं को झटका पहुंचाया है.   

पांच साल पहले तक जिस पंजाब में केजरीवाल को रक्षक और ड्रग्स के खतरे से बचाने वाला समझा जा रहा था, उन्हीं केजरीवाल को सोमवार को संगरूर में काले झंडे दिखाए गए. 2014 में पंजाब लोकसभा चुनाव में पार्टी के अच्छे प्रदर्शन का असर 2017 पंजाब विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला. केजरीवाल की पार्टी पंजाब की परंपरागत पार्टी शिरोमणि अकाली दल को तीसरे नंबर पर धकेलकर दूसरे नंबर की पार्टी बन गई और उसे ही मुख्य विपक्षी दल का दर्जा मिला.

2017 के बाद बदले हालात

साल 2017 के बाद से ही आम आदमी पार्टी के लिए हालात मुश्किल होते गए. केजरीवाल ने अकाली दल के नेता बिक्रम मजीठिया के खिलाफ ड्रग्स समस्या के लिए जिम्मेदार ठहराने संबंधी अपने आरोपों पर माफी मांगी. इस घटनाक्रम ने पंजाब में पार्टी के समर्थन आधार को कम करने का काम किया. ऐसा नहीं होता तो केजरीवाल को इस बार चुनाव प्रचार में बैकफुट पर न होना पड़ता.

पंजाब में आम आदमी पार्टी के लिए भगवंत मान सबसे बड़े दांव हैं. मान अपने दम पर संगरूर से चुनावी मैदान में ताल ठोकने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे. मान कहते हैं, “हम पिछली बार से भी बढ़िया प्रदर्शन इस बार करने जा रहे हैं. लोग वादे पूरे न करने के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार से नाराज हैं. बेअदबी मामले में सिख भावनाओं को आहत कर अकाली बेनकाब हो चुके हैं.”      

धर्मवीर गांधी ने बोला था हमला

पटियाला से निवर्तमान सांसद धर्मवीर गांधी 2014 में AAP के टिकट पर कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी और कांग्रेस की हेवीवेट उम्मीदवार परनीत कौर को मात देकर पूरे देश में सुर्खियों में आए थे. केजरीवाल के खिलाफ सबसे पहले विरोध का झंडा उठाने वाले स्थानीय नेताओं में से एक रहे गांधी ने पंजाब के लोगों के साथ वादाखिलाफी के आरोप लगाते हुए पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व पर निशाना साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

पंजाब में कई छोटी पार्टियों को मिलाकर बने पंजाब डेमोक्रेटिक अलायंस (पीडीए) के उम्मीदवार के तौर पर गांधी इस बार चुनावी रण में उतरे हैं. गांधी कहते हैं, ‘केजरीवाल ने स्वराज और पार्टी में लोकतंत्र का वादा किया. उन्होंने कहा था कि पार्टी में कोई हाईकमान नहीं होगा और स्थानीय नेताओं को ताकतवर बनाया जाएगा. हकीकत में उन्होंने दिल्ली से नेता पंजाब पर थोपे. पंजाब के लोगों ने उन्हें सबक सिखाया है. उनका कैडर आधार खत्म हो चुका है. सिवाए भगवंत मान के उनके सारे उम्मीदवार चुनाव हारेंगे.’

पंजाब में इस बार आप की अग्निपरीक्षा

बंटे हुए घर के साथ आम आदमी पार्टी की पंजाब में इस बार अग्निपरीक्षा है. पार्टी के चार सांसदों में से दो साथ छोड़कर जा चुके हैं. पंजाब में पार्टी के आधा दर्जन से अधिक विधायकों ने अपना अलग मोर्चा बना लिया है, जिससे केजरीवाल को चुनाव में चुनौती दी जा सके. वरिष्ठ नेताओं के साथ छोड़ने की वजह से पार्टी को कई सीटों पर मजबूत उम्मीदवार मिलना ही मुश्किल हो गया.

AAP की ओर से विधानसभा चुनाव के बाद बने विपक्ष के नेता सुखपाल सिंह खेड़ा को पार्टी पहले ही बाहर का रास्ता दिखा चुकी है. खेड़ा ने खुद की पंजाब एकता पार्टी बना ली और अब बठिंडा में केंद्रीय मंत्री और अकाली दल उम्मीदवार हरसिमरत कौर बादल के खिलाफ चुनावी मैदान में हैं.

खेड़ा कहते हैं, “केजरीवाल ने ड्रग्स के नासूर को उखाड़ फेंकने का वादा किया था, लेकिन बाद में मजीठिया से माफी मांग ली. उनका आधार खत्म हो चुका है. केजरीवाल ने ये कसम भी खाई थी कि कभी भ्रष्ट कांग्रेस के साथ हाथ नहीं मिलाएंगे, लेकिन हाल में सबने देखा वह कैसे कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए गिड़गिड़ाते रहे.”   

AAP को प्रदर्शन दोहराने का भरोसा

हालांकि आप के केंद्रीय नेताओं को अब भी पंजाब में 2014 का प्रदर्शन दोहराने का भरोसा है. पार्टी नेता और राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने इंडिया टुडे को बताया, “हमने अपनी खामियों को लेकर आत्ममंथन किया. पंजाब में संगठन को बदला गया. कुछ खामियां थीं, लेकिन हम फिर इस बार वापसी करेंगे.”

बता दें कि दिल्ली की सात लोकसभा सीटों के लिए मतदान निपट चुका है. AAP के केंद्रीय नेता अब पंजाब में पार्टी को और किसी शर्मिंदगी से बचाने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं. लेकिन इस बार पार्टी के लिए डगर मुश्किल लगती है. ये वही पार्टी है, जिसे कभी राज्य की राजनीति में भरोसेमंद विकल्प बताकर पेश किया जा रहा था. 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *