अपने हुए बेगाने तो दर्द में डूबी ज़िंदगी, सरकार के महिला आश्रय सदन में जीवन बिता रही माताएं

नई दिल्ली
मां-बाप अपने बच्चों को बुढ़ापे का सहारा मानते हैं। लेकिन आज के युग में कुछ औलादें अपने माता-पिता को अपने साथ रखना पसंद नहीं करती हैं। ऐसी ही अपनों से सतायी हुई विधवा माताएं उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में भारत सरकार द्वारा संचालित महिला आश्रय सदन में अपना जीवन व्यतीत कर रही हैं। जगन्नाथ पुरी उड़ीसा की रहने वाली अनुपमा मुखर्जी और झारखंड की रहने वाली देवंती देवी भी इसी आश्रय सदन में रह कर जीवन यापन कर रही हैं। उनसे जब यहां रहने की वजह पूछी गई तो विधवा माता अनुपमा मुखर्जी का कहना है, कि 8 साल पहले पति का स्वर्गवास हो गया था। बेटी की शादी के बाद सोचा कि बेटी सहारा बनेगी लेकिन दामाद ने बेटी को और मुझे दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दिया। वृंदावन के आश्रय सदन में वर्ष 2012 में मैंने पहला कदम रखा। यहां सब सुख सुविधाएं मिल रही हैं। 

वहीं, विधवा माता देवंती देवी भावुक होते हुए अपनी व्यथा सुनाने लगीं। उन्होंने बताया कि मेरे पति बहुत मेहनती थे। और हमारी एक साइकिल की दुकान थी। जो कि आग लगने के कारण जलकर खाक हो गई थी। आग लगने का सदमा पति को बैठ गया और उनकी मौत हो गई। इस घटना के बाद मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थी। चार भाई और तीन बहनों को छोड़कर मैं वृंदावन की तरफ चल पड़ी। यहां आने के बाद मुझे इस आश्रय सदन ने सहारा दिया। विधवा माता देवंती देवी का कहना है की, 1850 रुपये हम लोगों को प्रसाद के साथ-साथ सूट और पॉकेट मनी के रूप में दिया जाता है। वहीं पेंशन भी हमको सरकार के द्वारा दी जाती है। डीपीआरओ अनुराग श्याम रस्तोगी ने जानकारी देते हुए बताया कि सरकार 1850 रु प्रति माह माताओं के लिए देती है। इसके साथ ही ₹500 प्रतिमाह पेंशन और विधवा माताओं को दिया जाता है। सभी माताओं का अंत्योदय कार्ड बना हुआ है। जिसके तहत 20 किलो गेहूं और 15 किलो चावल इन माताओं को सरकारी सहायता के रूप में दी जाती है। साथ ही उन्होंने बताया कि माताओं को आत्म निर्भर बनाने के लिए अगरबत्ती और होली के समय गुलाल भी बनवाया जाता है। जो माता इच्छुक होती हैं, उन्हीं माताओं से काम कराया जाता है। और सरकार के द्वारा इन माताओं को 50 रूपये प्रति घंटे के हिसाब से पैसा दिया जाता है।
 

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