अजीब हैं ये शादियां: बॉर्डर पार करके जाती है बारात लेकिन दुलहन नहीं आती

 
जैसलमेर 

राजस्थान में जैसलमेर के बैया गांव से बारात सरहद पार पाकिस्तान जाती है लेकिन बारात की वापसी पर दुलहन इस पार नहीं आती। बैया गांव भारत-पाकिस्तान सीमा पर है। 23 साल के विक्रम सिंह भाटी सरहद पार पाकिस्तान के सिनोई गांव में मई में शादी करने गए थे। यह गांव पाकिस्तान के उमरकोट जिले में पड़ता है। विक्रम के माता-पिता ने नम आंखों से बैया गांव में विडियो कॉल पर अपने बेटे को आशीर्वाद दिया। विक्रम ने काफी दिन ससुराल में गुजारे और अब वहां से बिना दुलहन भारत लौटे हैं। विक्रम के पास पत्नी का कोई फोटो तक नहीं है, जिसे वह देख सकें। उनके बड़े भाई की भी शादी उसी गांव में हुई। उन्होंने वीजा के लिए अपनी दूल्हन के वीजा के लिए दौड़भाग की लेकिन सब बेकार रहा, उन्हें भी खाली हाथ लौटना पड़ा। विक्रम और उनका परिवार ‘सोधा’ राजपूत हैं। 

सोधा राजपूतों के घर-घर की यही कहानी है। जैसलमेर के अलावा बाड़मेर, जोधपुर और कुछ अन्य हिस्सों में इस समुदाय के लोग रहते हैं लेकिन इनकी शादियां पाकिस्तान में होती हैं, जहां से दुलहन बड़ी मुश्किल से भारत आ पाती है। सोधा लोग गोत्र सिस्टम में यकीन करते हैं और गोत्र के बाहर शादियां करते हैं। भारत-पाकिस्तान का बंटवारा तो हो गया लेकिन सोधा राजपूतों की सरहद पार शादियों पर इस बंटवारे का कोई असर नहीं पड़ा। हालांकि, 1965 तक इनकी शादियों में बॉर्डर भी बाधा नहीं था। यह लोग और उधर के लोग भी बेरोकटोक बॉर्डर पार करके शादियां करते थे लेकिन अब तो शादियां, अंतिम संस्कार, सालगिरह सब सीमा पर तनाव की भेंट चढ़ गए हैं। 

पुलवामा हले के बाद रोकनी पड़ी थी शादी 
बाड़मेर में ‘खेजड़ का पार’ गांव के महेंद्र सिंह की शादी 8 मार्च को पाकिस्तान के उसी सिनोई गांव में तय थी लेकिन इसी दौरान 14 फरवरी को पुलवामा में आतंकी हमला हुआ, जिसमें 40 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए। थार एक्सप्रेस का आना-जाना रुक गया। महेंद्र ने पाकिस्तान के लिए जितनी टिकटें बुक कराई थीं, सारी कैंसल करानी पड़ी। इसके बाद अप्रैल में वह बारात लेकर शादी करने पाकिस्तान जा सके। महेंद्र अभी पिछले हफ्ते लौटे हैं लेकिन बिना दुलहन। उसको वीजा नहीं मिला और उसे पाकिस्तान में छोड़कर आना पड़ा। 

सोधा समुदाय के लिए पिछले 20 साल से काम कर रहे हिंदू सिंह सोधा का कहना है कि भारतीय इतने पढ़े-लिखे हैं कि पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं की वे पहली पसंद हैं। चूंकि हिंदू वहां अल्पसंख्यक है, इसलिए भी वे भारत आकर बसना चाहते हैं। शादियां इसमें बड़ी भूमिका अदा कर रही हैं। पाकिस्तान के उमरकोट के रहने वाले अजीत सिंह सोधा की तो यही कहानी है। अजीत अब भारतीय नागरिक बन गए हैं। वह 2007 में आईटी डिप्लोमा लेकर जोधपुर आए थे। उन्हें कम्प्यूटर ऑपरेटर की जॉब मिली। 2011 में उनकी शादी सिरोही (राजस्थान) में हुई। इसके बाद पाकिस्तान में रह रहे उनके चार भाई और एक बहन भी भारत आ गए। हालांकि, सारे भाई-बहन पिछले तीन साल में माता-पिता का चेहरा नहीं देख पाए हैं लेकिन इसे लेकर उन्हें कोई शिकायत नहीं है। अजीत ने कहा कि चार बार उन्होंने वीजा के लिए आवेदन किया लेकिन हर बार रद्द कर दिया गया। अब स्काइप, वाट्सऐप पर विडियो कॉल के जरिए माता-पिता का चेहरा देख लेते हैं। 
 

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