बढ़ती जा रही पेंडिंग केसों की संख्या, 60 साल से लंबित हैं 140 केस

 नई दिल्ली 
न्यायपालिका से जस्टिस की उम्मीद लगाए बैठे लोगों को कितने बरसों तक सिर्फ इंतजार ही करना पड़ता है इससे जुड़े कुछ भयावह आंकड़े सामने आए हैं। इनसे पता लगा है कि देश की विभिन्न निचली अदालतों में करीब 140 केस तो ऐसे हैं जो 60 साल से ज्यादा से लंबित पड़े हैं। वहीं जिला आदि आदलतों में करीब 66 हजार केस ऐसे हैं जो 30 साल से ज्यादा से लंबित हैं और करीब 60 लाख केस ऐसे हैं जिन्हें चलते हुए 5 साल से ज्यादा बीत चुके हैं। ऐसे में बक्सर के राहुल पाठक का मामला सिर्फ उदाहरण भर है। इन्होंने 5 मई 19951 को केस फाइल किया था। नैशनल ज्यूडिशल डेटा के मुताबिक, वह केस अबतक सिविल कोर्ट में बहस तक ही पहुंचा है, जिसकी आखिरी तारीख 18 नवंबर 2018 को पड़ी थी और अगली तारीख के बारे में भी अबतक बताया नहीं गया है। ऐसे हजारो केसों से जुड़े लोग न्याय के इंतजार में बैठे हैं। 

निपटाने में लगेंगे 324 साल 
सरकार द्वारा किए गए हालिया मूल्यांकन में पता लगा कि जिस हिसाब से फिलहाल केसों का निपटारा किया जा रहा है, वैसे विभिन्न न्यायालयों में चल रहे पेंडिंग केसों को खत्म करने में 324 साल तक लग जाएंगे। लंबित मामलों की संख्या 2.9 करोड़ तक पहुंच चुकी है जो कि अबतक की सबसे ज्यादा है। इसमें से 71 प्रतिशत क्रिमिनल केस हैं, जिनसे आरोपी फिलहाल अंडर ट्रायल हैं। 

हर महीने जुड़ जाते हैं नए पेंडिंग केस 
पिछले महीने की बात करें को विभिन्न अदालतों में 10.2 लाख केस दर्ज हुए, जिनमें से सिर्फ 8 लाख केसों को निपटाया जा सका। यानी 2.2 लाख केस और पेंडिंग में चले गए। साथ ही पहले से पेंडिंग केसों का भी निपटारा हुआ नहीं था। टाइम्स ऑफ इंडिया के मूल्यांकन से पता लगा है कि 1951 से अबतक के डेटा के मुताबिक, करीब 1800 केस ऐसे हैं जिन्हें 48-58 सालों से खत्म ही नहीं किया जा सका है। 

उत्तर प्रदेश सबसे आगे 
सबसे ज्यादा जनसंख्या घनत्व होने की वजह से सबसे अधिक 26 हजार पेंडिंग केस भी यूपी से ही हैं। ये मामले करीब 30 साल से पेंडिंग हैं। वहीं 13 हजार लंबित मामलों के साथ महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर है। कुल पेंडिंग केस का 96 प्रतिशत हिस्सा 6 राज्यों का है। इसमें यूपी, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात और ओडिशा शामिल हैं। 
 

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