NDTL बैन: भारत के ओलंपिक अभियान पर भी असर पड़ने का अंदेशा
लखनऊ
विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (वाडा) द्वारा भारत की नेशनल एंटी डोपिंग लैब (एनडीटीएल) को निलम्बित किये जाने के बाद पैदा सूरतेहाल में पहले से ही वित्तीय संकट से गुजर रही देश की खेल संस्थाओं पर डोप टेस्ट के खर्च का बोझ बेतहाशा बढ़ जाएगा और इसकी परछाईं अगले साल होने वाले टोक्यो ओलंपिक को लेकर भारत के अभियान पर भी पड़ सकती है। एनडीटीएल को छह माह तक निलम्बित किए जाने के बाद खेल संस्थाओं को अपने खिलाड़ियों के डोप टेस्ट वाडा से मान्यता प्राप्त किसी विदेशी लैब से कराने होंगे। इससे टेस्ट का खर्च काफी बढ़ जाएगा, जिसे उठाना सम्भव नहीं है। उत्तर प्रदेश ओलंपिक संघ के महासचिव आनंदेश्वर पाण्डेय ने भाषा से बातचीत में कहा कि विदेशी प्रयोगशाला से डोप टेस्ट कराने से खेल संस्थाओं की जेब खाली हो जाएगी। वे इस स्थिति में कतई नहीं हैं कि विदेश से डोप टेस्ट कराने का खर्च उठा सकें। उन्होंने कहा कि जहां तक नाडा का सवाल है तो उसे वाडा के मानकों को पूरा करना चाहिए था। अब पूरा दारोमदार सरकार पर है कि वह क्या निर्णय लेती है। बहरहाल, विकट स्थिति तो पैदा ही हो गयी है। सभी एथलीटों का विदेश में डोप टेस्ट आखिर कैसे कराया जा सकता है।
विशेषज्ञों की नजर में एनडीटीएल का छह माह का निलम्बन एक बड़ी समस्या है, अगर भारत खेल पंचाट (सीएएस) में अपना पक्ष मजबूती से नहीं रख सका और एनडीटीएल अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं बन सकी, तो उसका निलम्बन छह और माह के लिए बढ़ सकता है। इसका असर अगले साल जुलाई-अगस्त में टोक्यो में होने वाले ओलंपिक में भारत के अभियान के लिए घातक होगा। स्पोर्ट्स मेडिसिन विशेषज्ञ डॉक्टर सरनजीत सिंह के मुताबिक एनडीटीएल को छह महीनों के लिए निलंबित किये जाने के बाद अब लैब को 21 दिन के अंदर अपना पक्ष सीएएस में रखना होगा। ऐसा करने में अगर कोई चूक होती है तो निलंबन की अवधि बढ़ जाएगी। इसका साया टोक्यो में होने वाले ओलंपिक में भारत की सम्भावनाओं पर भी पड़ सकता है यह फिक्र भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष नरिंदर बत्रा के बयान से भी झलकती है, जिसमें उन्होंने इस घटनाक्रम को भारत के ओलंपिक अभियान के लिए बड़ा झटका बताते हुए कहा था कि अब जबकि ओलंपिक सिर्फ 11 महीने दूर है, भारतीय राष्ट्रीय खेल महासंघ डोप टेस्ट के लिए अतिरिक्त खर्च उठाने की स्थिति में नहीं है।
सिंह ने कहा कि एक खिलाड़ी पर सभी तरह की प्रतिबंधित दवाओं की जाँच का खर्च करीब 500 डॉलर का होता है। कुछ ख़ास तरह के परीक्षणों में तो ये खर्च 1000 डॉलर तक का हो सकता है। अगर खेल संस्थाएं इसका खर्चा उठाने से इंकार करती हैं तो अगले साल होने वाले टोक्यो ओलंपिक्स में भारत के खेलने पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है। उन्होंने वाडा की भी आलोचना करते हुए कहा कि इस अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने भारत की लैब को तो मानक पूरा न करने का आरोप लगाकर निलम्बित कर दिया है, मगर खुद उसकी क्षमताएं भी शक के दायरे में हैं। वाडा आज भी कई तरह की प्रतिबंधित दवाओं या प्रतिबंधित तरीकों को पकड़ने में असमर्थ है। सिंह ने कहा कि देखा जाये तो वाडा के पास आज भी 2008 बीजिंग ओलंपिक के 4000 डोपिंग नमूने, 2012 लंदन ओलंपिक के 6000 नमूने और 2016 रिओ ओलंपिक के 6000 से अधिक नमूने रक्षित हैं। वाडा आज तक इनमें से कुछ ही सैम्पल्स की पूरी तरह से जांच कर पाया है और जिसकी वजह से उस समय के दोषी कुछ ही खिलाड़ी अभी तक पकड़ में आ सके हैं। सिंह ने कहा कि दरअसल इस तरह का 'डिटेक्शन गैप' पिछले तमाम सालों से चला आ रहा है जिसका फ़ायदा विकसित देशों के खिलाड़ी हमेशा से उठाते रहे हैं। दरअसल विकसित देशों के खिलाड़ी 'एडवांस स्पोर्ट्स मेडिसिन्स का सहारा लेते हुए बहुत आसानी से डोपिंग परीक्षणों से बच जाते हैं। इन खिलाड़ियों कि ट्रेनिंग का खर्च उस देश के बड़े-बड़े क्लब उठाते हैं जिन्हें खिलाड़ी के जीतने के बाद बहुत बड़ा वित्तीय लाभ होता है। वहीं, खेलों में कम विकसित देशों के खिलाड़ी आसानी से डोप टेस्ट में नाकाम हो जाते हैं। मालूम हो कि वाडा ने राष्ट्रीय डोप परीक्षण प्रयोगशाला को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं पाए जाने के कारण छह महीने के लिए निलंबित कर दिया है। इस निलंबन के दौरान नमूनों की जांच वाडा से मान्यता प्राप्त दूसरी लैब से करानी होगी। अब लैब को 21 दिन के अंदर अपना पक्ष सीएएस में रखना होगा। छह महीने की निलंबन अवधि समाप्त होने पर भी लैब अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं बन पाती है तो वाडा इस अवधि को छह महीने के लिए और बढ़ा सकता है।