Exit Poll के बाद NDA की बैठक, विपक्षी गोलबंदी में बिजी हैं पहले संयोजक चंद्रबाबू नायडू

 
नई दिल्ली 

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने सोमवार को कहा कि वे 23 मई यानी वोटों की गिनती के दिन तक गैर-बीजेपी गठबंधन के लिए अपनी कोशिशें जारी रखेंगे. नायडू ने यह भी कहा कि वे अपनी इस लड़ाई को एक तर्कसंगत निष्कर्ष तक पहुंचाएंगे. ध्यान रहे कि ये वही चंद्रबाबू नायडू हैं जो बीजेपी के दिवंगत नेता अटल बिहारी वाजपेयी के समय एनडीए के पहले संयोजक थे, लेकिन आज वक्त बदल चुका है और एनडीए के साथ उनके रिश्ते अब वैसे नहीं रहे.

बीजेपी के विरोध में खड़ी पार्टियों को एकजुट करने की कोशिश उनकी काफी दिनों से जारी हैं. हालांकि हाल के कुछ दिनों में ज्यादा तेजी आई है. खासकर एग्जिट पोल के सर्वे आने के बाद उन्होंने अपनी इस रफ्तार और बढ़ा दिया. नायडू संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) प्रमुख मायावती, समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव सहित कई विपक्षी नेताओं से मिल चुके हैं.

नायडू के अभियान में तेजी क्यों?

उपरोक्त सवाल का जवाब रविवार को आए एग्जिट पोल के नतीजों में छिपा है. आंध्र प्रदेश में लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव भी हुए हैं लेकिन इसमें दिक्कत ये है कि अधिकतर एग्जिट पोल्स ने जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी को 12-15 और नायडू की पार्टी टीडीपी को 10-13 लोकसभा सीटें दी हैं. अधिकतर एग्जिट पोल्स ने अनुमान जताया कि एनडीए 300 के करीब सीटें जीतकर सरकार बनाएगी. नायडू चूंकि एनडीए से खुलेआम अपनी दुश्मनी साध चुके हैं, इसलिए एनडीए की 300 सीटें उन्हें आंध्र प्रदेश से लेकर दिल्ली तक परेशान करती नजर आ रही हैं. ऐसे में उनके सामने दूसरा कोई विकल्प नहीं बचता कि वे विपक्षी दलों के साथ एक साझा गठजोड़ बनाएं और अपनी उपयोगिता बनाए रखें.

इसके लिए वे ताल ठोंक कर कहते नजर आ रहे हैं कि 'आंध्रप्रदेश में निस्संदेह टीडीपी सरकार बनेगी और हमें भरोसा है कि गैर-बीजेपी पार्टियां केंद्र में गैर-बीजेपी सरकार बनाएंगी.' एग्जिट पोल के मुताबिक नायडू की सीटों में मामूली कमी आ सकती है लेकिन इसका दूसरा पहलू ये है कि वाईएसआर कांग्रेस की सीटों में भारी इजाफा हो सकता है. इस कारण चंद्रबाबू नायडू एक साथ दो मोर्चों पर जूझते दिख रहे हैं. एक लोकसभा में और दूसरा आंध्र की विधानसभा में. दोनों जगह का संभावित घाटा उन्हें विपक्षी खेमे में खींचने को मजबूर करता नजर आ रहा है.

सभी विपक्षी नेताओं से नायडू के संपर्क

विपक्षी दलों का शायद ही कोई नेता हो जिससे चंद्रबाबू नायडू हाल फिलहाल में न मिले हों. उन्होंने शनिवार को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती से मुलाकात की. सपा कार्यालय में उनके और अखिलेश यादव के बीच करीब 70 मिनट तक बातचीत चली. नायडू इसके बाद मायावती के माल एवेन्यू स्थित आवास पहुंचे. बीएसपी के वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्र भी वहां मौजूद थे. मायावती ने गुलदस्ते के साथ नायडू का स्वागत किया. मायावती के साथ उनकी मुलाकात एक घंटा से अधिक समय तक चली. हालांकि बातचीत का फलसफा क्या रहा, अभी यह पता नहीं चल पाया है.

शनिवार सुबह उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से उनके आवास पर मुलाकात की और फिर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) अध्यक्ष शरद पवार और लोकतांत्रिक जनता दल के नेता शरद यादव से संभावित गठबंधनों के बारे में चर्चा करने के लिए मिले. उन्होंने मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी नेता सीताराम येचुरी, आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल से शुक्रवार को मुलाकात कर चुनाव के नतीजे आने के बाद गठबंधन की संभावनाओं को लेकर बातचीत की. ऐसे विपक्षी नेताओं के साथ बातचीत कर, जो एक-दूसरे के साथ सहज नहीं हैं, नायडू स्पष्ट रूप से एक मध्यस्थ बन गए हैं.

एनडीए के संयोजक रह चुके हैं नायडू

टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू अटल बिहारी वाजपेयी के समय एनडीए के पहले संयोजक थे. एनडीए के सबसे कद्दावर सहयोगियों में उनका नाम शामिल था लेकिन आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने को लेकर बीजेपी से उनकी अनबन हो गई. एक तरफ बीजेपी का दावा है कि आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य के बदले स्पेशल पैकेज देने का वादा किया गया था और आंध्र प्रदेश को इस मद में काफी बजट भी दिया गया. जबकि नायडू इसे बीजेपी सरकार का कोरा झूठ बताते रहे हैं.

नायडू ने आंध्र प्रदेश की मांग को लेकर दिल्ली में अनशन भी किया और बीजेपी पर दबाव बनाने की कोशिश की. धीरे-धीरे दोनों पार्टियों में तल्खी बढ़ती गई और नतीजतन टीडीपी ने सबसे पहले मोदी सरकार से अपने मंत्री हटाए और बाद में एनडीए से भी अलग हो गई. लोकसभा चुनाव आते आते दोनों पार्टियों की दुश्मनी काफी बढ़ गई और एक दूसरे के खिलाफ प्रचंड चुनाव प्रचार में उतर गए. नायडू यहीं तक नहीं रुके और उन्होंने बीजेपी विरोधी गठबंधन बनाने के लिए उन सभी दलों से सहयोग मांगा जो बीजेपी के कट्टर विरोधी रहे हैं. नायडू की कोशिशें अब भी जारी हैं. अब देखना होगा कि 23 मई को नतीजे आने के बाद क्या कोई बीजेपी विरोधी मोर्चा बनता है या मोदी सरकार फिर केंद्र की सत्ता पर काबिज होती है.  

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