रिटायरमेंट के लिए एनपीएस अब एक बेहतर निवेश योजना

नई दिल्ली

रिटायरमेंट के बाद होने वाली संपूर्ण निकासी को टैक्स फ्री बनाने से आखिरकार एनपीएस भी कराधान के लिहाज से ईपीएफ और पीपीएफ के समान हो गया। प्रोविडेंट फंड स्कीम्स में भी जमाओं पर टैक्स नहीं लगता है (निर्धारित सीमा तक), रिटर्न पर टैक्स नहीं लगता और निकासी भी टैक्स फ्री है। एनपीएस में यह तीसरा चरण अब तक टैक्स फ्री नहीं था। बल्कि सच्चाई तो यह है कि इसमें अब तक खंडित कराधान की संरचना थी, जो किसी भी अन्य प्रकार की जमा योजनाओं की कराधान व्यवस्था के मुकाबले अधिक जटिल थी। एनपीएस में कुल फंड के 40 फीसद का एन्युटी (पेंशन) खरीदने में अनिवार्य तौर पर उपयोग करने का प्रावधान है और यह अंश टैक्स फ्री है। शेष राशि की निकासी की जा सकती है और इस हिस्से पर टैक्स लगता था। अब एनपीएस का पूरा का पूरा फंड टैक्स फ्री कर दिया गया है।

एनपीएस जहां 2004 के बाद सेवा से जुड़ने वाले सरकारी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य है, वहीं यह निजी क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए भी उपलब्ध है। साथ ही यह स्वरोजगार करने वाले लोगों के लिए भी उपलब्ध है। एनपीएस को टैक्स फ्री बना देने से देश में उपलब्ध सेवानिवृत्ति विकल्पों में एक बुनियादी और महत्वपूर्ण बदलाव हुआ है। अभी यह इसलिए भी और अधिक महत्वपूर्ण हो गया है कि इक्विटी फंड से होने वाले लांग टर्म रिटर्न को टैक्सेबल बना दिया गया है।

अब एक आम आदमी एनपीएस में हाई इक्विटी ऑप्शन चुन सकता है और 60 साल तक बचत कर सकता है। उस समय जाकर पूरी की पूरी राशि की निकासी टैक्स फ्री हो जाएगी, हालांकि 40 फीसद राशि को एन्युटी में निवेश करना अनिवार्य है। आप म्यूचुअल फंड में भी ऐसा कर सकते हैं, पर मुझे लगता है कि एनपीएस को टैक्स फ्री बनाए जाने के बाद की स्थिति में एनपीएस तुलनात्मक रूप से एक बेहतर विकल्प बन गया है। म्यूचुअल फंड (बल्कि किसी भी अन्य फंड) की तुलना में एनपीएस का खर्च काफी कम होता है। लंबी अवधि में देखा जाए, तो कंपाउंडिंग के प्रभाव के कारण कम खर्च का लाभ बढ़कर काफी अधिक हो जाता है। इसमें यदि नई शून्य कर वाली व्यवस्था के लाभ को भी जोड़ दिया जाए, तो म्यूचुअल फंड की तुलना में एनपीएस एक बेहतर रिटायरमेंट सेविंग ऑप्शन हो जाता है।

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