1962 जैसी हो रही सैन्य हलचल, खौफ में लद्दाख के लोग: भारत-चीन तनाव
श्रीनगर
चीन से लहे पूर्वी लद्दाख के सीमावर्ती गांवों में रहने वाले करीब 2,000 लोग इलाके में जारी भारी सैन्य मूवमेंट से चिंतित हैं। बुजुर्गों का दावा है कि 1962 के बाद पहली बार अपनी तरफ से इतने बड़े पैमाने पर सैन्य मूवमेंट दिखाई दे रहा है। लद्दाख ऑटोनोमस काउंसिल के एक मेंबर के मुताबिक गांव वाले सैनिकों और हथियारों के मूवमेंट से खौफ में हैं। चुशुल के नजदीक 3 पंचायत हलकों के 8 गावों में लोगों को डर है कि इलाके को किसी भी वक्त हिंसा अपनी आगोश में ले सकती है।
ग्रामीण बोले- इससे पहले 1962 में देखी थी ऐसी सैन्य हलचल
चुशुल के काउंसिलर कोन्चोक स्टैन्जिन ने हमारे सहयोगी को बताया, 'हम अपनी तरफ से असामान्य सैन्य हलचल और तोपों-हथियारों का मुवमेंट देख रहे हैं। हमारे बुजुर्गों ने इससे पहले 1962 में चीन के साथ जंग के वक्त इस तरह की हलचल देखी थी। हम चाहते हैं कि चीजें जल्द से जल्द ठीक हों।' लद्दाख ऑटोनोमस हिल डिवेलपमेंट काउंसिल में शिक्षा से जुड़ी एग्जिक्यूटिव काउंसिलर ने भारत और चीन के बीच तनाव कम करने के लिए द्विपक्षीय बातचीत की वकालत की।
'पहले भी होती थी तनातनी, इस बार मामला बहुत गंभीर'
स्टैन्जिन कहते हैं, 'इस साल से पहले तक दोनों पक्षों में कोई तनातनी होती थी तो उसे तुरंत बातचीत के जरिए सुलझा लिया जाता था। यहां नियमित तौर पर अपनी सेना पट्रोलिंग करती रहती है लेकिन कभी भी अभी जैसे तनावपूर्ण हालात नहीं होते थे।' स्टैन्जिन ने बताया कि उन्होंने शुक्रवार को गांवों का दौरा किया था। लोग खेती के कामों में लगे हुए हैं लेकिन उनमें तनाव बना हुआ है। उन्होंने बताया, 'अभी दो जगहों- गलवान घाटी और फिंगर-4 में तनाव है। जिन जगहों पर तनाव है, वहां से इन गांवों की हवाई दूरी (एरियल डिस्टेंस) 10 किलोमीटर से भी कम है।' फिंगर 4 एरिया में हर साल जाड़े के दिनों में गांव के चरवाहे अपने मवेशियों को चराने जाते हैं। हर साल वे वहां कुछ महीनों तक रहते हैं।