10 वर्षों बाद आर्द्रा नक्षत्र में शुरू हुई रोपनी, बिहार के किसानों पर प्रकृति हुई मेहरबान
पटना
खरीफ में खेती का सबसे महत्वपूर्ण नक्षत्र आर्द्रा हो और पानी का सुतार हो तो किसान घर में कैसे बैठ सकते हैं। यह दोनों अनुकूल संयोग राज्य में बना तो किसानों ने धान की रोपनी भी शुरू कर दी। आर्द्रा नक्षत्र में रोपनी पिछले दस वर्षों से किसानों के लिए सपना बना हुआ था। लेकिन, इस बार प्रकृति ने साथ दिया तो किसान भी इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहते हैं।
19 जिलों में रोपनी शुरू
राज्य में बीज डालने का काम तो लगभग 60 प्रतिशत से अधिक हो गया, लेकिन 19 जिलों के किसानों ने रोपनी भी शुरू कर दी। हालांकि अभी रोपनी का काम वही किसान कर रहे हैं, जिन्होंने रोहिणी नक्षत्र के पहले या दूसरे दिन ही बीज डाल दिया था। अगर बाढ़ नहीं आई तो इन किसानों के घर फसल से भर जाएंगे। आर्द्रा नक्षत्र धान की रोपनी के सबसे महत्वपूर्ण होता है, लेकिन हाल के वर्षों में पानी का ऐसा अनुकूल मौका किसानों को नहीं मिला था।
राज्य में रोपनी का काम अभी लगभग तीन प्रतिशत ही हो सका है। सारण, सीवान, मुजफ्फरपुर, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर, वैशाली, दरभंगा, मधुबनी और समस्तीपुर जिलों में तो रोपनी काम तेजी से चल रहा है। शेखपुरा, खगड़िया, बांका, सहरसा, किशनगंज और अररिया के किसानों ने भी रोपनी शुरू कर दी है। अब तक इन जिलों में लगभग एक लाख पांच हजार हेक्टेयर में रोपनी हो चुकी है। इसी के साथ इन जिलों में बीज डालने का काम लगभग पूरा हो चुका है। दक्षिण बिहार के जिलों में किसान आर्द्रा नक्षत्र में ही बीज डालते हैं, लिहाजा वहां अभी यह काम ही चल रहा है।
बाढ़ आने के पहले बड़ी हो जाए फसल तो राहत
प्रकृति के रुख से किसान बहुत खुश है। लेकिन, आगे स्थिति यही बनी रही तो बाढ़ का डर भी उन्हें सताने लगा है। यही कारण है कि जिनको मौका मिला वह चाहते हैं कि बाढ़ आने के पहले उनकी फसल इतनी बड़ी हो जाए कि खेत में पानी लगने पर भी फसल उससे ऊपर रहे। वैज्ञानिक भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। डॉ. राजीव नयन का कहना है कि धान की खासियत है कि अगर एक सप्ताह तक पानी में डूबा रहा और केवल उसका उपरी भाग पानी से बाहर हो तो बाढ़ उतरने के बाद फसल ठीक हो जाती है।