हरियाणा में हारी कांग्रेस तो दिल्ली में भी मुश्किल

नई दिल्ली
दिल्ली में 15 साल तक राज करने वाली कांग्रेस लगातार अपने पुराने वजूद को वापस पाने की जद्दोजहद से जूझ रही है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में कांग्रेस के परफॉर्मेंस का असर कहीं न कहीं आगामी दिल्ली विधानसभा में पड़ सकता है। खासकर कांग्रेस का इन दोनों राज्यों में बेहतर रिजल्ट दिल्ली में कांग्रेस के लिए नई उम्मीद जगा सकता है। लेकिन पिछले चुनाव से भी खराब स्थिति हुई तो भी इसका निगेटिव असर भी पड़ना तय है।

राजनीति के जानकारों का कहना है कि हरियाणा चुनाव का असर दिल्ली में ज्यादा है, क्योंकि यह दिल्ली से सटा हुआ राज्य है। जातीय समीकरण से लेकर सामाजिक समीकरण भी हरियाणा और दिल्ली में लगभग समान हैं। जिस प्रकार हरियाणा में जाट समुदाय चुनाव में अहम है, उसी प्रकार दिल्ली में भी है। हजारों की संख्या में दिल्ली व हरियाणा के लोग एक दूसरे शहर में रोजाना आते जाते हैं, जॉब करते हैं, रहन सहन एक है, काम एक है और चुनावी सोच भी मिलती है। इसलिए, हरियाणा के चुनावी मिजाज का असर दिल्ली की राजनीति पर पड़ता रहा है।

अब देखने वाली बात यह है कि कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा रहता है। जानकारों का कहना है कि पिछले पांच साल में कांग्रेस के अंदर बहुत कुछ बदल गया है। दिल्ली कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे शीला दीक्षित के निधन के बाद 20 जुलाई से लेकर अब तक पार्टी अध्यक्ष के तौर पर उनका विकल्प नहीं ढूंढ पाई है। कांग्रेस की दूसरी बड़ी चिंता जाट नेता की कमी है, दिल्ली में जाट के नेता के तौर पर उसका बड़ा चेहरा सज्जन कुमार जेल में हैं।

दिल्ली की राजनीति पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट्स का कहना है कि हरियाणा में जिस प्रकार कांग्रेस बंटी हुई दिखी, उससे तो यही कयास है कि पिछले चुनाव से भी खराब स्थिति होने वाली है। ऐसे में कांग्रेस के लिए यह चुनाव किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सात में से पांच सीट पर दूसरे स्थान हासिल कर ऐसे संकेत दिए थे कि जनता में उनके प्रति रूझान बदला है, लेकिन पिछले कुछ महीनों से दिल्ली कांग्रेस के अंदर मचा घमासान एक बार फिर से उनके लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है।

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