सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार किया अपनी शक्ति का ऐसा इस्तेमाल, मणिपुर के बीजेपी मंत्री को किया बर्खास्त, स्पीकर ने 3 साल से दबा रखी थी फाइल

ग्वालियर
उच्चतम न्यायालय ने बुधवार (18 मार्च, 2020) को एक दुर्लभ कदम के तहत अपनी पूर्ण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए भाजपा के जनप्रतिनिधि एवं मणिपुर के वन विभाग के कैबिनेट मंत्री टीएच श्यामकुमार को तत्काल हटाने का आदेश दिया और अगले आदेश तक उनके विधानसभा में प्रवेश पर रोक लगा दी। उच्चतम न्यायालय किसी सरकार से किसी कैबिनेट मंत्री को हटाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिली अपनी पूर्ण शक्ति का इस्तेमाल दुर्लभ ही करता है।

श्यामकुमार 2017 में कांग्रेस के एक उम्मीदवार के तौर पर विधानसभा चुनाव जीते थे लेकिन बाद में भाजपा सरकार में शामिल हो गए थे। उन्हें अयोग्य ठहराने संबंधी अर्जी अभी भी विधानसभाध्यक्ष के पास लंबित है। शीर्ष अदालत ने 21 जनवरी को जनप्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराने संबंधी 13 अर्जियों पर निर्णय करने में अत्यधिक देरी को संज्ञान में लिया था जो अप्रैल 2017 से लंबित हैं। शीर्ष अदालत ने मणिपुर विधानसभाध्यक्ष से कहा था कि वह कांग्रेस के एक नेता की अर्जी पर चार सप्ताह में निर्णय करें जिसमें उन्होंने श्यामकुमार को अयोग्य ठहराने की मांग की है।

विधानसभाध्यक्ष ने मंगलवार को शीर्ष अदालत से अपील की कि वह मामले को 28 मार्च तक टाल दे और कहा कि उस समय तक अयोग्य ठहराने के अनुरोध वाली अर्जियों पर अध्यक्ष द्वारा निश्चित तौर पर एक निर्णय हो जाएगा। न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की एक पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले के असाधारण तथ्यों को देखते हुए, ‘हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिली अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने को विवश हैं।’

पीठ ने मामले की अगली सुनवायी 30 मार्च को करना तय करते हुए कहा, ‘प्रतिवादी नम्बर तीन (टीएच श्यामकुमार) के विधानसभा में प्रवेश पर इस अदालत के अगले आदेश तक रोक लगायी जाती है। यह जोड़ने की जरूरत नहीं है कि वह तत्काल प्रभाव से कैबिनेट के एक मंत्री नहीं रहेंगे।’

शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने अपने 21 जनवरी के फैसले में विधानसभाध्यक्ष को भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत अपना कार्य करने का एक मौका दिया था और कहा था, ‘इस तथ्य को देखते हुए कि बिना किसी निर्णय के इतना लंबा समय पहले ही बीत गया है, माननीय अध्यक्ष को उनके समक्ष लंबित अयोग्य ठहराने के अनुरोध की याचिकाओं पर फैसला करने के लिए एक महीना का समय पर्याप्त होना चाहिए।’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *