साध्वी प्रज्ञा चुनाव मैदान में, दिग्विजय के लिए मुश्किल हुई लड़ाई

भोपाल

मध्य प्रदेश की भोपाल लोकसभा सीट पर इस बार सभी की निगाहें होंगी. क्योंकि यहां मुकाबला होने जा रहा है कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और 10 साल तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह और मालेगांव धमाके की आरोपी और बीजेपी प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा के बीच. यह मुकाबला इसलिए भी रोचक माना जा रहा है क्योंकि 16 साल बाद दिग्विजय मध्य प्रदेश की राजनीति के केंद्र में हैं और उनका मुकाबला उनकी धुर विरोधी साध्वी प्रज्ञा से होने जा रहा है.

इस मुकाबले को 72 की उम्र के दिग्विजय के लिए आर-पार की लड़ाई माना जा रहा है तो वहीं साध्वी प्रज्ञा के लिए यह एक तरह से सियासत की शुरुआत है. लेकिन राजनीतिक पंडितों का कहना है कि दिग्विजय के लिए यह मुकाबला भारी ना पड़ जाए. क्योंकि भोपाल लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ है और कांग्रेस 1984 के बाद यहां से जीत दर्ज नहीं कर पाई है.

आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो भोपाल में आखिरी बार कांग्रेस 1984 में जीती थी. इसके बाद यहां 35 साल से लोकसभा चुनाव में लगातार बीजेपी जीतती आ रही है. 1989 में सुशील चंद्र शर्मा ने यहां पर बीजेपी का खाता खोला था इसके बाद वो 1991, 1996 और 1998 में वो लगातार जीते. इसके बाद 1999 में यहां से उमा भारती, 2004 और 2009 में कैलाश जोशी और 2014 में आलोक संजर चुनाव जीते थे.

शिवराज की एंट्री बिगाड़ेगी दिग्विजय का काम…

दिग्विजय सिंह की भोपाल लोकसभा सीट पर जीत इसलिए भी मुश्किल हो सकती है क्योंकि बीजेपी ने मध्य प्रदेश में किसी बाहरी नेता को लोकसभा चुनाव का प्रभारी बनाने के बजाय पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कमान दी है. साध्वी प्रज्ञा के नाम का ऐलान होने के बाद शिवराज और संघ एक्टिव हो गए और भोपाल में तत्काल मीटिंग भी बुलाई और बीजेपी के नेताओं को एकजुट करना शुरू कर दिया है.

देखा जाए तो साध्वी प्रज्ञा को शिवराज का साथ मिलने के बाद दिग्विजय के लिए लड़ाई और मुश्किल हो गई है. क्योंकि भोपाल में शिवराज अच्छी खासी पकड़ रखते हैं और यहां तक कि ग्रामीण इलाकों में भी उनकी पैठ है. ऐसे में शिवराज की छवि का फायदा साध्वी प्रज्ञा को मिल सकता है.

क्या कहता है जातीय समीकरण और विधानसभा का गणित…

भोपाल लोकसभा सीट के जातीय समीकरण को देखा जाए तो यहां सबसे ज्यादा 75 से 80 प्रतिशत हिंदू वोटर हैं. जबकि 20 से 25 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं. वहीं, अनुसूचित जाति के वोटर्स यहां 14.83 प्रतिशत हैं और अनुसूचित जनजाति के वोटर्स 2.56 प्रतिशत है. इसके अलावा यहां 21 प्रतिशत वोटर्स ग्रामीण इलाकों में रहते हैं और बाकी शहरी इलाकों में.

2018 के विधानसभा चुनाव में भोपाल लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली आठ विधानसभा सीटों पर कांग्रेस कोई दमदार जीत हासिल नहीं कर पाई थी. यहां अभी आठ में से 5 सीटों पर बीजेपी और 3 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है. यहां चुनाव में 11 फीसदी ज्यादा वोट कांग्रेस को मिले थे.

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