श्रम कानूनों में सुधार: इंडस्ट्री का हित या मजदूरों का शोषण? जानें तमाम पक्षों की राय

 
नई दिल्ली
 
कोरोना महामारी से उपजे हालात के बीच उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात जैसे कई राज्यों ने अचानक अपने श्रम कानूनों में भारी बदलाव कर दिए. खासकर यूपी में तो कई ऐसे कानूनों को तीन साल के लिए खत्म कर दिया गया जिनकी वजह से कामगारों को संरक्षण मिलता था. इनकी तमाम श्रम संगठनों और विपक्ष के द्वारा घोर आलोचना की जा रही है. ये बदलाव जरूरी थे या इंडस्ट्री के दबाव में सरकार ने ऐसा किया है? Aajtak.in ने नेताओं, श्रमिक संगठनों, इंडस्ट्री चैंबर जैसे तमाम पक्षों से बात कर इसे समझने की कोशिश की.

श्रम कानूनों में क्या हुए बदलाव

सबसे पहले तो यह जान लें कि विभिन्न राज्यों और खासकर यूपी में श्रम कानूनों में क्या बदलाव हुए हैं. असल में यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार इस मामले में विपक्ष के ज्यादा निशाने पर है, क्योंकि उसने कई ऐसे कानूनों को तीन साल के लिए खत्म कर दिया जिनके बारे में कहा जाता है कि वे कामगारों को पूंजी​पतियों, इंडस्ट्री के शोषण से बचाते थे.
 

गत 6 मई को यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक ऑर्डिनेंस लाकर सभी कारखानों और प्रतिष्ठानों को तीन साल के लिए ज्यादातर लेबर लॉ से मुक्त कर दिया. इनमें यूनियन के गठन का अधिकार, औद्योगिक विवाद की स्थिति में शिकायत करने का अधिकार और समुचित मशीनरी से उसका निराकरण पाने का अधिकार शामिल हैं. यूपी में अब सिर्फ बिल्डिंग ऐंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स एक्ट 1996, वर्कमेन कंपेनजेशन एक्ट 1923, बॉन्डेड लेबर सिस्टम (Abolition) एक्ट 1976 और वेजेज पेमेंट एक्ट 1936 का सेक्शन 5 यानी समय से वेतन पाने का अधिकार ही बचा रह गया है. सरकार ने काम के घंटे भी 8 से बढ़ाकर 12 करने का निर्णय लिया था, लेकिन इस पर हाईकोर्ट से नोटिस मिलने के बाद फिलहाल इसे निरस्त कर दिया गया है.

जिन बदलावों का है सबसे ज्यादा विरोध

-न्यूनतम वेतन मिलने का अधिकार खत्म करना

-बुनियादी सुरक्षा तथा कल्याणकारी मानकों की अनुपस्थिति

-इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट को खत्म कर देना

-यूनियन के गठन का अधिकार खत्म करना

-हफ्ते में 72 घंटे तक यानी हर दिन 12 घंटे काम ( हाईकोर्ट के नोटिस के बाद इसको सरकार ने निरस्त कर दिया है)

एमपी सरकार ने किए ये बदलाव

दूसरी तरफ, एमपी सरकार ने सिर्फ कुछ बदलाव किए हैं. एमपी ने 11 तरह के उद्योगों को मध्य प्रदेश इंडस्ट्रियल रिलेशंस एक्ट 1961 से छूट दे दी है. इसी तरह इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट, 2000 के कई प्रावधानों से भी नई इंडस्ट्री को अगले 1,000 दिनों के लिए छूट दे दी गई है. ऐसी इंडस्ट्री को किसी कामगार को निलंबित करने के लिए सरकार की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी. यूपी ने ज्यादा सख्त रवैया अपनाया है, इसलिए यूपी सरकार की इस मामले में ज्यादा आलोचना भी हो रही है.

कई जानकार तो यह भी कह रहे हैं कि यूपी सरकार का नया ऑर्डिनेंस असंवैधानिक है और इसे कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. इसे अमानवीय और मजदूरों के हितों के पूरी तरह से खिलाफ बताया जा रहा है.

खुद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संघ भी इसके विरोध में खड़ा हो गया है. कांग्रेस ने शुक्रवार को विपक्षी दलों की एक बैठक बुलाई है. उसमें भी इस पर चर्चा होने की संभावना है. दूसरी तरफ, इंडस्ट्री यूपी सरकार की इस घोषणा से बल्ले-बल्ले है और इसका जबर्दस्त स्वागत कर रही है.

भारतीय मजदूर संघ ने विभिन्न राज्यों द्वारा लेबर लॉ को खत्म करने की कवायद को अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के सिद्धांतों के खिलाफ बताया है. मजदूरों संगठनों का कहना है कि सरकारों ने हायर ऐंड फायर करने, मजदूरों के तमाम अधिकारों को खत्म करने की यह पॉलिसी उद्योग जगत के दबाव में बनाया है और इसके लिए कोरोना संकट जैसे मौके का फायदा उठाया गया है. जानकारों का कहना है कि अब तो चीन में भी यहां के कामगारों से ज्यादा सामाजिक सुरक्षा हासिल है.

विरोध में उतरेगा का RSS का मजदूर संघ

भारतीय मजदूर संघ के उपाध्यक्ष जयंती लाल कहते हैं, 'इसमें सबसे पहले तो जो बुनियादी अधिकार होता है, उसके मुताबिक सभी पक्षों से बात होनी चाहिए थी. समस्या मजदूर नहीं, किसी भी इंडस्ट्री के लिए सबसे बड़ी समस्या सरकारी तंत्र है. वर्कर तो अपनी रोजी-रोटी कमाने आता है. आप उसके हाथ-पांव बांध देंगे, न्यूनतम वेतन भी नहीं देंगे, अपनी बात रखने का अधिकार नहीं देंगे तो कैसे चलेगा? अभी कोरोना के दौर में प्रवासी मजदूरों की जो हालत है उससे तो यही लगता है कि कानून और कठोर होना चाहिए. सरकार तो उलटा कर रही है.'

ब्यूरोक्रेट और उद्योगपतियों के दबाव में यूपी सरकार!

जयंती लाल ने कहा, 'भारतीय मजदूर संघ इसका विरोध करता है. हम इसके लिए व्यापक आंदोलन करेंगे. सरकार किसी की भी हो, हम इसका विरोध करेंगे. हमने राज्य सरकार को अपना विरोध पहुंचा दिया है. कम से कम बेसिक कानून न्यूनतम वेज, काम के 8 घंटे तय होने ही चाहिए.  

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