शारदीय नवरात्र: काशी में है नौ देवियों के नौ मंदिर, जानिये इनकी विशेषताएं और किस मुहल्ले में है मंदिर

 वाराणसी

शारदीय नवरात्र रविवार से शुरू हो गया है। लोगों ने कलश स्थापना के साथ पूजा पाठ शुरू कर दी है। इस वर्ष देवी दुर्गा का आगमन हाथी पर और वापसी घोड़े पर हो रही है। देवी का यह आगमन और गमन दोनों ही संकट की चेतावनी है। दुर्गाशप्तशती में कहा गया है कि देवी के दोनों ही वाहन प्राकृतिक आपदाओं के प्रतीक हैं। पं. विष्णुपति त्रिपाठी के अनुसार इसका यह तात्पर्य नहीं है कि आगमन और विदाई दोनों ही अमंगलकारी हैं, अपितु इसका अभिप्राय यह है कि हम भविष्य के संकटों के प्रति वर्तमान से ही सचेत हो जाएं । संकट का सामना करने के लिए हम प्रत्येक स्तर पर स्वयं को तैयार करें। 

वाराणसी में शारदीय नवरात्र का विशेष महत्व है। जहां एक ओर आकर्षक पूजा पंडाल सजाए जाते हैं और मां दुर्गा का आह्वान किया जाता है वहीं, दूसरी ओर नौ देवियों की पूजा पाठ का क्रम पूरे नौ दिन चलता रहता है। काशी इकलौती ऐसी नगरी है जहां सभी नौ देवियों और नौ गौरियों का अलग अलग मंदिर है। नवरात्र के अलग अलग दिन इन मंदिरों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। 

प्रथम शैलपुत्री
इस वर्ष नवरात्र का पहला दिन जिसे पंचांग में प्रतिपदा कहते हैं, 29 सितंबर, रविवार को पड़ेगा। इसी दिन घटस्थापना की जाएगी। प्रतिपदा पर मां शैलपुत्री स्वरूप का पूजन होता है। शैलपुत्री को देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों में प्रथम माना गया है। हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण देवी का नाम शैलपुत्री पड़ा। कथा के अनुसार दक्षप्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया।  

द्वितीया ब्रह्मचारिणी
शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन अर्थात् द्वितीया तिथि पर देवी दुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी का दर्शन पूजन किया जाएगा। द्वितीया 30 सितंबर यानी सोमवार को है। ब्रह्म का अर्थ तप है और चारिणी का अर्थ आचरण करने वाली।  

तृतीया चंद्रघंटा
शारदीय नवरात्र की तृतीया तिथि इस वर्ष एक अक्तूबर को मंगलवार के दिन पड़ेगी। तृतीया पर काशी में देवी के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा होती है। देवी पुराण के अनुसार देवी दुर्गा के तृतीय स्वरूप को चंद्रघंटा नाम मिला। देवी के चंद्रघंटा स्वरूप का ध्यान करने से भक्त का इहलोक और परलोक दोनों सुधर जाता है। 

चतुर्थ कूष्मांडा
नवरात्र में देवी दर्शन के क्रम में चतुर्थी तिथि इस वर्ष दो अक्तूबर बुधवार के दिन पड़ेगी। शारदीय नवरात्र की इस तिथि पर देवी के कूष्मांडा स्वरूप का दर्शन-पूजन करने का विधान है। शारदीय नवरात्र की चतुर्थी तिथि पर देवी के कुष्मांडा स्वरूप का दर्शन-पूजन करने से मनुष्य के समस्त   पापों का क्षय हो जाता है। 

पंचम स्कंदमाता
शादरीय नवरात्र का पांचवा दिन पंचमी तिथि कहलाती है। इस वर्ष पंचमी तिथि तीन अक्तूबर को गुरुवार के दिन पड़ रही है। इस तिथि पर देवी दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप का दर्शन पूजन होता है। भगवती भवानी के पंचम स्वरूप (स्कंदमाता) की उपासना का विशेष विधान शारदीय नवरात्र की पंचमी तिथि पर है।  

षष्ठ कात्य
शारदीय नवरात्र का छठा दिन षष्ठी तिथि कहलाता है। षष्ठी तिथि चार अक्तूबर को शुक्रवार के दिन पड़ रही है। इस दिन देवी के कात्यायनी स्वरूप की पूजा होती है। देवी दुर्गा के छठे स्वरूप का दर्शन साधकों को सद्गति प्रदान करने वाला कहा गया है। शारदीय नवरात्र में षष्ठी तिथि पर देवी के दर्शन पूजन का विशेष महात्म्य देवी पुराण और स्कंदपुराण में बताया गया है। 

सप्तम कालरात्रि

देवी दुर्गा की आराधना क्रम में नवरात्र की सप्तमी तिथि पर देवी के कालरात्रि सवरूप का पूजन किया जाता है। सप्तमीतिथि अक्तूबर को शनिवार के दिन पड़ेगी। शारदीय नवरात्र में सप्तमी तिथि पर देवी के कालरात्रि स्वरूप के दर्शन पूजन का विधान है। इनके स्वरूप, स्वभाव और प्रभाव का आभास उनके नाम से ही हो जाता है।  

अष्टम महागौरी
दुर्गा नवरात्र के  भी नाम से जाने जाने वाले शारदीय नवरात्र की अष्टमी तिथि छह अक्तूबर को रविवार के दिन पड़ेगी। इस तिथि पर देवी के महागौरी स्वरूप का पूजन होगा। शारदीय नवरात्र की अष्टमी तिथि पर देवी दुर्गा के महागौरी का संबंध देवी गंगा से भी है। धर्म ग्रंथों में देवी की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि इस स्वरूप के दर्शन मात्र से पूर्व संचित समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। 
नवम सिद्धिदात्री
शारदीय नवरात्र का नौवां दिन नवमी तिथि कहलाती है। इस वर्ष नवमी की तिथि सात अक्तूबर को सोमवार के दिन पड़ेगी। इस तिथि पर देवी के सिद्धिदात्री स्वरूप का दर्शन-पूजन होगा। देवी का यह स्वरूप समस्त प्रकार की सिद्धियां प्रदान करने वाला है। इसी आधार पर देवी का नामकरण हुआ और उन्हें सिद्धिदात्रि कहा गया। हिमाचल के नंदा पर्वत पर देवी का मूल स्थान है। देवी की कृपा से उनका उपासक कठिन से कठिन कार्य भी सरलता पूर्वक संपादित कर लेता है। 

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