वोट चेक करने वाली VVPAT की पूरी कहानी, कब बनी, कैसे करती है काम?

 
नई दिल्ली

सशक्त चुनाव प्रणाली से लोकतंत्र मजबूत होता है. लोकतांत्रिक देश में चुनाव से सरकार बनती है. सही सरकार चुनी जाए इसके लिए जरूरी है ज्यादा से ज्यादा मतदान हो. जब मतदान की बात आती है तो पारदर्शिता का ध्यान रखा जाए, यह भी बहुत जरूरी है. इसी को देखते हुए चुनावी प्रक्रिया में तब्दीली होती रही है. पहले जहां बैलेट पेपर के जरिए मतदान होता था. अब उसकी जगह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) ने ली है. ईवीएम लाने के पीछे मतगणना में लगने वाले समय को कम करने और बैलेट से भरी मत पेटियों के रखरखाव में होने वाले खर्च को बचाना भी था. लेकिन ईवीएम की पारदर्शिता पर भी सवाल उठने लगे. जिसे देखते हुए चुनाव आयोग वोटर वेरिएफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) का कॉन्सेप्ट लेकर आया. जिसके जरिए मतदाता को यह पता चलता है कि जिस कैंडिडेट के लिए ईवीएम में उसने बटन दबाई है, वोट उसे ही मिला है. इसके लिए ईवीएम से VVPAT मशीन भी जुड़ी होती है.

कैसे काम करती है VVPAT?

VVPAT मशीन ईवीएम के साथ कनेक्ट होती है. जब वोटर EVM में किसी कैंडिडेट के नाम और चुनाव चिन्ह के सामने का बटन दबाता है तो VVPAT से एक पर्ची निकलती है. यह बताती है कि मतदाता ने जिस कैंडिडेट को वोट किया है, वोट उसे ही मिला है. वीवीपैट मशीन डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम (DRE) के तहत काम करती है.

7 सेकेंड तक दिखती है पर्ची

आपने किस कैंडिडेट को वोट किया है यह VVPAT मशीन से निकलने वाली पर्ची में दिखता है. इस पर्ची में मतदाता को प्रत्याशी का चुनाव चिन्ह और नाम उसकी ओर से चुनी गई भाषा में दिखाई देगा. यह पर्ची 7 सेकेंड तक दिखती है फिर सीलबंद बॉक्स में गिर जाती है.

क्या होता है VVPAT से निकलने वाली पर्ची का?

VVPAT से निकलने वाली पर्ची 7 सेकेंड के बाद मशीन में ही गिर जाती है. यह मशीन पूरी तरह से पैक और लॉक होती है. अगर कोई सोचे कि ये पर्ची उसे मिल जाएगी तो ऐसा नहीं. सिर्फ पोलिंग अधिकारी ही VVPAT की इस पर्ची तक पहुंच सकता है. काउंटिंग के दिन इन पर्चियों का मिलान इलेक्ट्रॉनिक वोटों से किया जा सकता है.

कैसे होता है वोटों और पर्ची का मिलान?

काउंटिंग के दिन वोटों की गिनती में किसी प्रकार के विवाद होने पर प्रत्याशी की मांग पर वोटों और पर्ची का मिलान किया जाता है. अब सवाल उठता है कि मिलान कैसे होता है? क्या एक-एक वोट गिना जाता है? तो जवाब आसान है. एक ईवीएम में जितने वोट पड़े हैं ये काउंटिंग के दिन मशीन की Result बटन दबाते ही पता चल जाता है कि किस कैंडिडेट को कितने वोट मिले हैं. इसी आधार VVPAT की पर्चियों की गिनती कर ली जाती है. इससे स्थिति साफ हो जाती है.

कितने बूथ पर होगा पर्चियों का मिलान?

इससे पहले हुए चुनाव में हर विधानसभा क्षेत्र में सिर्फ 1 बूथ पर पर्चियों का मिलान होता था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में 21 विपक्षी दलों ने याचिका दायर कर 50 फीसदी ईवीएम और वीवीपैट का मिलान करने की मांग की थी. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली सभी विधानसभाओं के 5 बूथों पर ईवीएम और वीवीपैट का मिलान किया जाए.
 
कहां बनती है यह VVPAT वाली मशीन?

चुनावी प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाने और ईवीएम पर उठने वाले सवालों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था. जिसके बाद भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) ने यह मशीन 2013 में बनाई थी. यही दोनों भारतीय कंपनियां ईवीएम भी बनाती हैं.

सौ साल लग गए वीवीपैट के आइडिया में?

बात सन 1890 की है. अमेरिका में मतदाता को यह पता नहीं चलता था कि उसका दिया गया वोट सही कैंडिडेट को गया है या नहीं. इसी को लेकर 1897 में होरेशियो रोजर्स ने निरीक्षण किया था. जिसमें उन्होंने पाया है डायरेक्ट वोटिंग मशीन प्रणाली से मतदाता के पास कोई प्रूफ नहीं रहता था कि उसका दिया गया वोट कहां गया. साल गुजरा और अगले ही साल 1899 में जोसेफ ग्रे ने एक ऐसा मेकेनिज्म बताया जिसमें मशीन से वोटिंग के वक्त एक टिकट निकले जिसे बैलेट बॉक्स में डालने से पहले मतदाता खुद देख सके. हालांकि वोट अब भी मशीन से ही डाले जा रहे थे, लेकिन एक टिकट मिलने का साधन उन्होंने सुझाया था. वोटिंग मशीन में सुधार होते गया है और EVM तक पहुंच गया. लेकिन पर्ची को लेकर लड़ाई सुधार की गुंजाइश अभी थी.

अमेरिकी कंप्यूटर प्रोफेशनल ने उठाई थी आवाज

ईवीएम में होनी वाली गड़बड़ी को रोकने के लिए कंप्यूटर सिक्योरिटी प्रफेशनल ब्रूस स्नायर (Bruce Schneier) ने 1990 के दशक में फिर से आवाज बुलंद थी. उन्होंने ही वीवीपैट की डिमांड की. 1992 में अमरेकी कम्प्यूटर साइंटिस्ट रेबेका मरक्यूरी ने जोसेफ ग्रे के आइडिया को दोहराया. सन 2000 में मरक्यूरी ने ही मरक्यूरी मैथड पर पीएचडी की. इसमें उन्होंने मशीन से निकलने वाली वीवीपैट और मतदाता के बीच कांच की दीवार का आइडिया भी दिया जिससे वोटर इस पर्ची को अपने साथ न ले जा सकें.

पहली बार कहां हुआ VVPAT का इस्तेमाल?

इसका इस्तेमाल कैलिफोर्निया के सार्कमेंटो शहर में हुए चुनाव में 2002 में हो चुका था. इस वीवीपैट वाली मशीन को एवांते इंटनेशनल टेक्नोलॉजी ने बनाया था. अमेरिका में 27 राज्यों में वीवीपैट का इस्तेमाल आम चुनावों में होता है जबकि 18 राज्य इसे सिर्फ लोकल और विधानसभा चुनाव में ही अपनाते हैं. जबकि5 ऐसे राज्य हैं जो वीवीपैट को नहीं अपनाते हैं.
 

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