‘वोटकटवा’ कांग्रेस पर गठबंधन का गुस्सा यूं ही नहीं!

 
लखनऊ

लोकसभा चुनाव के पहले चार चरणों तक एसपी-बीएसपी और कांग्रेस के बीच सब खुशनुमा चल रहा था। मायावती हमलावर थीं, लेकिन अखिलेश यादव नरम थे। राहुल गांधी के बोल भी मीठे थे। आखिरी तीन चरणों के चुनाव शुरू होते ही सब एक-दूसरे के खिलाफ हो गए हैं। राहुल एसपी-बीएसपी को बीजेपी की बी टीम बता रहे हैं। एसपी-बीएसपी कांग्रेस पर बीजेपी को फायदा पहुंचाने का आरोप लगा रही है। 
 
दरअसल, गठबंधन का यह गुस्सा अनायास नहीं है। इन तीन चरणों की 41 सीटों में करीब 24 सीटों पर कांग्रेस ने मुकाबले को सीधा या त्रिकोणीय बना बीजेपी से अधिक गठबंधन को सकते में ला दिया है। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव अपनी पार्टी को इशारे में 'वोट कटवा' बता चुकी हैं। उनका कहना है कि जिन सीटों पर कांग्रेस की स्थिति हल्की है, वहां ऐसे उम्मीदवार उतारे हैं, जिससे बीजेपी का वोट काट सकें। 

बीएसपी प्रमुख मायावती का कहना है कि कांग्रेस ने ज्यादातर सीटों पर बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए उम्मीदवार खड़े किए हैं। जमीनी आकलन करें, तो दोनों की ही बात में दम है। कुछ सीटों पर कांग्रेस ने बीजेपी के लिए मुसीबत जरूर बढ़ाई है, लेकिन डेढ़ दर्जन सीटों पर कांग्रेस ने लड़ाई त्रिकोणीय बनाकर एसपी-बीएसपी के वोटों में बंटवारे का खतरा भी पैदा कर दिया है। इन सीटों पर उतरे अधिकतर चेहरे भी एसपी-बीएसपी से ही आए हैं। अब जब तीन चरणों की आधे से अधिक सीटों पर कांग्रेस लड़ाई में दिख रही है, तो एसपी-बीएसपी का तेवर कांग्रेस के प्रति तल्ख होना लाजमी है। 

यहां कांग्रेस फंसा रही पेच
धौरहरा: कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद को उतारा है। ब्राह्मण वोटरों की गोलबंदी कर बीजेपी का नुकसान करेंगे। मजबूत दिखे, तो दलित व मुस्लिम वोटों में भी सेंधमारी कर सकते हैं, जिसका नुकसान गठबंधन को होगा। 

सीतापुर: कांग्रेस ने पूर्व सांसद कैसर जहां को उम्मीदवार बनाया है। कैसर बीएसपी से सांसद रह चुकी हैं। ऐसे में बीएसपी कैडर में सेंध के साथ ही मुस्लिम वोटों में बंटवारा कर गठबंधन की मुस्लिम बढ़ सकती हैं। 

मोहनलालगंज: लखनऊ जिले की इस सीट पर कांग्रेस ने आरके चौधरी को उतारकर लड़ाई त्रिकोणीय बना दी है। आरके चौधरी यहां के पुराने चेहरे हैं और अपने दम पर भी अच्छा वोट पाते रहे हैं। उनकी मौजूदगी वोटों में बंटवारा करेगी। त्रिकोणीय लड़ाई बीजेपी को सुहाती है। 

बांदा: कांग्रेस ने यहां एसपी से ही आए पूर्व सांसद बाल कुमार पटेल को उम्मीदवार बनाया है। बीजेपी का प्रत्याशी भी यहां कुर्मी बिरादरी से है। बिरादरी के वोटों में बाल कुमार ने तगड़ी सेंध लगाई, तो बीजेपी को नुकसान हो सकता है। 

फतेहपुर: कांग्रेस ने एसपी के पूर्व सांसद राकेश सचान को उम्मीदवार बनाया है। सचान यहां के प्रभावशाली नेताओं में हैं। गठबंधन ने भी कुर्मी बिरादरी का उम्मीदवार उतारा है। ऐसे में वोटों का बंटवारा गठबंधन को असहज बनाएगा।

बाराबंकी: कांग्रेस के दिग्गज नेता पीएल पुनिया के बेटे तनुज पुनिया यहां उम्मीदवार हैं। पीएल पुनिया यहां से सांसद रह चुके हैं। दलित के साथ ही मुस्लिम वोटों का समर्थन हासिल करने के लिए वे पसीना बहा रहे हैं। मुस्लिम वोटों में सेंधमारी की तो नुकसान गठबंधन को होगा, नहीं तो बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी करेंगे। 

फैजाबाद: पूर्व सांसद व कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके निर्मल खत्री उम्मीदवार हैं। उनकी लड़ाई त्रिकोणीय है। शहरी व कस्बाई वोटों पर उनका असर काम आया, तो बीजेपी की दिक्कत बढ़ेगी। इसके साथ ही दलित-मुस्लिमों का समर्थन हासिल करने में कामयाब रहे तो गठबंधन को दिक्कत होगी। 

बहराइच: कांग्रेस ने बीजेपी की पूर्व सांसद साध्वी निरंजन ज्योति को उतारा है। दलितों के साथ ही पुराने जनाधार के आधार पर अगर सवर्ण वोटों को भी अपने पाले में कर सकीं, तो नुकसान बीजेपी को होगा। हालांकि, यहां मुकाबला त्रिकोणीय के बजाय सीधा रहता, तो एसपी-बीएसपी गठबंधन अधिक फायदे में रहता। 

सुलतानपुर: कांग्रेस से यहां राज्यसभा सांसद संजय सिंह लड़ रहे हैं। संजय यहां पहले भी सांसद रह चुके हैं। गठबंधन से सोनू सिंह उम्मीदवार हैं। एक ही बिरादरी से दो उम्मीदवार होने के कारण जातीय वोटों का बंटवारा हो सकता है। बीजेपी की मेनका गांधी के खिलाफ यहां लड़ाई त्रिकोणीय हो गई है। 

बस्ती: कांग्रेस ने अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे राजकिशोर सिंह को उम्मीदवार बनाया है। बीजेपी व एसपी-बीएसपी गठबंधन की सीधी लड़ाई को राजकिशोर की एंट्री ने त्रिकोणीय बना दिया है। राजकिशोर हालांकि सर्वण वोटों में बंटवारा कर बीजेपी को नुकसान पहुंचाएंगे, लेकिन जमीनी स्तर तक पहुंच होने के चलते हर वर्ग में उनकी पैठ है। इसलिए उनका प्रदर्शन बीजेपी व गठबंधन दोनों को नुकसान पहुंचा सकता है। 

संतकबीर नगर: कांग्रेस ने यहां एसपी के पूर्व सांसद भालचंद यादव को उम्मीदवार बना दिया है। ब्राह्मण, दलित व यादवों की बहुतायत वाली इस सीट पर कांग्रेस का यह दांव गठबंधन की मुसीबत बढ़ाएगा। भालचंद के न लड़ने से एसपी के कोर वोटरों के बंटवारे का खतरा नहीं रहता। 
 

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