लोकसभा चुनाव 2019: एग्जिट पोल या पोस्ट पोल, जानें कौन सटीक और भरोसेमंद?
नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव 2019 अपने आखिरी दौर में पहुंच चुका है और 19 मई को अंतिम चरण की वोटिंग के बाद एग्जिट पोल आने शुरू हो जाएंगे. नतीजों से पहले जीत-हार का अनुमान बताने वाले इन पोल्स पर सभी की निगाहें टिकी रहती हैं. एग्जिट पोल, ओपिनियन पोल का ही हिस्सा है. लेकिन दोनों के आंकड़े निकालने का तरीका अलग-अलग होता है. आइए जानते हैं इनमें क्या फर्क होता है और कैसे ये मतदाताओं से उनकी राय लेने में काम करते हैं?
क्या होता है ओपिनियन पोल?
ओपिनियन पोल सीधे वोटर से जुड़ा होता है. इसमें जनता की राय को समझने के लिए अलग-अलग तरीके से आंकड़े जमा किए जाते हैं. यानी लोगों से बात करने, उनकी राय जानने के तरीके अलग-अलग अपनाए जाते हैं. प्री पोल, एग्जिट पोल और पोस्ट पोल ओपिनियन पोल की 3 शाखाएं हैं. पर ज्यादातर लोग एग्जिट पोल और पोस्ट पोल को एक ही समझ लेते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. ये दोनों एक-दूसरे बिल्कुल अलग होते हैं.
प्री पोल क्या होता है?
किसी भी चुनाव की घोषणा और वोटिंग से पहले जो सर्वे आप टीवी में देखते हैं या अखबारों में पढ़ते हैं कि अगर आज चुनाव हुए तो किस पार्टी की सरकार बनेगी, यह प्री पोल होता है. जैसे मान लीजिए कि लोकसभा चुनाव 2019, 11 अप्रैल से 19 मई तक सात चरणों में होंगे. चुनाव की घोषणा 11 मार्च को हुई थी. जिसके बाद टीवी चैनल या अखबारों ने बताया कि आज चुनाव हुए तो किस पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगी. यह प्री पोल से ही तय होता है.
एग्जिट पोल किसे कहते हैं?
एग्जिट पोल हमेशा वोटिंग के दिन होता है. एग्जिट पोल में मतदान देने के तुरंत बाद जब वोटर पोलिंग बूथ से बाहर निकलता है तो उससे कुछ सवाल करके उसका मन टटोला जाता है. फिर उसका विश्लेषण किया जाता है. इसे एग्जिट पोल कहते हैं. इसका डाटा वोटिंग वाले दिन जमा किया जाता है फिर आखिरी वोटिंग के दिन दिन शाम को एग्जिट पोल दिखाया जाता है.
पोस्ट पोल में क्या तय होता है?
पोस्ट पोल के परिणाम ज्यादा सटीक होते हैं. एग्जिट पोल में सर्वे एजेंसी मतदान के तुरंत बाद मतदाता से राय जानकर मोटा-मोटा हिसाब लगा लेती हैं. जबकि पोस्ट पोल हमेशा मतदान के अगले दिन या फिर एक-दो दिन बाद होते हैं. जैसे मान लीजिए छठे चरण की वोटिंग 12 मई को हुई थी. तो सर्वे करने वाली एजेंसी मतदाताओं से 13, 14, या 15 मई तक उनकी राय जान ली होगी, इसे पोस्ट पोल कहा जाता है.
किस पर करना चाहिए भरोसा?
इसका सीधा जवाब है पोस्ट पोल. अगर आप आंकड़ों पर जाएं तो सैंपलिंग सबसे ज्यादा मायने रखती है. इस आधार पर ये कहा जा सकता है कि प्री पोल या पोस्ट पोल के मुकाबले एग्जिट पोल के गलत होने की संभावना ज्यादा है क्योंकि एग्जिट पोल की प्रक्रिया में उन वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग नहीं हो पाता है जो पोस्ट पोल या प्री पोल में अपनाई जाती हैं.
क्यों है ज्यादा सटीक, ऐसे समझिए?
पोस्ट पोल के जरिए जनता की राय जानने में सबसे बड़ा काम फील्ड वर्क का होता है. इसकी सैंपलिंग के लिए चुनावी सर्वे करने वाली एजेंसी के कर्मचारी आम लोगों से मिलकर उनकी राय जानते हैं. इस प्रक्रिया में जिन लोगों को शामिल किया जाता है उन्हें एक फॉर्म भरने को दिया जाता है. ताकि मतदाताओं की पहचान गुप्त रहे और वो बेझिझक आपनी राय दे दें. इस फॉर्म को एक सीलबंद डिब्बे में रख जाता है.
पोस्ट पोल में यह सबसे महत्वपूर्ण होती है. पोस्ट पोल वोटिंग के एक-दो दिन बाद होते हैं. जबकि एग्जिट पोल में वोटर्स से वोटिंग के दिन राय ली जाती है. इस विधा में पोलिंग बूथ पर वोटर्स से राय जानी जाती है, जबकि ओपिनियन पोल के लिए एजेंसी के लोग गांवों, कस्बे, जिले स्तर पर लोगों से राय लेने जाते हैं. ऐसे में वोटर्स को किसी बात की हड़बड़ी नहीं होती है. वो जिसे वोट दे चुका है उसके नाम का पर्चा डिब्बे में डाल देता है.