लाॅकडाउन के बीच महुआ बिनने में व्यस्त हैं आदिवासी, सोशल डिस्टेसिंग रख रहे ख्याल

सुकमा
छत्तीसगढ़ के सुकमा में लाॅकडाउन के चलते गांव-गांव में नाकेबंदी कर दी गई है. बाहरी व्यक्ति के प्रवेश बंद कर दिए गए हैं. ऐसे में आदिवासी ग्रामीण खाली समय जंगलों में महुआ बिनने में व्यस्त हैं. क्योंकि महुआ आदिवासियों के जीवन, संस्कृति व आमदनी में अहम भूमिका निभाता है. इसलिए महुआ में बिनने में आदिवासी इन दिनों में व्यस्त हैं. खासबात यह है कि महुआ बिनने में भी आदिवासी शोसल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रख रहे हैं.

पिछले 8 दिनों से पूरा छत्तीसगढ़ लाक डाउन है और लोग घरों में बैठे है. जिसका असर सुकमा जिले में भी देखने को मिल रहा है. यहां पर गांव-गांव में नाकेबंदी कर दी गई है. समय काटने के लिए आदिवासी जंगलों में महुआ बिनने में निकाल रहे है. अलसुबह अपने परिवार के साथ जंगलों में महुआ बिनने के लिए चले जाते है और दोपहर को खाना खाने के बाद देर शाम तक जंगलों में महुआ बिनते नजर आते हैं, जिसमें पत्नि व बच्चे भी शामिल होते हैं.

कोरोना के चलते कई मजदूर जो बाहर काम करते है वो भी घरों में हैं ऐसे में अपने परिवार के साथ महुआ बिनने चले जाते हैं. क्योंकि इन दिनों महुआ का सीजन चल रहा है. इस बार महुआ काफी कम है इसलिए आदिवासी बिना समय बर्बाद किए महुआ बिनने का काम कर रहे है. बता दें कि महुआ आदिवासी समाज के लिए काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि इनकी संस्कृति व आमदनी दोनो में काफी अहम है. साथ ही महुआ से आमदनी भी काफी अच्छी होती है. महुआ की वर्तमान में कीमत करीब 30 रुपये प्रति किलो है. इसके अलावा महुआ की शराब भी बनती है. घर में उपयोग करने के लिए भी महुआ काम आता है.

कोरोना वायरस के संक्रमण केके चलते जिले की साप्ताहिक बाजारे बंद है. साप्ताहिक बाजारों में ही महुआ खरीदा जाता है. यहां पर व्यापारियों को आदिवासी महुआ बेचते हैं, उसके बाद महुआ बाहर बिकता है. लेकिन बाजार बंद होने के कारण मुहुआ का स्टॉक आदिवासी घरों में कर रहे हैं. लाकडाउन खत्म होने के बाद बाजारों में काफी ज्यादा महुआ आने की संभावना है.

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