रामलला के 92 साल के ये वकील भी चर्चा में, अयोध्या केस में राजीव धवन ही नहीं

 
नई दिल्ली 

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी हो गई है. शीर्ष अदालत ने मामले पर अपना फैसला भी सुरक्षित रख लिया है. अब 17 नवंबर से पहले सुप्रीम कोर्ट कभी-भी फैसला सुना सकता है. इस मामले की रोजाना सुनवाई 6 अगस्त से शुरू हुई थी, जो 16 अक्टूबर तक चली. इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने की. इस पूरे मामले में तीन बड़े पक्ष हैं, जिनमें राम जन्मभूमि न्यास, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा शामिल हैं.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से सीनियर एडवोकेट राजीव धवन और रामलला विराजमान की ओर से पाराशरण ने पैरवी की. इस मामले की सुनवाई के आखिरी दिन राजीव धवन ने हिंदू पक्षकार की ओर से पेश किए गए नक्शे को फाड़ दिया, जिसको लेकर वो लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं.

राजीव धवन के अलावा रामलला विराजमान की तरफ से पैरवी कर रहे सीनियर वकील के. पाराशरण पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं. पाराशरण को हिन्दू ग्रंथों की अच्छी जानकारी है. साथ ही वो वकीलों के खानदान से आते हैं. हाल ही में सबरीमाला मंदिर मामला और अयोध्या मामला काफी सुर्खियों हैं. इन दोनों मामले में पाराशरण ने पैरवी की है. सबरीमाला में ये नायर सर्विस सोसाइटी के वकील बने थे, जबकि अयोध्या मामले में रामलला विराजमान के वकील हैं.

पाराशरण ने सबरीमाला मामले में भी की थी पैरवी
सबरीमाला मामले में महिलाओं के मंदिर में प्रवेश करने के अधिकार को लेकर विवाद हुआ था. इस मामले में पाराशरण ने महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने के अधिकार के खिलाफ दलील दी थी. सबरीमाला मामले की सुनवाई के दौरान पाराशरण ने रामचरित मानसा के सुंदरकाण्ड से अयप्पा के ब्रह्मचारी होने की दलील दी थी. पाराशरण के बेटे मोहन भी सॉलिसिटर जनरल रह चुके हैं.

पाराशरण को विरासत में मिली वकालत
पाराशरण का जन्म साल 1927 में तमिलनाडु के श्रीरंगम में हुआ था. उनको वकालत विरासत में मिली. उनके पिता भी वकील थे. पाराशरण ने साल 1958 में वकालत की प्रैक्टिस शुरू की थी. तब से लेकर अब तक कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन पाराशरण सबके भरोसेमंद वकील बने रहे. वो साल 1976 में तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल रहे, उस समय वहां राष्ट्रपति शासन लगा था. जब साल 2003 में NDA सरकार थी, तब उनको पद्म भूषण पुरस्कार से नवाजा गया. इसके बाद साल 2011 में यूपीए सरकार ने पाराशरण को पद्म विभूषण से सम्मानित किया.

किसने कहा इंडियन बार का पितामह?
पाराशरण भारत के सॉलिसिटर जनरल रहे. इसके बाद अटॉर्नी जनरल बने. पाराशरण की काबिलियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रहे संजय किशन कॉल ने इनको इंडियन बार का पितामह कहा था. अयोध्या मामले की बहस के दौरान जब पाराशरण अपनी दलील पेश कर रहे थे, तब चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने उनसे पूछा कि क्या आप बैठकर बहस करना चाहेंगे, तो पाराशरण ने कहा कि इट्स ओके. आप बेहद दयालु हैं, लेकिन बार की परंपरा खड़े होकर बहस करने की रही है. लिहाजा मुझको इस परंपरा का ध्यान रखना है.

किन दलीलों से चर्चा में बने रहे पाराशरण?
अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान पाराशरण की कई दलीलें ऐसी रहीं, जिनसे लोगों का ध्यान उनकी तरफ जाता रहा और वो चर्चा में बने रहे. जब जस्टिस अशोक भूषण ने उनसे पूछा कि जन्म स्थान को एक व्यक्ति के रूप में कैसे जगह दी जा सकती है और मूर्तियों के अलावा बाकी चीजों के कानूनी अधिकार कैसे तय होंगे. इस पर पाराशरण ने ऋग्वेद का उदाहरण दिया, जहां सूर्य को भगवान माना जाता है, लेकिन उनकी कोई मूर्ति नहीं है. मगर देवता होने के नाते उन पर कानून लागू होते हैं.

एक सवाल के जवाब में पाराशरण ने दलील दी कि अयोध्या में 55-60 मस्जिदें हैं और मुस्लिम किसी दूसरी मस्जिद में नमाज पढ़ सकते हैं, लेकिन हिन्दुओं के लिए यह भगवान राम का जन्मस्थान है. हम उनके जन्म स्थान को नहीं बदल सकते हैं.

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