‘राजा’ के समर्थक के नाम पर संदेह के दायरे में ‘महाराजा’ के मंत्री
ग्वालियर
ग्वालियर में पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले 8 फीसदी ज़्यादा वोटिंग होने के बावजूद कांग्रेस के मंत्री और विधाय़क सवालों के घेरे में हैं. लोकसभा चुनाव में 60 फीसदी मतदान हुआ जो 2014 को मुक़ाबले 8 फीसदी ज़्यादा है. लेकिन मंत्री और विधायकों के इलाकों में 2018 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले 14 फीसदी तक कम वोटिंग हुई है. आरोप लग रहे हैं कि सिंधिया खेमे के मंत्रियों और विधायकों ने दिग्विजय खेमे के कांग्रेस प्रत्याशी अशोक सिंह के लिए काम नहीं किया. अगर यहां कांग्रेस को नाकामी मिलती है तो ये मामला तूल पकड़ेगा.
ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र में 2014 के मुक़ाबले 2019 में वोटिंग परसेंटेंज 8 फीसदी ज़्यादा रहा. 2014 में 52 फीसदी वोटिंग हुई थी जो 2019 में बढ़कर 60 फीसदी रही. उसके बावजूद इलाके के मंत्री शक़ के दायरे में हैं. वजह ये है कि 2018 के विधानसभा चुनाव के मुक़ाबले कांग्रेस के मंत्रिय़ों औऱ विधायकों के इलाकों में लोकसभा में वोटिंग परसेंटेज 5 फीसदी तक गिरा है.
ग्वालियर में कांग्रेस दो गुटों में बंटी रहती है, एक गुट ज्योतिरादित्य सिंधिया का है तो दूसरा गुट दिग्विजय सिंह का है. ग्वालियर के कांग्रेस प्रत्याशी अशोक सिंह को दिग्विजय गुट का माना जाता है. जबकि प्रदेश सरकार के तीन मंत्री और तीन विधायक सिंधिया खेमे से हैं. चर्चा है कि सिंधिया समर्थक मंत्री और विधायकों ने कांग्रेस प्रत्याशी अशोक सिंह की राह मुश्किल करने के लिए मेहनत नहीं की.यही वजह है कि उनके इलाकों में विधानसभा चुनाव के मुकाबले 15 से 35 हजार वोट कम पड़े.
ग्वालियर में कांग्रेस राजा-महाराजा गुट की खीचतान में उलझी है. सिंधिया खेमे के मंत्री और विधायकों के इलाकों में वोटिंग परसेंटेज गिरने से सवाल खड़े हो रहे हैं. अगर कांग्रेस को इस बार भी कामयाबी नहीं मिली तो हार का ठीकरा सिंधिया खेमे के मंत्री- विधायकों के सिर पर फूटेगा.